डॉव थ्योरी

Chapter 4- Share Market Trend क्या हैं – Uptrend, Downtrend & Sideways Trend की जानकारी
हमने पिछले चैप्टर में ये सीखा था की शेयर मार्केट में शेयर के प्राइस कम-ज्यादा डिमांड और सप्लाई के वजेसे होते है। यही डिमांड और सप्लाई चार्ट पर कुछ ट्रेंड बनाते है, जो हमे बताता है की प्राइस ऊपर जा रही है, निचे जा रही है या एक ही जगह पर है, जिन्हे देखकर- समझकर हम अच्छेसे ट्रेडिंग कर सकते है, और ट्रेंड के स्ट्रक्चर को सीखने के बाद हमे दूसरे कोई इंडिकेटर की आवश्यकता नहीं हे जो हमे बताये की कोनसा ट्रेंड चल रहा है। एक सफल ट्रेडर बनने के लिए हमे ये सीखना बहुत जरुरी है और सीखने के बाद यही ट्रेंड हमे बताएँगे की, अभी कोनसा ट्रेंड चल रहा हे, पिछला ट्रेंड ख़तम हुवा या नहीं, नया ट्रेंड चालू हुवा या नहीं ।
ट्रेंड के प्रकार (Type of Trends)
शेयर मार्केट में ट्रेंड के मुख्य 3 प्रकार होते है। जो हमे बताता है की प्राइस ऊपर जा रही है, निचे जा रही है या एक ही जगह पर है। 1. Uptrend(अपट्रेंड) 2. Downtrend (डाउन ट्रेंड ) 3. Sideways Trend
- जब कीमत बढ़ रही होती है, तो इसे अपट्रेंड(Uptrend ) कहा जाता है।
- जब कीमत नीचे जा रही हो, तो इसे डाउनट्रेंड (Downtrend) कहा जाता है।
- जब कीमत अगल-बग़ल में बढ़ रही हो, तो इसे साइड वेज़ (Sideways Trend) कहा जाता है.
ऊपर दिए गए ट्रेंड के 3 प्रकार हमे अलग-अलग कहानी बताते है। जो हमे बताते है की, मार्केट अपट्रेंड, डाउन ट्रेंड या साइडवेज़ ट्रेंड में है।
ये सारे ट्रेंड के प्रकार डॉव थ्योरी(Dow Theory) से लिए गए है। लेकिन मैं इसे यहां आपको संक्षेप में समझाऊंगा।
ट्रेंड का डॉव सिद्धांत ( The Dow theory of Trends)
सरल शब्दों में सिद्धांत कहता है कि:
- जब प्राइस अपट्रेंड में होती है, तब वो बढ़ने वाले Higher High और Higher Low बनाते हुए ऊपर जाती है। और जब ये पैटर्न खंडित होता हे, तब हमे हे डॉव थ्योरी समज आता है की अपट्रेंड अब ख़तम हो गया है और ये एक डाउन ट्रेंड की सुरुवात होना का संकेत है।
- इसी तरह जब प्राइस डाउन ट्रेंड में होती है, तब वो बढ़ने वाले Lower High और Lower Low बनाते हुए निचे जाती है। और जब ये पैटर्न खंडित होता हे, तब हमे हे समज आता है की डाउन ट्रेंड अब ख़तम हो गया है और ये एक अपट्रेंड की सुरुवात होना का संकेत है।
अपट्रेंड की संरचना (Structure of an Uptrend)
जैसे मैंने ऊपर बताया हे की प्राइस जब अपट्रेंड में होती है , तो वो Higher High (HH) और Higher Low (HL) बनती है। ये आप निचे दिए गए पिक्चर को देख कर समझ सकते है।
अपट्रेंड की संरचना (Structure of an Uptrend)
डाउन ट्रेंड की संरचना (Structure of an Downtrend)
और प्राइस जब डाउन ट्रेंड में होती है , तो वो Lower High (LH) और Lower Low (LL) बनती है। ये आप निचे दिए गए पिक्चर को देख कर समझ सकते है।
डाउन ट्रेंड की संरचना (Structure of an Downtrend)
आपने ऊपर अपट्रेंड और डाउन ट्रेंड के स्ट्रक्चर देखे है, पर ये बहुत आइडियल(Ideal) चार्ट है प्रक्टिकली चार्ट कैसा दिखता है। ये आप निचे दिए हुए पिक्चर को देखकर समज सकते है ।
Practical Chart
ऊपर दिए गए चार्ट को देखकर हमे ये समज आता है डॉव थ्योरी की, प्राइस पहले डाउन ट्रेंड में चल रही थी, इसीलिए वो बार – बार LH – LL बना रही थी । पर जब अगला लौ (Low) LL से बदल कर HL बन ज्याता है, तब हमे ये समज आता है की, अब पैटर्न बदल गया है, और डाउन ट्रेंड का अंत हो गया ये। और अब यहासे अपट्रेंड आ सकता hae.
