रुझान कितने समय तक चलते हैं?

Traders Diary: आज ये 20 Stocks आज कराएंगे तगड़ी कमाई! इंट्राडे के लिए तैयार कर लें लिस्ट
शेयर बाजार की इंट्राडे ट्रेडिंग रुझान कितने समय तक चलते हैं? में रोज की तरह आज भी कुछ शेयर खबरों या किसी नए सेंटीमेंट के चलते जोरदार तेजी दिखा सकते हैं. ज़ी बिज़नेस के रिसर्च टीम से कुशल गुप्ता और आशीष चतुर्वेदी ने Traders Diary प्रोग्राम पर निवेशकों के लिए कुछ एक्शन वाले स्टॉक्स चुनें हैं.
नेल एक्सटेंशन करवाने से पहले पा लें पूरी जानकारी
शायद आप इस तथ्य से वाकिफ हों कि प्राचीन काल में लंबे नाखूनों का बहुत चलन था। कुछ जगहों पर तो लंबे नाखून स्टेटस का सिंबल भी हुआ करते थे और कुछ सभ्यताओं में नाखूनों पर बने डिजाइन काफी महत्वपूर्ण माने जाते थे।
हालांकि, अब ऐसा कुछ नहीं है। मौजूदा समय में नाखून न सभ्यता के सूचक हैं और न ही स्टेटस को बयां करते हैं। लेकिन हां, आज नाखून पर्सनैलिटी को निखारने में अहम भूमिका जरूर निभाते हैं। यही वजह है कि ज्यादातर लड़कियां और महिलाएं अपने नाखूनों को ज्यादा सुंदर बनाने के प्रति सजग हो रही हैं।
इसी क्रम में इन दिनों नेल एक्सटेंशन के प्रति महिलाओं का रुझान काफी बढ़ रहा है। अगर आप भी नेल एक्सटेंशन करवाने की सोच रही हैं तो पहले जान लें कि ये क्या होता है और इसके फायदे-नुकसान क्या हैं।
क्या है नेल एक्सटेंशन
नेल एक्सटेंशन में प्लास्टिक की हल्के वजन की प्लेट से नाखूनों को लंबा किया जाता है। इन प्लेटों को असली नाखून के ऊपर ग्लू की मदद से चिपकाया जाता है और इसके बाद इसे शेप दी जाती है। इन प्लेटों के चिपकने के बाद इसे फाइबर ग्लास, एक्रेलिक या जैल कोटिंग की मदद से मजबूत किया जाता है। इससे नाखून शाइनिंग और मजबूत बनते हैं।
Investment Tips: निवेश को लेकर हैं कनफ्यूज, कहां और कैसे लगाएं पैसे? ताकि मिले बेहतर रिटर्न
Best investment options: निवेशकों को बाजार की गिरावट का इस्तेमाल करना चाहिए. गिरावट के दौर में आपको आकर्षक वैल्यूएशन पर शेयर मिलते हैं.
Where to Invest: साल 2022 में अबतक भले ही बाजार पॉजिटिव हैं, लेकिन अनिश्चितताएं बनी हुई हैं.
Make Your Portfolio Strong: शेयर बाजार में कभी तेजी आ रही है तो कभी गिरावट. साल 2022 में अबतक भले ही बाजार पॉजिटिव हैं, लेकिन अनिश्चितताएं बनी हुई हैं. इसके पीछे कई तरह रुझान कितने समय तक चलते हैं? के ग्लोबल फैक्टर ज्यादा जिम्मेदार हैं. जैसे महंगाई, रट हाइक, मंदी की आशंका और जियो पॉलिटिकल टेंशन. फिलहाल इस बीच निवेशक अपने निवेश को लेकर या तो कनफ्यूज हो रुझान कितने समय तक चलते हैं? रहे हैं या डरे हुए हैं. आखिर मौजूदा हालात में उन्हें कहां निवेश करना चाहिए. इस बारे में हमने बड़ौदा बीएनपी परिबा म्यूचुअल फंड के CEO, सुरेश सोनी से बात की है.
