बांग्लादेश में वित्तीय नियम क्या हैं?

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बांग्लादेश बनने की वजह क्या थी- भाषा, संस्कृति, अन्याय या कोई साज़िश?
पाकिस्तानी सेना के जनरल भारत के जरनल के सामने आत्मसमर्पण करते हुए.
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल मार्च में बांग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर ढाका दौरे पर थे और तब वहां की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना से मुलाक़ात के दौरान दोनों देश इस बात पर सहमत हुए थे कि वो 6 दिसंबर को 'मैत्री दिवस' मनाएंगे.
इस दिन का महत्व जानने के लिए हमें 50 साल पीछे जाना होगा. भारत ने 6 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दी थी. हालांकि तब वो पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा था.
उसके केवल 10 दिन बाद पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला ख़ान नियाज़ी ने भारतीय सेना के लेफ़्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के साथ आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करके अपनी हार मान ली थी.और इस तरह बांग्लादेश औपचारिक तौर पर दुनिया के नक़्शे पर एक नए देश के रूप में उभरकर सामने आया था.
यह कहना ग़लत नहीं होगा कि दक्षिण एशिया के देशों में बांग्लादेश के सबसे क़रीबी संबंध भारत के साथ ही हैं. सिर्फ़ व्यापार के स्तर पर बात करें तो दोनों देशों के बीच 10 अरब डॉलर का कारोबार होता है, जो पूरे दक्षिण एशिया में सबसे ज़्यादा है.
पाकिस्तान में पढ़ाई जाने वाली पाठ्य पुस्तकों के अध्ययन से इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बांग्लादेश और भारत के बीच के इतने घनिष्ठ संबंध और पूर्वी पाकिस्तान के उससे अलग होने के क्या कारण हैं.
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पाकिस्तान के केंद्रीय बोर्ड द्वारा प्रकाशित नौवीं और दसवीं कक्षा की पुस्तकों को यदि देखें तो उनमें कहा गया है कि 'पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान को अलग करने में भारत की भूमिका थी.
इन किताबों में लिखा है कि भारतीय नेतृत्व को पाकिस्तान का बनना पसंद नहीं आया और उन्होंने उपमहाद्वीप के विभाजन के तुरंत बाद पाकिस्तान को तोड़ने की साज़िशें शुरू कर दी थीं.
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इन किताबों में आगे यह भी कहा गया है कि पूर्वी पाकिस्तान में बड़ी संख्या में हिंदू रहते थे, जो भारत के प्रति सहानुभूति रखते थे और समय के साथ वहां अलगाववादी तत्वों को पनपने की जगह मिल गई. इसकी वजह से पूर्वी पाकिस्तान के लोग वैसी विचारधारा के शिकार हो गए.
शोधकर्ता और लेखिका अनम ज़कारिया ने इस बारे में अपनी किताब '1971, ए पीपल्स हिस्ट्री फ़्रॉम बांग्लादेश, पाकिस्तान एंड इंडिया' में लिखा कि इन पाठ्य पुस्तकों में सभी बंगाली हिंदुओं को भारत के समर्थक और 'देशद्रोही' के रूप में प्रस्तुत किया गया. इसलिए हैरानी की बात बिल्कुल नहीं है कि पाकिस्तान में एक आम धारणा है कि पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के टूटने का कारण भारत था.
अब जब बांग्लादेश अपनी स्थापना के 50 साल पूरे कर रहा है, तब बीबीसी ने विभिन्न शोध पुस्तकों और शोधकर्ताओं के साथ बातचीत करके ये जानने की कोशिश की कि वे कौन से कारक थे, जिनके चलते अपनी स्थापना के महज़ 24 साल बाद ही पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए. क्या इसके अलावा कोई रास्ता नहीं था और क्या भविष्य में इन दोनों देशों के ठंडे पड़े रिश्तों में गर्माहट आएगी?