साइड वेज़ ट्रेंड (Structure of Sideways Trend)
साइड वेज़ ट्रेंड में प्राइस 1 चैनल(channel) में फसी हुई होती है, प्राइस उसी चैनल में ऊपर निचे करती रहती है। निचे दिए गए पिक्चर को देखकर आप ये बहुत सरलता से समज सकते है। और प्राइस जब भी ये चैनल के सपोर्ट/रेजिस्टेंस या इसके ब्रेकऑउट लेवल पर आती है तब हमे बहुत अच्छे ट्रेड मिलते है। ये हम आगे आने वाले पोस्ट में देखेंगे।
साइड वेज़ ट्रेंड
ऊपर वाले चार्ट से हमे आइडियल (Ideal) चार्ट तो समज आ गया। तो चलो अब हम प्रैक्टिकल चार्ट देखते है। निचे दिए गए पिक्चर को देखकर आप ये बहुत सरलता से समज सकते है
Practical Sideways trend Chart
Summary
इस चैप्टर में हमने शेयर मार्केट के ट्रेंड सीखे। निचे दिए गए 1 पिक्चर को देखकर हम सभी ट्रेंड का रिविज़न चुटकियो में कर सकते है।
All 3 trends in single Picture
शेयर मार्केट में ट्रेंड के मुख्य 3 प्रकार होते है। 1. Uptrend(अपट्रेंड) 2. Downtrend (डाउन ट्रेंड ) 3. Sideways Trend
इस चैप्टर में हमने ट्रेंड के बारे में सीखा। इसे सिख कर, समज कर हम मार्केट का ट्रेंड को समज सकते है। और ट्रेंड के हिसाब से हमारा ट्रेड ले सकते है।
अगर मार्केट अपट्रेंड में हे, तो हमें Buy के ट्रेड लेने चाहिए। और अगर मार्केट डाउन ट्रेंड में हे तो हमे Sell के ट्रेड लेने चाहिए।
जब प्राइस अपट्रेंड में उसके Higher Low पर होती है तब कैंडलस्टिक का पैटर्न देखकर buy करना चाहिए।
जब प्राइस डॉव थ्योरी डाउन ट्रेंड में उसके Lower High पर होती है तब कैंडलस्टिक का पैटर्न देखकर Sell करना चाहिए।
इलियट वेव थ्योरी (Elliott Wave Theory) क्या है?