भारतीय बाजारों का आउटलुक बेहतर
बड़ौदा बीएनपी परिबा म्यूचुअल फंड के CEO, सुरेश सोनी का कहना है कि अभी दुनिया भर के बाजारों अस्थिरता है. बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में पिछले 4 दशक में महंगाई का उच्चतम लेवल है. सेंट्रल बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं. इससे मंदी की आशंका बढ़ रही है और कैपिटल मार्केट में अस्थिरता भी.
हालांकि इस दौरान भारतीय बाजारों ने बेहतर प्रदर्शन किया है. भारत में महंगाई है, लेकिन मैनेजबल है. देश की अर्थव्यवस्था पर ग्लोबल मंदी का कम प्रभाव पड़ने की उम्मीद है. अच्छी बात है कि इक्विटी बाजार में घरेलू निवेशकों की भागीदारी बढ़ी है.
Stock Market Live: सेंसेक्स और निफ्टी हरे निशान में, मेटल शेयरों में रैली, Tata Steel टॉप गेनर, SBI टॉप लूजर
स्मॉल कैप स्पेस में क्या करना चाहिए?
स्मॉल कैप फंड अधिक वोलेटाइल होते हैं और कभी-कभी इनमें तेज गिरावट दिखती है. हालांकि, समय के साथ उनके पास लार्ज कैप की तुलना में अधिक रिटर्न देने की क्षमता होती है. इन कंपनियों की ग्रोथ रेट अधिक हो सकती है और उनमें से कुछ को रीसेट किया जा सकता है. स्मॉल कैप फंडों में निवेश लंबी अवधि के लिए होना चाहिए, मसलन 5 साल से अधिक.
निवेशक याद रखें ये मंत्र
निवेशकों को बाजार की गिरावट का इस्तेमाल करना चाहिए. गिरावट के दौर में आपको आकर्षक वैल्यूएशन पर शेयर मिलते हैं. बाजार हमेशा के लिए नीचे नहीं आते हैं. इसलिए लंबी अवधि के निवेशक के लिए, करेक्शन का दौर इक्विटी में पैसे लगाने और लंबी अवधि के पैसा बनाने के अवसर की तरह होता है. निवेशक अपना एसेट एलोकेशन तय करें और निवेश में बने रहें. रोज रोज कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव पर ध्यान न दें.
मौजूदा और नए निवेशक क्या करें?
इक्विटी बाजार लंबी अवधि के लिए आपकी दौलत में इजाफा करते हैं. इक्विटी निवेश के जरिए बड़े रिटर्न के लिए आपको लंबी अवधि तक अपने निवेश को बनाए रखना होगा.
इसलिए एसेट एलोकेशन सही करें. रिस्क लेने की क्षमता और निवेश के लक्ष्य को देखकर निवेश करें. इक्विटी निवेश को कम से कम 3-5 साल के लक्ष्य के साथ शुरू करें. छोटी अवधि के लिए, आप बैंक डिपॉजिट और डेट फंड पर विचार कर सकते हैं.
सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIPs) और सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान (STPs) का इस्तेमाल करें.
किन सेक्टर्स को लेकर पॉजिटिव
भारत की अर्थव्यवस्था अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में मजबूत बनी रहेगी, मुख्य रूप से घरेलू खपत और खर्च के चलते. इसलिए डोमेस्टिक ओरिएंटेड सेक्टर्स जैसे फाइनेंशियल, कंज्यूमर, इंडस्ट्रियल और हेल्थकेयर पर ओवरवेट हैं. कमोडिटी की कीमतों में नरमी से भारत को फायदा हो सकता है. कैपेक्स साइकिल के रिवाइवल के शुरुआती संकेत भी दिख रहे हैं.
पैसिव फंड्स (इंडेक्स फंड्स) पर क्या है सलाह
पैसिव फंड्स इंडस्ट्री में निवेशकों की भागीदारी बढ़ी है. यह इंडस्ट्री एक्टिव फंडों की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है, हालांकि अभी इसका बेस कम है. पैसिव फंड में ग्रोथ काफी हद तक EPFO / अन्य PF ट्रस्टों के साथ-साथ एचएनआई और अन्य संस्थागत निवेशकों द्वारा ड्राइव की गई है. अभी पैसिव फंड कुल इंडस्ट्री एसेट का 15 फीसदी हिस्सा है और आगे मार्केट शेयर में और बढ़ोतरी की उम्मीद है. पैसिव फंडों की डिमांड मजबूत रहेगी.
