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अनुगामी रोक

अनुगामी रोक

अनुगामी रोक

(द्वितीय सर्ग) भाग 3

कर्ण मुग्ध हो भक्ति-भाव में मग्न हुआ-सा जाता अनुगामी रोक है ,
कभी जटा पर हाथ फेरता , पीठ कभी सहलाता है ,
चढें नहीं चीटियाँ बदन पर , पड़े नहीं तृण-पात कहीं ,
कर्ण सजग है , उचट जाय गुरुवर की कच्ची नींद नहीं।

‘ वृद्ध देह , तप से कृश काया , उस पर आयुध-सञ्चालन ,
हाथ , पड़ा श्रम-भार देव पर असमय यह मेरे कारण।
किन्तु , वृद्ध होने पर भी अंगों में है क्षमता कितनी ,
और रात-दिन मुझ पर दिखलाने रहते ममता कितनी।

‘ कहते हैं , ‘ ओ वत्स! पुष्टिकर भोग न तू यदि खायेगा ,
मेरे शिक्षण की कठोरता को कैसे सह पायेगा ?
अनुगामी यदि बना कहीं तू खान-पान में भी मेरा ,
सूख जायगा लहू , बचेगा हड्डी-भर ढाँचा तेरा।

‘ जरा सोच , कितनी कठोरता से मैं तुझे चलाता हूँ ,
और नहीं तो एक पाव दिन भर में रक्त जलाता हूँ।
इसकी पूर्ति कहाँ से होगी , बना अगर तू संन्यासी ,
इस प्रकार तो चबा जायगी तुझे भूख सत्यानाशी।

‘ पत्थर-सी हों मांस-पेशियाँ , लोहे-से भुज-दण्ड अभय ,
नस-नस में हो लहर आग की , तभी जवानी पाती जय।
विप्र हुआ तो क्या , रक्खेगा रोक अभी से खाने पर ?
कर लेना घनघोर तपस्या वय चतुर्थ के आने पर।

‘ ब्राह्मण का है धर्म त्याग , पर , क्या बालक भी त्यागी हों ?
जन्म साथ , शिलोञ्छवृत्ति के ही क्या वे अनुरागी हों ?
क्या विचित्र रचना समाज की ? गिरा ज्ञान ब्राह्मण-घर में ,
मोती बरसा वैश्य-वेश्म में , पड़ा खड्‌ग क्षत्रिय-कर में।

Prasangik : चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है संस्कृति का अमृतगान, यहां तो कठघरे में खड़े हुए मर्यादा पुरुषोत्तम

Prasangik : भारतीय संस्कृति का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा

Chaitra Shukla Pratipada 2022 सीता त्याग के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम को भी जहां कठघरे में खड़ा किया जा सकता है और जहां अनुगामी अपने आराध्य के समान पूजित हो जाता है ऐसी वंदनीय संस्कृति अपने नववर्ष के अभिनंदन के लिए उत्सुक है।

लखनऊ, आशुतोष शुक्ल। जहां जीवन यज्ञ है और धर्म पथप्रदर्शक तो है किंतु कभी बाध्यकारी न हो सका, धर्म व पुरोहिताई की विभाजन रेखा जहां स्पष्ट है..धर्म जहां सूर्यपुत्र है क्योंकि सूर्य प्रकाशवान है, ऐसी अनुपम और सर्वमंगल की कल्याणकारी कामना से प्रदीप्त भारतीय संस्कृति का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अनुगामी रोक शनिवार से आरंभ है।

जहां ईश्वर से भी प्रश्न करने में कोई अचरज नहीं, भक्ति जब चरम पर पहुंचे तो आराध्य और आराधक जहां एक हो जाते हैं और श्रद्धा जहां इतनी निर्दोष कि ईश्वर को भी अपना सखा व बंधु बना लेती है, उससे झगड़ा भी कर लेती है, उसे मनाती है तो रूठ भी जाती है, आंतरिक सुधार की ऐसी अंत:चेतना से प्रवाहित देश का नववर्ष आ गया है।जहां धर्म ने अपने को न केवल सदा आलोचना की परिधि में रखा बल्कि जो अपने भीतर से ही अपने आलोचक पैदा करता रहा, जहां उसने अपने विरुद्ध चले आंदोलनों से सीखा और ऐसा करते हुए अपने को अधिक गहन, उदार, व्यापक और विनम्र बनाता गया, उस विलक्षण परंपरा का नया वर्ष सम्मुख है।