दोस्तों ऐसा माना जाता है कि मार्केट की चाल इलियट वेव थ्योरी (Elliott Wave Theory) के हिसाब से चलता है यानी मार्केट का ऊपर या नीचे जाने को इस थ्योरी के द्वारा आसानी से प्रेडिक्ट किया जा सकता है। हालांकि इलियट वेव एक इंडिकेटर के रूप में वर्गीकृत नहीं है, लेकिन ये टेक्निकल एनालिसिस में काफी लोकप्रिय है। इसके सिद्धांत पर कई पुस्तकें लिखी गई हैं, यहाँ इस लेख का उद्देश्य थ्योरी की मूल बातें शामिल करना है। तो चलिए इस लेख में इलियट वेव थ्योरी के बारे में जानते हैं।
इलियट वेव थ्योरी स्टॉक मार्केट में टेक्निकल एनालिसिस का एक टूल है। यह स्टॉक्स, फ्यूचर एंड ऑप्शन, करेंसी, कमोडिटी, क्रिप्टो आदि सभी प्रकार के टेक्निकल चार्ट में काम करता है। साथ ही यह हर प्रकार के टाइम फ्रेम (जैसे - 1m, 5m, 15m, 1h, 1d, 1w etc.) में काम करते है। इलियट वेव थ्योरी का नाम राल्फ नेल्सन इलियट (Ralph Nelson Elliott) के नाम पर रखा गया है। वह एक अमेरिकी अकाउंटेंट और लेखक थे। डॉव थ्योरी से प्रेरित और पूरे प्रकृति के अवलोकन से इलियट ने निष्कर्ष निकाला कि स्टॉक मार्केट की मूवमेंट की भविष्यवाणी वेव्स (Waves) के दोहराव वाले पैटर्न को देखकर पहचान किया जा सकता है।
इलियट वेव थ्योरी डॉव थ्योरी पर आधारित है। डॉव थ्योरी के अनुसार मार्केट में तीन तरह के मूवमेंट होता है- पहला अपट्रेंड, दूसरा डाउनट्रेंड और तीसरा साइडवेज। इलियट ने इन्ही ट्रेंडो को एक पूर्ण चक्र के रूप में लेबल किया है और ये चक्र समय के साथ दोहराते रहते है। इलियट का मानना था कि अधिकतर ट्रेडर्स और इन्वेस्टर की साइकोलॉजी एक ही समय में लगभग एक समान व्यवहार करते है और यह व्यवहार एक विशिष्ट पैटर्न में दिखाई देता है। जैसे कोई इन्वेस्टर या ट्रेडर्स आशावादी और लालच में हो तो मार्केट तेजी (बुलिस) में दिखाई देता है और यदि वही इन्वेस्टर या ट्रेडर्स निराशावादी और डरे हुए हो तो मार्केट मंदी (बेयरिस) में दिखाई देता है। इसी वजह से मार्केट में कभी तेजी से खरीदारी होती है या कभी तेजी से बिकवाली होती है। इस प्रकार किसी ट्रेडर्स और इन्वेस्टर के बदलते साइकोलॉजी को एक पैटर्न के रूप में पहचान किया जा सकता है और यह पैटर्न अक्सर दोहराये जाते है।
सबकुछ कीमतों के बारे में
बाज़ार में कीमते भीड़ तय करती है | खरीददार और बेचनेवाले को बिच के टकराव से कीमते तय होती है और इजाद होती है | कीमतें में बाज़ार की सभी आधारभूत जानकारी , समाचार, और लोंगो की मान्यताये सम्मीलित होती है | इसे सिद्धन्त को “ मार्केट डिस्काउंट मैकेनिज्म ” के नाम से भी जाना जाता है | जैसे मार्केट में मान्यताये बदलती है या समाचार आते या फिर फंडामेंटल्स बदलते है, हमे कीमतों में तेजी से उतार चढाव देखते है | आधारभूत जानकारी में सैकड़ो तत्व शामिल होते है जैसे मार्केट या फिर शेयर को तथ्य, बाजार की राय , चरम अनुमान, बाज़ार समाचार और लोगोंकी धारनाये | यह सभी चीजे बाज़ार में आपूर्ति और मांग में बदलाव करती रहती है और उसी वजह से हम हर डॉव थ्योरी एक सेकंड में कीमतों में चढाव और उतार देखते है |