म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में किस तरह के बदलाव
भारतीय म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है. साल दर साल ग्रोथ देखने को मिली है. रिटेल निवेशक अब इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स की तुलना में AuM के बड़े हिस्से का योगदान करते हैं. पिछले 12 महीनों में म्यूचुअल फंड अन्य डीआईआई के साथ बाजारों में नेट इन्वेस्टर रहे हैं, जबकि FPIs ने भारी मात्रा में पैसा निकाला है. मंथली बेसिस पर SIP AuM और अकाउंट में बढ़ोतरी इंडस्ट्री के लिए एक बड़ा और सपोर्ट देने वाला फैक्टर रहा है.
म्यूचुअल फंड में नए निवेशक क्या करें?
म्यूचुअल फंड में निवेश आपके फाइनेंशियल गोल, इन्वेस्टमेंट हॉरिजॉन के साथ रिस्क लेने की क्षमता पर बेस होना चाहिए. जोखिम ले सकते हैं और लंबी अवधि का लक्ष्य है तो एसेट के अधिक रेश्यो को इक्विटी जैसे एसेट क्लास में रखना चाहिए.
म्यूचुअल फंड में नए निवेशकों को एसआईपी या हाइब्रिड फंड जैसे बैलेंस्ड एडवांटेज फंड या लार्ज कैप डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड में निवेश करने पर विचार करना चाहिए. निवेश के पहले अपने स्तर पर एडवाइजर से सलाह लें ताकि उनका पोर्टफोलियो बेहतर बन सके.
मांगलिक कार्य से पहले राहु काल देखना क्यों होता है जरूरी? जानें इसका महत्व
News18 हिंदी 8 घंटे पहले News18 Hindi
© News18 हिंदी द्वारा प्रदत्त "मांगलिक कार्य से पहले राहु काल देखना क्यों होता है जरूरी? जानें इसका महत्व"
Rahu Kaal: हिंदू धर्म में शुभ मुहूर्त का बड़ा महत्व है. पूजा-पाठ, हवन, शादी, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यक्रम हों या फिर नई कार, बाइक या मकान लेना हो, सबसे पहले शुभ मुहूर्त देखा जाता है. पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि कोई भी शुभ कार्य करने से पहले राहु काल देखना बेहद जरूरी होता है. अगर राहुल काल का ध्यान नहीं रखते हैं तो कार्य में विघ्न आ सकता है. ऐसे में शुभ काम से पहले राहु काल देखना चाहिए. तो चलिए राहु काल का महत्व समझते हैं.
पंडित जी बताते हैं कि ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों का अपना समय और महत्व होता है. राहुकाल, गुलिक काल और यमगंड काल, इन तीनों कालों को संकट का काल माना गया है. हर दिन अलग-अलग समय पर तीनों रुझान कितने समय तक चलते हैं? काल आते हैं और उस समय अशुभ मुहूर्त होता है, इसलिए कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करने की सलाह दी जाती है. राहु को असुर और छाया ग्रह भी कहते हैं. हर दिन 90 मिनट तक राहुकाल का समय रहता है, जिसमें शुभ कार्य करने की मनाही होती है. राहु काल का समय इस प्रकार रहता है.रुझान कितने समय तक चलते हैं?
राहुकाल रुझान कितने समय तक चलते हैं? का समय
सोमवार: प्रात: 7:30 बजे से प्रात: 09:00 बजे तक
मंगलवार: दोपहर 03:00 बजे से शाम 4:30 तक
बुधवार: दोपहर 12:00 बजे से 1:30 तक
गुरुवार: दोपहर 1:30 बजे से 3:00 बजे तक
शुक्रवार: सुबह 10:30 बजे से 12:00 बजे तक
शनिवार: सुबह 09:00 बजे रुझान कितने समय तक चलते हैं? से 10:30 तक
रविवार: सायं 4:30 बजे से 06″00 बजे तक
राहुकाल में नहीं करें ये काम
ज्योतिषियों के अनुसार, राहुकाल में पूजा, हवन, मुंडन, गृह प्रवेश, विवाह या अन्य कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए. इस समय कोई भी नया व्यापार शुरू नहीं करना चाहिए. राहुकाल में यात्रा करना भी शुभ नहीं मानी जाती है. अगर जरूरी हो तो अपने इष्टदेव की पूजा-अर्चना करने के बाद मंगल यात्रा की कामना करते हुए सफर कर सकते हैं.