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जिसके उपनिषदों में सह अस्तित्व की भावना इतनी प्रधान है कि धर्म उचित अनुचित की व्याख्या में अपने को व्यस्त कर लेता अनुगामी रोक है और अपनी धारणाओं, स्थापनाओं, सिद्धांतों, मानकों, विचारों, आग्रहों और आस्था को वह निजी व्यवहार तक ही रखता अनुगामी रोक है, उन्हें किसी दूसरे पर बलात थोपता नहीं..ऐसी लचीली सनातन संस्कृति का नववर्ष मंगलगान के लिए उपस्थित है। जो देश अपने ऋषियों से जाना जाता है, न कि अपने राजाओं से, जहां गुरुकुल राजाओं के निर्माण की प्रयोगशाला होते और जहां गुरुओं ने राजा को कभी देश से ऊपर नहीं होने दिया, गुरु को जहां गोविंद से ऊपर माना गया और जहां देश को दिशा देने वाले ऋषियों की परंपरा आज भी समाज को आलोकित करती है और जिसके वज्जि में पहला लोकतंत्र आया, ऐसी विराट संस्कृति वाले राष्ट्र का नूतन वर्ष प्रत्यक्ष है।

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जहां शिव के पालन और रुद्र के संहार का अंतर समझते हुए दोनों का पूजन होता है और जहां महर्षि याज्ञवल्क्य की वह सूक्ति कभी नहीं भूली गई कि विजित पर अपनी मान्यताएं मत लादो और उसे वैसा ही रहने दो जैसा युद्ध में पराजय से पूर्व वह रहता था। पराजित के धार्मिक विश्वासों का सम्मान करना जो देश सिखाता है, नववर्ष वहां प्रसन्नता के पुष्प खिलाने आ चुका है।

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याज्ञवल्क्य का गार्गी और मैत्रेयी के साथ हुआ संवाद सहस्त्रों वर्ष बाद भी शिक्षण-प्रशिक्षण व आनंद का जैसा मंत्र बना हुआ है, द्रौपदी के तीखे प्रश्न जहां अब भी अनुत्तरित हैं और उस अदम्य स्त्री के प्रति सम्मान का प्रबल भाव लाते हैं, सीता त्याग के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम को भी जहां कठघरे में खड़ा किया जा सकता है और जहां अनुगामी अपने आराध्य के समान पूजित हो जाता है, ऐसी वंदनीय संस्कृति अपने नववर्ष के अभिनंदन के लिए उत्सुक है।

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नास्तिक की नास्तिकता के पीछे के विश्वास का भी जो सम्मान करे और ऐसा अपूर्व लोक रच दे कि गारियां भी जहां मांगलिक अवसरों की अनिवार्यता बन जाएं, जहां वृक्षों में देवता दिखते हों, जहां नदियों की स्तुति आरती होती हो और गंगा के दर्शन मात्र में जो देश मु1ित निहार लेता हो, महाभारत के वनपर्व में जहां गंगा के दर्शन स्पर्श स्नान पान से जन्म मरण के बंधन दूर होने का सुंदर वर्णन हो, ऐसी अलौकिक संस्कृति का नया वर्ष लोक कल्याणकारी हो। आचार्य क्षितिमोहन ने भारत की संस्कृति को एक ऐसा वृक्ष माना जिस पर शाखाएं अपने आप आती गईं, जो अपने आप ही फलों से लदता गया, अपने आप ही जिसके पुराने पत्ते झरते गए और नए आते गए और जो सत्य, दया तप व दान के चार पैरों पर स्थिर भी है और अनुगामी रोक गतिमान भी। सब निरोगी हों और सब प्रसन्न हों, ऐसी अनुपम अभिलाषा रखने वाली सनातन संस्कृति का नववर्ष में प्रवेश मंगलकारी हो।