डॉव थ्योरी और कीमतों का संबंध
चार्ल्स डॉव जिन्होंने “द वाल स्ट्रीट जर्नल” की स्थापना की थी, उनके हिसाब से मार्केट में एक ही चीज सच्ची और भरोसे के लायक होती है और वो थी “कीमत” | उनका कहना था की कीमते हमेशा बाज़ार तथ्य, अफवाए, बाज़ार का शोर होते हुए भी कीमते अपनी दिशा में यात्रा करती रहती है | और मेरे हिसाब से भी बाज़ार में एक ही चीज जो सामने दिखती है और उसपर भरोसा किया जा सकता है वो है “कीमत” | चार्ल्स डॉव ने जो मार्केट में निरीक्षण किया था, उन्होंने उन्हें अधोरेखित किया था जिसे आज “डॉव थ्योरी “ के नाम से जाना जाता है |
डॉव थ्योरी
- कीमते हमेशा ट्रेंड में घुमती रहती है | 2. एक ट्रेडर ट्रेंड को देख सकता है और पहचान सकता है | ट्रेंड नियमित रूप से दिखाई देते है और कई बार दोहराए भी जाते है | 3. प्राइमरी ट्रेंड ही मुख्य होते है और सेकेंडरी ट्रेंड्स को रेत्रसमेंट कहा जाता है जो ट्रेड करने के हिसाब से मुश्किल होते है | 4. प्राइमरी ट्रेंड उसकी दिशा में डॉव थ्योरी प्रस्तान करता रहता है जब तक बाजार में कोई मुख्य और मौलिक बदल नहीं होता |
कीमत और मूल्य
कीमत और मूल्य ये दोनों अलग है | टेक्निकल एनालिसिस की मदत आप कीमतों की सही खोज कर सकते हो और फंडामेंटल एनालिसिस से उनके सही मूल्यों का अभ्यास कर सकते हो | जो शेअर्स की कीमते अपनी मूल्य से ज्यादा कीमत पर ट्रेड होती है, उन शेअर्स को “ओवर वैल्यूड शेअर्स” कहते है | ये उस कंपनी के समृद्ध और संपन्न भविष्य , बाज़ार की अफवाए या फिर ट्रेडर्स की भावनाओं की वजह से होता है | अगर शेअर्स की कीमत उसकी मूल्य से ज्यादा कीमत पर ट्रेड होती है तो मूल्य और कीमत के अंतर को “प्रीमियम” कहा जाता है | उसी प्रकार अगर शेअर की कीमत उसके मूल्य के निचे ट्रेड होती है तो इस अंतर को “डिस्काउंट” कहा जाता है | यह प्रीमियम और डिस्काउंट एक निवेशक के लिए हमेशा महत्वपूर्ण होते है | एक होशियार ट्रेडर हमेशा टेक्निकल एनालिसिस और फंडामेंटल एनालिसिस की मदत से अच्छी तरह से ट्रेडिंग करता है और उसके मदत से ही अपनी जोखिम को भापता है और उसका उपयोग दैनदिन ट्रेडिंग में करता है | चलो इसको एक उदाहरण से समज़ते है | मंदड़ियों के बाजार में ब्लू चिप शेअर्स (मौलिकरूप से मजबूत शेअर्स ) के भाव स्माल और मिडकैप शेअर्स के मुकाबले कम गिरते है यह अपने देखा होगा | मुख्य इंडेक्स शेअर्स में ट्रेडिंग करना अन्य शेअरो के मुकाबले कम जोखिम भरा होता है | क्योकि इन शेअर्स को उनके मौलिक आधारों पे और कम्पनी मैनेजमेंट के गुणवता की आधार पर ही मार्केट रेगुलेटर इंडेक्स में शामिल या फिर बाहर करता है | टेक्निकल एनालिसिस के साथ फंडामेंटल एनालिसिस का उपयोग एक उत्प्रेरक की तरह काम करता है | उससे एक ट्रेडर को मार्केट को जितने का मोका मिलता है | प्रोफेशनल ट्रेडर्स हमेशा फंडामेंटली शक्तिशाली कंपनियों के शेअर्स में ही ट्रेडिंग करना पसंद करते है | और टेक्निकल एनालिसिस का उपयोग खरीदने और बेचने के निर्णयो को लेने में उपयोग में लाते है |