यह कहना कितना सही है कि क्रिकेट ने दूसरे खेलों का गला घोंटा है?
क्रिकेट में लाख अनियमितताओं के बावजूद खेल का स्तर बना रहा, जबकि अन्य खेल जो सरकार के अधीन रहे, वहां अनियमितताएं इस कदर हुईं कि खेल ही रसातल में चले गए. The post यह कहना कितना सही है कि क्रिकेट ने दूसरे खेलों का गला घोंटा है? appeared first on The Wire - Hindi.
क्रिकेट में लाख अनियमितताओं के बावजूद खेल का स्तर बना रहा, जबकि अन्य खेल जो सरकार के अधीन रहे, वहां अनियमितताएं इस कदर हुईं कि खेल ही रसातल में चले गए.
फाइल फोटो: रॉयटर्स/दानिश सिद्दीक़ी
लंबे समय से भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता को अन्य खेलों के लिए खतरा बताया जाता रहा है. एक तबका ऐसा भी है जो मानता है कि क्रिकेट की लोकप्रियता कॉरपोरेट घरानों की देन है. क्रिकेट कॉरपोरेट और सत्ता का खेल है और इन्हें ही लाभ पहुंचाने के लिए खेला जाता है. इसलिए इस खेल से परहेज किया जाये और इसकी लोकप्रियता को नशा न बनने दिया जाये, अन्यथा कॉरपोरेट और सत्ताधारियों की चांदी कटती रहेगी.
लेकिन अगर विचार करें तो कॉरपोरेट के खेल में हर खेल ही तब्दील हो चला है. फुटबॉल से लेकर हॉकी, बैडमिंटन, कुश्ती, टेनिस, कबड्डी सभी खेलों में कॉरपोरेट घरानों की दखल है. प्रीमियर बैडमिंटन लीग, प्रो कबड्डी लीग, प्रो रेसलिंग लीग क्या बिना कॉरपोरेट के दखल के आयोजित हो रही हैं?
फिर सिर्फ क्रिकेट में कॉरपोरेट के दखल का विरोध क्यों?
देश के विभिन्न खेल संघ जो सरकार के अधीन हैं, सभी में कॉरपोरेटर और नेताओं का हस्तक्षेप है. हर संघ में वे बड़े पदों पर काबिज हैं. खेल संघ के अंदर आर्थिक धांधली के आरोप उन पर अदालतों में चल रहे हैं. भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) में भ्रष्टाचार किसी से छिपा नहीं. कहते हैं कि बीसीसीआई को भ्रष्टाचार का रोग लगा है, पर रोग तो वो भी है कि छह सालों से अब तक खेल मंत्रालय स्पोर्टस कोड अपने अधीन खेल संघों में लागू नहीं करा पाया. क्योंकि खेल संघ करना नहीं चाहते, उनके पदाधिकारियों के निहित स्वार्थ इसके आड़े आ रहे हैं. देश के आधे से ज्यादा खेल संघ इसी के चलते भंग पड़े हैं.
बॉक्सिंग फेडरेशन का हाल देखिए. ओलंपिक में खिलाड़ी उतरते हैं पर भारतीय ध्वज के साथ नहीं, क्योंकि हमारे संघ के पास अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ की मान्यता ही नहीं रहती. ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि यहां भ्रष्टाचार है, सरकारी हस्तक्षेप है, अपारदर्शिता है.
आपको शिकायत है कि कॉरपोरेटर एन. श्रीनिवासन बीसीसीआई के अध्यक्ष रहे. लेकिन श्रीनिवासन के ही भाई एन. रामचंद्रन भी तो आईओए के अध्यक्ष हैं. जिन पर हॉकी इंडिया के अध्यक्ष नरिंदर बत्रा ने कई संगीन आरोप लगाए हैं. वहीं आईओए पर आए दिन अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ प्रतिबंध लगाता ही रहा है.