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जो धर्म मूल में उदार है किंतु जिसका वाह्य रूप अब भी कठोर है तो उसे पुन: लचीला बनाने का दायित्व उन सबका है जो शनिवार को नूतन वर्ष की बधाई लेने देने जा रहे हैं. ।

मानव की आराध्य देव को चुनौती

तेरे आघात भले हों निर्मम,
मैं छिन्न-भिन्न हो गिर जाऊँ।
तेरे अजेय बल-विक्रम से
पर क्या मैं यूँ डर जाऊँ?
मानव शोणित का ताप अतुल, फिर उठ-उठ यही पुकारूँगा --
हे रूद्र! मैं नहीं हारूँगा!

चाहे कितने ही व्यवधान रचो,
पर रोक मुझे न पाओगे।
मैं मर्त्य और तुम अजर-अमर,
पर जीत कभी न पाओगे।
तुम प्राण भले मेरे ले लो, पर जीवित यूं ललकारुंगा --
हे रूद्र! मैं नहीं हारूँगा!

तेरे त्रिशूल का भय नहीं मुझे,
डमरू की डम–डम हुयी व्यर्थ।
हे त्रिनेत्र! हे प्रलयंकर! सुनो,
अब तांडव का खो गया अर्थ।
विध्वंशों के अवशेषों पर, मैं सॄजन रूप फिर धारुंगा!
हे रूद्र! मैं नहीं हारूँगा!

मैं अनुगामी तेरा ही तो हूं,
फिर बोलो कैसे हार सहूँ?
दु:ख, दारूण को मैं शीश नवा,
क्या तुझको लज्जित कर दूँ?
मानव की जय का वर दो, मैं तन-मन तुझ पर वारुंगा!
हे रूद्र! मैं नहीं हारूँगा!

कैलाश विजयवर्गीय भड़के सीएम शिवराज पर, लेटर में लिखीं ये बड़ी बात

भोपाल। सीहोर में रुद्राक्ष महोत्सव स्थगित होने का विवाद तूल पकड़ता जा रहा है। इस आयोजन के स्थगित होने के बाद अभी तक विपक्षी दल ही भाजपा सरकार को निशाने पर ले रहे थे। लेकिन मंगलवार शाम भाजपा के बड़े पदाधिकारी भी इसको लेकर शिवराज पर सवाल उठाने लगे। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव ने आयोजन स्थगित होने पर मुख्यमंत्री शिवराज को संबोधित करते हुए पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने सीहोर प्रशासन पर सवाल उठाया है, साथ ही सीएम शिवराज से भी कड़े सवाल पूछे हैं।

सीहोर में जो हुआ वह दुखी करने वाला कैलाश विजयर्गीय ने पत्र में लिखा है कि 28 फरवरी को सीहोर में जो कुछ हुआ उससे बहुत ज्यादा दुख हुआ है। सीहोर जिला प्रशासन की अकर्मण्यता से मेरे जैसे सनातनियों को आघात पहुंचा है। कैलाश ने मुख्यमंत्री पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि विगत 17 वर्ष से आप प्रांत के मुखिया हैं। आखिर ऐसी कौन सी विपदा आ गई कि पंडित प्रदीप मिश्रा पर इतना दबाव बनाया कि उन्हें भारी मन से कथा को समाप्त करना पड़ा। कैलाश ने आगे लिखा है कि भोपाल में इज्तिमा का आयोजन होता है। लाखों लोग शामिल होते हैं। कई मंत्रियों को जाम में फंसना पड़ता है। लेकिन कभी ऐसा सुनाई नहीं दिया कि इज्तिमा को रोक दिया गया है। क्या सीहोर का प्रशासन इतना नकारा था कि इस आयोजन की सूचना के बावजूद व्यवस्था नहीं जुटाई जा सकी? क्या जिम्मेदार अधिकारी इतने अदूरदर्शी थे कि वो भांप नहीं सके कि 11 लाा का अनुष्ठान है तो श्रद्धालुओं का आवाजही भी रहेगी? क्या सीहोर के प्रशासनिक अमले की इतनी हिम्मत है कि इतना बड़ा निर्णय कर ले?