कीमते और टेक्निकल एनालिसिस का उपयोग
टेक्निकल एनालिसिस का उपयोग ट्रेडिंग कम्युनिटी के लिये नया नहीं है , इसकी शुरुवात सन १८०० में जापान में चावल के व्यापारी भविष्य की कीमतों का अंदाज़ लगाने के लिए निजी तौर पे किया करते थे | टेक्निकल एनालिसिस को ट्रेडिंग की समजवाले बुद्धिमानी लोंगो इजाद किया और उसे विकसत करते रहते है | क्योकि जटिल गणित कोई बच्चो का खेल नहीं है | टेक्निकल एनालिसिस ये कंप्यूटर , ट्रेडिंग सिस्टम्स और चार्टिंग सॉफ्टवेयर के इजाद के पहले से ही मौजूद है और नियमित उपयोग में लाया गया है | ये दुनिया में लगभग २०० से ज्यादा साल जी चूका है और आगे भी भविष्य में उपयोग में लाया जायेगा और विकसित होता रहेगा | हर साल नए अवधारणाये, इंडीकेटर्स , चार्टिंग डॉव थ्योरी स्टाइल इ. खोजे जाते है और ट्रेडर्स उनका उपयोग करते है और खुद को और बेहतर बनाते जाते है |
क्या मार्केट दे रहा है निवेशकों को सतर्क रहने का संकेत?
बुल मार्केट की शुरुआत तब हुई, जब महामारी की आशंकाओं के कारण मार्केट निचले स्तर पर पहुंच गया था.
- Money9 Hindi
- Updated On - October 24, 2021 / 11:57 AM IST
कई कंपनियों ने अच्छे नंबर पोस्ट करने के बावजूद अपने स्टॉक की कीमतों में अचानक गिरावट देखी हैं. PC: Pexels
इस हफ्ते मार्केट पर बियर अपनी पकड़ बनाते हुए दिखे, जिस वजह से बेंचमार्क इंडेक्स गिर गए. कई शेयरों का वैल्यूएशन आसमान छू रहा है, हालांकि उनका फंडामेंटल पीछे छूटता दिख रहा है. दिलचस्प बात यह है कि FII और DII ने उन अधिकांश कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी कम कर दी है, जिन्होंने कोई निगेटिव खबर नहीं होने के बावजूद एक हफ्ते के अंदर तेजी से करेक्शन किया है. यह डॉव थ्योरी के फाइनल फेज के अनुसार है, जिसमें इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (स्मार्ट मनी माना जाता है) एक तेज रैली के दौरान धीरे-धीरे मुनाफा बुक करते हैं, जबकि रिटेल इन्वेस्टर इन वॉल्यूम को एब्जॉर्ब करते हैं और रैली को जारी रखते हैं. डॉव थ्योरी का असर यहां साफ देखा जा रहा है क्योंकि पिछले कुछ महीनों में रिटेल इन्वेस्टर्स तेजी से शेयरों को जमा कर रहे हैं.
बुल मार्केट की शुरुआत तब हुई जब महामारी की आशंकाओं के कारण मार्केट निचले स्तर पर पहुंच गया. इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स ने दुनिया भर में प्रोत्साहन पैकेजों की घोषणा, लिक्विडिटी बढ़ने, और बेहतर बिजनेस सेंटीमेंट के बाद स्टॉक खरीदना शुरू कर दिया. स्टॉक की कीमतों में इतनी तेजी से वापसी के साथ, उत्साहित रिटेल इन्वेस्टर्स ने भी मार्केट में एंटर किया. FOMO आग की तरह फैल गया और रिकॉर्ड संख्या में नए इन्वेस्टर्स शामिल हो गए.