इसलिए क्रिकेट में कॉरपोरेट के दखल के चलते क्रिकेट को अछूता बनाने के बजाय जरूरत यह समझने की है कि यह बदलाव क्यों आया! आखिर क्यों कॉरपोरेट घराने खेलों में एंट्री पाने में सफल रहे और खेल उन पर निर्भर हो गये! ऐसा सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि सरकारें खेलों को प्रोत्साहन देने में नाकामयाब रहीं.
फुटबॉल को सरकारी छाते का सहारा रहा. भारतीय फुटबॉल टीम ने ओलंपिक खेला, लेकिन आज कहां खड़ा है भारत. पांच दशक से अधिक लंबा सफर तय कर लिया. ओलंपिक में भाग लेने के बाद हमें जमीन से उठकर आसमान में पहुंचना था, पर हम पाताल पहुंच गये. सरकारी तंत्र खा गया फुटबॉल को.
बास्केटबॉल आज देश में कांग्रेस-भाजपा की कुश्ती का अखाड़ा बना है. खिलाड़ी देश के बाहर भविष्य खोज रहे हैं. खेल मंत्रालय की भूमिका स्वयं पूरे मामले में संदिग्ध है.
वेटलिफ्टिंग नशे की गिरफ्त में है. और खुद एसोसिएशन इसमें लिप्त है, ऐसा वेटलिफ्टिंग एसोसिएशन से जुड़े रहे एक कोच खुद बताते है. लेकिन सरकार ने वेटलिफ्टिंग में डोपिंग की रोकथाम की क्या नीति बनाई? एक कोच ने ऐसे संगीन आरोप लगाये, तो क्या उनकी जांच कराई?
ऐसी ही व्यवस्था हॉकी को खा गयी. स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) में अनियमितताएं भी उजागर हैं. कॉमनवेल्थ घोटाला भी कौन भूल सकता है!
कह सकते हैं कि जब सरकारें खेलों को संभाल न सकीं, तब कॉरपोरेटर खेलों में दखल बना सके. खेलों को अपना स्तर उठाने के लिए उनकी जरूरत हुई. आज लगभग हर नामी एथलीट किसी न किसी कॉरपोरेटर के रहमो-करम पर खेल रहा रुझान कितने समय तक चलते हैं? है. वे उन्हें स्पांसर कर रहे हैं और उनकी लोकप्रियता के जरिए कमा रहे हैं. इसलिए सिर्फ क्रिकेट ही सत्ता और कॉरपोरेट का खेल नहीं, सारे खेल ही सत्ता और कॉरपोरेट के खेल बन गये हैं.
बस क्रिकेट के साथ एक अच्छी बात यह रही कि यहां लाख अनियमितताओं के बावजूद खेल का स्तर बना रहा. जबकि अन्य खेल जो सरकार के अधीन रहे, वहां अनियमितताएं इस कदर हुईं कि खेल ही रसातल में चले गये.
हालिया उदाहरण ओलंपिक में बॉक्सिंग और कुश्ती में पिछले ओलंपिक की अपेक्षा प्रदर्शन में आई गिरावट है. अब क्या ऐसी व्यवस्था के हवाले क्रिकेट को भी इसलिए कर दिया जाये कि वो सरकारी टीम कहलाए, न कि बीसीसीआई की.
इसलिए भले ही क्रिकेट पर कॉरपोरेट का कब्जा हो, पर जरा दूसरे खेलों पर नजर गड़ाइए, वहां दशकों से किनका कब्जा है! क्या चल रहा है! तब ज्ञात होगा सच. लेकिन क्रिकेट की आलोचना आसान है क्योंकि हमें क्रिकेट की ही तो जानकारी है बस.
दूसरे खेलों में भी यही चल रहा है. लेकिन जो मीडिया है वो क्रिकेट पर ही फोकस करता है क्योंकि क्रिकेट लोकप्रिय है. तो किसी को अन्य खेलों का पता नहीं चलता. वहीं जिन लोगों को क्रिकेट से आपत्ति है, वे दूसरे खेलों की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए क्या कर रहे हैं? क्यों उन खेलों को देखने नहीं जाते? सवाल यह भी है.
बात यह भी होती है कि एक क्रिकेटर पैसों के लिए खेलता है, देश के लिए नहीं. तो बात क्रिकेट के इतर दूसरे खिलाड़ियों की भी हो जाये. उन्हें पदक या देश के सम्मान की कितनी चिंता है! ये तब ही साबित हो गया था जब खेल मंत्रालय द्वारा चलाई गई टारगेट ओलंपिक पोडियम (टॉप) योजना के तहत उन्होंने पैसा लेने में और अपने परिजनों पर खर्च करने में धांधली की. इस पर देश के अंग्रेजी के एक प्रतिष्ठित अखबार ने बाकायदा एक श्रृंखला चलाई थी.
भारतीय फुटबाल टीम. (फाइल फोटो: पीटीआई)
वहीं क्रिकेट की लोकप्रियता ने दूसरे खेलों को खाया नहीं, बल्कि खेलों के लिए भारतीय समाज में स्पेस कायम रखा. क्रिकेट का तो हमें शुक्रगुजार होना चाहिए कि अस्सी के दशक में जब हॉकी रसातल में जा रही थी, हॉकी के स्वर्णिम दौर को इसी व्यवस्था ने खा लिया था और खेलों से भारतीयों का मोह भंग हो रहा था, तब क्रिकेट ने ही देश में खेल संस्कृति को जीवित रखा.
हॉकी से खाली हुआ स्पेस क्रिकेट ने भरा. खेलों में हमारा रुझान जिंदा रखा. हमें खेल प्रेमी बनाए रखा. वरना खेलों का अस्तित्व ही मिट जाता इस मुल्क से. आज जब दूसरे खेल अच्छा कर रहे हैं तो खेलों के प्रति यही रुझान उन्हें दर्शक दिला रहा है. क्रिकेट की लोकप्रियता ही है जो दूसरे खेलों को बचाए हुए है, अन्यथा आज खेलविहीन समाज में होते हम.
अंत में यह भी जानना जरूरी हो जाता है कि क्रिकेट को लोकप्रिय कॉरपोरेट घरानों ने नहीं, इस खेल के सरल स्वरूप ने बनाया.
अगर बल्ला भी नहीं है तो लकड़ी की फट्टी से 5 रुपये की बॉल खरीद कर, पत्थरों का स्टम्प बनाकर कहीं भी क्रिकेट खेल सकते हैं. घर की छत पर, धूल भरे मैदान में, धूप में, बरसात में, सड़क पर, कीचड़ में, समुद्र किनारे, तालाब के मुहाने.
इसके उलट हॉकी, फुटबॉल, बास्केटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन, वेटलिफ्टिंग, कुश्ती, गोल्फ, निशानेबाजी, तीरंदाजी जैसे खेल आप इतनी सहजता से कहीं भी, कैसे भी मौसम में, कभी भी नहीं खेल सकते. अपेक्षाकृत ये खेल मंहगे भी हैं और इन्हें खेलने के लिए विशेष खेल सामग्री की जरूरत होती है. निशानेबाजी के लिए आप रुझान कितने समय तक चलते हैं? लाखों की बंदूक नहीं खरीद सकते.
क्रिकेट की यही सरलता भारतीयों के दिल में इस खेल को गहराई तक उतारने में कामयाब रही. दूसरे खेल क्रिकेट के चलते नहीं, अपने जटिल स्वरूप के चलते पिछड़े. गरीब देश में अधिकांश लोगों के पास इतना पैसा नहीं था कि वह उन मंहगे खेलों से खुद को जोड़ पाता. क्रिकेट उम्मीद से अधिक सस्ता था तो भारतीयों को भा गया. अगर क्रिकेट नहीं होता तो भारत में खेल संस्कृति का खात्मा होते देर नहीं लगती.
सच तो यह है कि हर लोकप्रिय चीज के पीछे कॉरपोरेटर भागते हैं. क्रिकेट ने अपने सरल स्वरूप के चलते जो लोकप्रियता हासिल की, कॉरपोरेटर तो उसे भुनाने के लिए बाद में आये.