भाजपा के राष्ट्रीय महासिव ने आगे लिखा है कि शिवराज जी ऐसे ही अनगिनत सवालों के जवाब नहीं मिल रहे हैं। उन्होंने आगे लिखा कि यह आपकी ही दूरदर्शिता थी कि अल्प समय में ही कुंडलपुर में आयोजित पंच कल्याण महोत्सव इस सदी का अभूतपूर्व आयोजन रहा। आपके ही कार्यकाल में सिंहस्थ जैसा भव्य और दिव्य आयोजन हुआ। शिवराज जी सीहोर के अकर्मण्य प्रशासन के चलते आपकी छवि पर असर पड़ा है। आपको भी यह सब बताने में कष्ट और पीड़ा हो रही है। सीहोर का प्रशासन इस तरह से निकृष्ट साबित होगा यह कल्पना से परे है। कैलाश विजयवर्गीय ने पत्र में आगे लिखा है कि मेरे और आप जैसे सनातनी तो शिव के अनुगामी हैं। भगवान शिव ने जैसे विषपान किया वैसे ही हम भी कर लेंगे। लेकिन शिवरात्रि के महापर्व पर देशभर से आए शिवभक्तों की क्या गलती थी? गलती तो शुद्ध रूप से सीहोर प्रशासन की है। उन्होंने आगे लिखा है कि सीहोर प्रशासन को जाकर प्रदीप मिश्रा जी से माफी मांगनी चाहिए और कथा फिर से शुरू होनी चाहिए। मुझे विश्वास है कि आप प्रशासन के खिलाफ सख्त कार्यवाही करेंगे और कथा फिर से शुरू हो, ऐसा प्रयास करेंगे।

गौरतलब है कि भोपाल-इंदौर हाईवे पर सीहोर के पास चितावलिया में आज से पंडित प्रदीप मिश्रा की ओर से सात दिन का आयोजन होने वाला था। इसके पहले कल लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने के कारण राज्य के इस बेहद अहम मार्ग पर करीब 40 किलोमीटर लंबा जाम लग गया। हालात ऐसे हो गए कि कई स्थानों पर यातायात डायवर्ट करना पड़ा। लोग देर रात तक जाम में फंसे रहे। इसी बीच पंडित प्रदीप मिश्रा ने भावुक अंदाज में लोगों के बीच ये घोषणा की कि कुछ दबाव के चलते उन्हें कथा स्थगित करनी पड़ रही है और लोग अपने घर जाकर ऑनलाइन माध्यम से ही कथा सुनें। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रदेश सरकार पर सवाल उठाए थे। वहीं गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पंडित प्रदीप मिश्रा से बात की थी।

अनुगामी रोक

ई-काव्य: हिंदी कविता और शायरी

Saturday, November 29, 2014

तेरी कोशिश, चुप हो जाना

तेरी कोशिश, चुप हो जाना,
मेरी ज़िद है, शंख बजाना .

ये जो सोये, उनकी नीदें
सीमा से भी ज्यादा गहरी
अब तक जाग नहीं पाये वे
सर तक है आ गई दुपहरी;
कब से उन्हें, पुकार रहा हूँ
तुम भी कुछ, आवाज़ मिलाना.

तट की घेराबंदी करके
बैठे हैं सारे के सारे,
कोई मछली छूट न जाये
इसी दाँव में हैं मछुआरे.
मैं उनको ललकार रहा हूँ,
तुम जल्दी से जाल हटाना.

ये जो गलत दिशा अनुगामी
दौड़ रहे हैं, अंधी दौड़ें,
अच्छा हो कि हिम्मत करके
हम इनकी हठधर्मी तोड़ें.
मैं आगे से रोक रहा हूँ -
तुम पीछे से हाँक लगाना .

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