ऐसी स्थितियों में, रिटेल इन्वेस्टर्स फंडामेंटल की जांच किए बिना, मार्केट में किसी भी संभावित गिरावट में शेयरों को खरीदने की संभावना रखते हैं. जैसा कि अतीत में देखा गया है, जब वैल्यूएशन अंडरलाइंग फंडामेंटल से अलग हो जाते हैं, तो उम्मीदें और अपेक्षाएं मार्केट को ऊपर की ओर ले जाती हैं. इसके बाद आमतौर पर इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स मार्केट से धीरे धीरे अपना पैसा निकालते हैं जिसके चलते बिकवाली या करेक्शन होता है. केवल आने वाला समय ही बताएगा कि हम भविष्य में इस तरह की तेज बिकवाली देखेंगे या नहीं, लेकिन इस सप्ताह की घटनाएं संकेत दे रही हैं कि निवेशकों को बेहद सतर्क रहना चाहिए.
इवेंट ऑफ द वीक
कई कंपनियों ने अच्छे नंबर पोस्ट करने के बावजूद अपने स्टॉक की कीमतों में अचानक गिरावट देखी. हालांकि ये विरोधाभास देखकर हैरानी हो सकती है. यह इस वजह से हो सकता है कि इन्वेस्टर वाइडर पर्सपेक्टिव कंसीडर करने के बजाय एक्सपेक्टेशंस को पूरा करने के लिए परिणामों पर अधिक जोर दे रहे हैं. नतीजतन, उनके एस्टीमेट से रिजल्ट थोड़ा भी अलग होता है तो उनकी घबराहट बढ़ जाती है. इसलिए इन्वेस्टर्स को सलाह दी जाती है कि वो अलग-अलग एस्टीमेट परफॉर्मेंस की तुलना करने के बजाय कंपनियों के लॉन्ग टर्म पोटेंशियल वैल्यू को कंसीडर करें.
टेक्निकल आउटलुक
एक वॉलेटाइल हफ्ते के बाद निफ्टी गिरावट के साथ बंद हुआ. दूसरे उभरते मार्केट डॉव थ्योरी इंडेक्स भी मौजूदा स्तरों पर प्रतिरोध का सामना कर रहे हैं और इसलिए इंडेक्स में और करेक्शन होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. बेंचमार्क इंडेक्स को 18050 के लेवल पर मजबूत सपोर्ट मिला है. इस सपोर्ट लेवल के नीचे कोई भी गिरावट पूरे मार्केट में मंदी की भावना को ट्रिगर कर सकती है. जब तक इंडेक्स एक निर्णायक कदम नहीं उठाता, हम ट्रेडर्स को सतर्क नजरिया बनाए रखने और कोई भी एग्रेसिव ट्रेड न करने की सलाह देते हैं.
आने वाले हफ्ते से उम्मीदें
अगले हफ्ते मार्केट के सीमित दायरे में रहने की संभावना है. इस हफ्ते पहली बार 40,000 का आंकड़ा पार करने के बाद, अगले सप्ताह बैंक निफ्टी के लाइमलाइट में रहने की संभावना है क्योंकि कई बैंक अपने रिजल्ट की घोषणा करेंगे. इकोनॉमिक एक्टिविटी में सुधार, बढ़ी हुई कलेक्शन एफिशिएंसी और स्टेबल एसेट क्वालिटी को देखते हुए, इस इंडस्ट्री से एक अच्छे अर्निंग आउटलुक की उम्मीद की जा सकती है. इसके अलावा, अगले हफ्ते महीने की समाप्ति के साथ, मार्केट में उतार-चढ़ाव बना रह सकता है.
(लेखक सैमको सिक्योरिटीज में इक्विटी रिसर्च हेड हैं. व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं)