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विदेशी मुद्रा में निवेश करें

विदेशी मुद्रा में निवेश करें
5. विदेशी मुद्रा बढ़ने से आम लोगों को भी फायदा मिलता है। इससे सरकारी योजनाओं में खर्च करने के लिए पैसा मिलता है।

कितना कर सकते हैं निवेश

भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार, जानें इसके 5 फायदे

भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार, जानें इसके 5 फायदे

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 3.074 अरब डॉलर बढ़कर 608.081 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इसके साथ ही भारत ने रूस को पीछे छोड़ते हुए विदेशी मुद्रा रखने वाले दुनिया के देशों में चौथे स्थान पर पहुंच गया है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और निजी निवेशकों द्वारा शेयर बाजार में रिकॉर्ड निवेश से विदेशी मुद्रा भंडार में उछाल आया है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह सुस्‍त पड़ी भारतीय इकोनॉमी के लिए राहत की खबर है। आइए जानते हैं मुद्रा भंडार बढ़ने के मायने।

विदेशी मुद्रा भंडार के पांच बड़े फायदे

1. विदेशी मुद्रा भंडार का बढ़ना किसी देश की अर्थव्यवस्था में मजबूती का संकेते होता है। साल 1991 में देश को सिर्फ 40 करोड़ डॉलर जुटाने के लिए 47 टन सोना इंग्लैंड विदेशी मुद्रा में निवेश करें के पास गिरवी रखना पड़ा था। लेकिन मौजूदा स्तर पर, भारत के पास एक वर्ष से अधिक के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त मुद्रा भंडार है। यानी इससे एक साल से अधिक के आयात खर्च का बोझ उठाया जा सकता है।

2. बड़ा विदेशी मुद्रा रखने वाला देश विदेशी व्यापार को आकर्षित करता है और व्यापारिक साझेदारों का विश्वास अर्जित करता है। इससे वैश्विक निवेशक देश में और अधिक निवेश के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं।

3. सरकार जरूरी सैन्य सामान की तत्काल खरीदी का निर्णय भी ले सकती है क्योंकि भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है। इसके साथ कच्चा तेल, दूसरी जरूरी सामान की आयत में बढ़ा नहीं आती है।

कर्ज में विदेशी निवेश को बढ़ावा

सरकारी बॉन्डों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) पारंपरिक रूप से कई नियंत्रणों से प्रभावित रहा है. हाल के वर्षों में उन नियंत्रणों को ढीला किया गया है. यह स्वागतयोग्य कदम है क्योंकि रुपये की प्रधानता वाले बॉन्डों में विदेशी निवेश के कारण कर्ज लेने वाले को विनिमय दर का जोखिम नहीं झेलना पड़ता.

सरकारी बॉन्डों में एफपीआइ की सीमा ऐसे प्रतिभूतियों के बकाया स्टॉक के 6 प्रतिशत के बराबर तय की गई है. इस सीमा के अलावा, अल्प-अवधि वाले सरकारी और कॉर्पोरेट बॉन्डों में एफपीआई द्वारा निवेश की सीमा एक खास एफपीआई के कुल निवेश के 30 प्रतिशत के बराबर तय की गई है.

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विदेशी मुद्रा में उधार लेने की शर्तों में छूट

कंपनियां विदेशी मुद्रा में जो उधार लेती हैं या ‘एक्सटर्नल कमर्शियल बोरोइंग’ (ईसीबी) उसमें उधार लेने की रकम, उधार की रकम पर अधिकतम ब्याज दर पर, और जिस काम के लिए उधार लेना है उस सबको लेकर कुछ प्रतिबंध हैं. रिजर्व बैंक ने उधार की रकम की सीमा फिलहाल 75 करोड़ डॉलर से बढ़ाकर 1.5 अरब डॉलर कर दी है. विदेशी मुद्रा में उधर पर ब्याज की शर्तों को उदार किया गया है. जबकि रुपये की कीमत तेजी से गिर रही है भारतीय फ़र्में अगर विदेशी मुद्रा में ज्यादा काम करेंगी तो उधार की रकम को मुद्रा की कीमत में फेरबदल से अछूता नहीं रखा गया तो व्यवस्थागत जोखिम पैदा हो सकता विदेशी मुद्रा में निवेश करें है.

रिजर्व बैंक की ‘फाइनांशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट’ के मुताबिक, विदेशी मुद्रा में लिए गए 44 फीसदी कर्ज के साथ कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं होती. इनमें से कुछ कर्ज के साथ स्वतः सुरक्षा जुड़ी होती है जिसमें करदार की आय भी विदेशी मुद्रा में होती है. चिंता की बात यह है कि सुरक्षा के साथ वाला विदेशी मुद्रा कर्ज पिछले कुछ महीनों में कम हुआ है.

आप्रवासियों द्वारा डिपॉजिट को आसान बनाना

फॉरेन करेंसी नॉन रेसिडेंट बैंक और नॉन रेसिडेंट (एक्सटर्नल) रुपी डिपॉजिट को सीआरआर और एसएलआर की शर्तों से मुक्त कर दिया गया है. इन डिपोजिटों पर सीमाबंदी कुछ समय के लिए हटा दी गई है. ब्याज की सीमा हटाने से बैंक नॉन रेसिडेंट डिपोजिटरों को ऊंची ब्याज दर दे सकते हैं. इससे इन डिपोजिटों को भारतीय बैंकों की ओर देखने का प्रोत्साहन मिलेगा. लेकिन यह छूट 31 अक्तूबर 2022 तक ही है इसलिए इसका असर सीमित ही होगा.

वैश्विक वित्तीय स्थितियों और यूएस फेड द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने के कारण रुपये पर दबाव बना रहा सकता है. विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाने के लिए हाल में जो कदम उठाए गए हैं वे स्वागतयोग्य हैं और वे मध्य अवधि के लिए विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ा सकते हैं. लेकिन उनके साथ मूलभूत सुधारों को भी लागू करने और विदेशी निवेश का नियमन करने वाली कुल व्यवस्था में विवेकाधीनता को कम करने और उसे सरल बनाने की जरूरत है.

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आज की तारीख में निवेशक अपने पोर्टफोलियो में विदेशी कंपनियों के स्टॉक को भी शामिल करते हैं. ग्लोबल मार्केट में निवेश करने से जहां आप अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई कर सकते हैं. वहीं डायवर्सिफिकेशन के जरिए रिस्क को कम किया जा सकता है. जानकार मानते हैं कि इससे रिटर्न विदेशी मुद्रा में निवेश करें का संतुलन बना रहता है. (Photo: Getty Images)

जानकारी का अभाव

भारतीयों को विदेशी शेयरों में सीधे निवेश करने की अनुमति मिले अब करीब 17 साल हो चुके हैं. लेकिन अभी जानकारी के अभाव में लोग विदेशी शेयर बाजारों में पैसे लगा नहीं पाते हैं. हमारे देश में अधिकतर लोगों का ये सवाल होता है कि विदेशी शेयर बाजारों में कैसे पैसे लगा सकते हैं? (Photo: Getty Images)

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