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राजकीय भाषा का दर्जा सिर्फ़ उर्दू को देना
अगस्त 1947 में जब पाकिस्तान अस्तित्व में आया तो इसमें दो प्रमुख क्षेत्र- पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान शामिल थे. पूर्वी पाकिस्तान में देश की 56 प्रतिशत आबादी रहती थी, जो बांग्ला भाषा बोलती थी.
वहीं पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाबी, सिंधी, बलूची, पश्तो और अन्य स्थानीय भाषाओं के बोलने वाले रहते थे. इसके साथ-साथ भारत से पलायन करने वाले मुसलमान भी थे, जो उर्दू बोलते थे. देश की आबादी में उनका हिस्सा केवल तीन फ़ीसदी था.
बांग्लादेश के इतिहास का अध्ययन करने वाले डच प्रोफ़ेसर विलियम वॉन शिंडल ने अपनी किताब 'ए हिस्ट्री ऑफ़ बांग्लादेश' में लिखा कि पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद 'उत्तर भारत' के लोगों का वर्चस्व उभरकर सामने आया.
वह लिखते हैं कि जहां एक तरफ़ बांग्लादेशी मुसलमानों को उम्मीद थी कि वो बहुसंख्यक आबादी होने के कारण पाकिस्तान में अहम भूमिका निभाएंगे, लेकिन 'उत्तर भारत' के मुस्लिम नेताओं ने देश की बागडोर अपने हाथों में ले ली. ऐसा इसलिए कि दक्षिण एशिया में ख़ुद को वो मुस्लिम आंदोलन का रखवाला समझते थे. उनका मानना था कि पाकिस्तान का भविष्य उनकी ही विचारधारा के तहत होगा.
विलियम शिंडल इसे और स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि पश्चिमी पाकिस्तान में रहने वाले 'उत्तर भारतीय' मुसलमान दो समूहों- शरणार्थियों और पश्चिमी पंजाब के मुसलमानों पर निर्भर थे. वे लोग ही देश के हर अच्छे बुरे के मालिक थे.
भारत से पलायन करके पाकिस्तान जाने वाले शरणार्थी उर्दू बोलते थे. पलायन के बाद अल्पसंख्यक होने के बावजूद, उन्हें उम्मीद थी कि उनके ही रीति-रिवाज और परंपराएं पाकिस्तान की स्थानीय संस्कृति पर हावी रहेंगी. वहीं पंजाब में रहने वाले मुसलमानों का देश के नागरिक संस्थानों, सेना और कृषि भूमि पर क़ब्ज़ा था और वे देश के बहुसंख्यक बनकर सामने आये.
विलियम शिंडल ने भाषा के बारे में अपनी पुस्तक में लिखा कि पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच शुरुआती विवाद इसी वजह से हुआ. पश्चिमी पाकिस्तान में न के बराबर लोग बांग्ला भाषा जानते थे. इन लोगों का मानना था कि बांग्ला पर 'हिन्दुओं का असर' था.
शायद यही वजह थी कि फ़रवरी 1948 में जब असेंबली के एक बंगाली सदस्य ने प्रस्ताव पेश किया कि असेंबली में उर्दू के साथ-साथ बांग्ला का भी इस्तेमाल हो. इस पर तब के पीएम लियाक़त अली ख़ान ने कहा कि पाकिस्तान उपमहाद्वीप के करोड़ों मुसलमानों की मांग पर बना है और मुसलमानों की भाषा उर्दू है. इसलिए ये अहम है कि पाकिस्तान की एक कॉमन भाषा हो, जो केवल उर्दू ही हो सकती है.
अगले ही महीने यानी मार्च 1948 में पाकिस्तान के संस्थापक क़ायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना ने जब ढाका का दौरा किया, तो उन्होंने भी वहां दो टूक कहा कि ''मैं यह साफ़ कर देना चाहता हूं कि पाकिस्तान की राजकीय भाषा केवल उर्दू होगी. यदि आपको कोई गुमराह करता है, तो वो पाकिस्तान का दुश्मन है. जहां तक राजकीय भाषा का सवाल है, वो केवल उर्दू है.''
दक्षिण एशिया के इतिहास के एक और जानकार और लेखक नीलेश बोस ने अपनी किताब 'रीकास्टिंग द रीज़न' में इस बारे में बताया है. उन्होंने लिखा कि कुछ बंगाली बुद्धिजीवी मोहम्मद अली जिन्ना के साथ जनवरी 1948 से बांग्ला भाषा की स्थिति पर बात कर रहे थे, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई.
जिन्ना ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पूर्वी पाकिस्तान में निजी तौर पर बांग्ला भाषा का इस्तेमाल होता रहे, पर आधिकारिक भाषा उर्दू ही बनी रहेगी.
बीबीसी ने अमेरिका की जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर एहसान बट से जब इस बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के संस्थापकों की अपनी भाषा उर्दू थी और वे उर्दू को शायद इस्लाम से जोड़ रहे थे.
अलगाववादी आंदोलनों पर किताब लिखने वाले लेखक प्रोफ़ेसर एहसान बट ने कहा कि जब भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है, तब पाकिस्तान को राष्ट्रीय भाषा की ज़रूरत क्यों पड़ी? ये सोचने वाली बात है.
बीबीसी ने इस बारे में अनम ज़कारिया से पूछा तो उन्होंने इसके बारे में विस्तार से जवाब दिया. उन्होंने बांग्लादेश में वित्तीय नियम क्या हैं? कहा कि उनकी राय है कि बांग्लादेश के गठन में भाषा आंदोलन की भूमिका मुख्य रही.
ज़कारिया ने कहा, "बात सिर्फ़ इतनी सी नहीं है कि आप किसी की भाषा को स्वीकार नहीं कर रहे, बल्कि ये उससे कहीं बढ़कर है. भाषा को दबाने का मतलब होता है कि बांग्लादेश में वित्तीय नियम क्या हैं? आप उनकी संस्कृति को दबा रहे हैं और पाकिस्तान बनने के तुरंत बाद ऐसा ही हुआ, जब हमने देखा कि 1952 में भाषा के लिए हुए आंदोलन में छात्रों की मौत हो गई.''
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भारत और बांग्लादेश कटी रेल लाइनों को फिर जोड़ेंगे
बांग्लादेश के रेल मंत्री मुजीबुल हक ने कहा है कि भारत के साथ 12 स्थानों पर रेल लाइनों को फिर से जोड़ने की पहल शुरू कर दी गई है। रेल लाइन 1947 में देश के बंटवारे के बाद कट गई थी। उन्होंने कल शाम यहां संवाददाताओं से कहा, हम उन सभी रेल लाइनों को फिर […]
बांग्लादेश के रेल मंत्री मुजीबुल हक ने कहा है कि भारत के साथ 12 स्थानों पर रेल लाइनों को फिर से जोड़ने की पहल शुरू कर दी गई है। रेल लाइन 1947 में देश के बंटवारे के बाद कट गई थी। उन्होंने कल शाम यहां संवाददाताओं से कहा, हम उन सभी रेल लाइनों को फिर से जोड़ना चाहते हैं जो भारत के बंटवारे से पहले मौजूद थीं। अभी भारत और बांग्लादेश के बीच 12 स्थानों पर रेल लाइन को बहाल करने की पहल की जा रही है। इस संबंध में दोनों सरकार एक-दूसरे का सहयोग कर रही हैं।
हक यहां दोनों देशों के रोटरी क्लबों द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में शामिल होने आए थे। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने सम्मेलन का उद्घाटन किया। बांग्लादेश के मंत्री ने कहा कि भारत से मिली वित्तीय मदद के साथ उनके देश के तितास और भैरव नदियों पर दूसरे रेल पुल का निर्माण पूरा हो गया है और इसका उद्घाटन शीघ्र किया जाएगा। उन्होंने कहा कि ढाका और कोलकाता के बीच चलने वाली मैत्री एक्सप्रेस के अतिरिक्त दूसरी ट्रेन बंधन एक्सप्रेस खुलना (बांग्लादेश) और कोलकाता के बीच चलेगी और इसकी शुरुआत अगले महीने होने की संभावना है।
हक ने कहा, राजशाही (बांग्लादेश) और कोलकाता को जोड़ने के लिए ढाका की तरफ से एक ट्रेन शुरू किए जाने का प्रस्ताव है। उन्होंने रेखांकित किया कि 15 किलोमीटर लंबी अगरतला-अखौरा परियोजना से संबंधित कार्य संतोषजनक है और इसके लिए बांग्लादेश की तरफ भूमि अधिग्रहण का काम पूरा हो गया है।
पश्चिमी त्रिपुरा जिले के मजिस्ट्रेट मिलिन्द रामटेके ने पूर्व में संवाददाताओं से कहा था कि भारत की तरफ भी इस परियोजना के लिए जमीन अधिकरण का काम पूरा हो गया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण के लिए 97.63 करोड़ रुपये जारी किए हैं। हक ने कहा कि अगरतला को बांग्लादेश में अखौरा से जोड़ने के लिए रेल पटरी बिछाने की प्रक्रिया अगले साल पूरी हो जाएगी।
बांग्लादेश के 3 बैंक अवैध धन के लेन-देन में शामिल!
ये जानकारियां बांग्लादेश को वैश्विक नेटवर्क में ट्रिलियन डॉलर से अधिक के संदिग्ध लेन-देन से जोड़ती हैं, जो कि 1999 और 2017 के बीच किए और इस पैसे का उपयोग आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने या उन पर खर्च किए जाने का संदेह है।
हालांकि अन्य दक्षिण एशियाई देशों जैसे बांग्लादेश में वित्तीय नियम क्या हैं? कि भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बैंकों की तुलना में बांग्लादेशी बैंकों से हुए संदिग्ध लेनदेन की मात्रा बहुत ही कम थी।
रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश बांग्लादेश में वित्तीय नियम क्या हैं? की यह राशि 8 मिलियन डॉलर से अधिक थी, जबकि भारत के लिए 888.46 मिलियन डॉलर, पाकिस्तान में 2.39 मिलियन डॉलर और अफगानिस्तान में 99.94 मिलियन डॉलर थी।
बांग्लादेशी बैंकों के लेनदेन को दो अमेरिका-बेस्ड बैंकों के जरिए किया गया था और इन्हीं बैंकों ने फिनकेन के साथ इस संदिग्ध गतिविधि की रिपोर्ट दायर की थी।
ये दस्तावेज बजफीड न्यूज को मिले थे और दुनियाभर के पत्रकारों के साथ साझा किए गए थे। प्रमुख अमेरिकी और अंतर्राष्ट्रीय बैंकों द्वारा दाखिल की गई 2,100 से अधिक संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्ट 1999 से 2017 के बीच 2 ट्रिलियन बांग्लादेश में वित्तीय नियम क्या हैं? डॉलर से अधिक के लेनदेन से संबंधित हैं।
इस खुलासे के बाद बांग्लादेश फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट ने कहा है कि वह जांच करेगा कि क्या लेनदेन के माध्यम से नियमों का उल्लघंन या मनी लॉन्ड्रिंग हुई थी।
यूनिट के प्रमुख अबू हेना मोहम्मद रजी हसन ने कहा, “ये संदिग्ध लेनदेन हैं, लेकिन इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि क्या मनी लॉन्ड्रिंग नियम का उल्लंघन किया गया था। ये सामान्य व्यापार लेनदेन भी हो सकते हैं।”