व्यापारिक विदेशी मुद्रा

लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को संभालने की कोशिश में तालिबान, विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी
महंगाई को मात देने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए तालिबान, अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपने बचाव में आने की अपील कर रहा है और अमेरिका द्वारा जब्त किए गए 7 अरब डॉलर से अधिक विदेशी मुद्रा भंडार की मांग कर रहा है.
युद्ध से तबाह अफगानिस्तान में घरेलू और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए गुरुवार को काबुल में शुरू हुई एक अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में 700 से अधिक कंपनियां भाग ले रही हैं. 2021 में तालिबान के काबुल में काबिज होने के बाद अफगानिस्तान की 22 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था 20 प्रतिशत तक गिर चुकी है. इसकी वजह से यहां के लोग भारी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं. कई तो जीवित रहने के लिए अंग व्यापार में फंस गए हैं.
हालांकि, विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के व्यापारिक विदेशी मुद्रा अनुसार इस देश में “आर्थिक स्थिरता के संकेत” नजर आ रहे हैं और जीवनचर्या में भी सुधार हुआ है. लेकिन देश की दयनीय स्थिति अभी भी बनी हुई है और महंगाई की वजह से कल्याणकारी कदम भी नाकाफी साबित हो रहे हैं.
महंगाई को मात देने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए तालिबान, अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपने बचाव में आने की अपील कर रहा है और अमेरिका व्यापारिक विदेशी मुद्रा द्वारा जब्त किए गए 7 अरब डॉलर से अधिक विदेशी मुद्रा भंडार की मांग कर रहा है.
‘अफगानिस्तान में निवेश के लिए माहौल बेहतर’
काबुल में प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह के दौरान अफगानिस्तान के दूसरे उपप्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल सलाम हनाफी ने कहा कि “देश में निवेश के लिए माहौल बेहतर है और घरेलू और विदेशी निवेशक निवेश कर सकते हैं.” टोलो न्यूज के अनुसार उपप्रधानमंत्री ने कहा, “अफगानिस्तान में निवेश के लिए सभी क्षेत्र सभी के लिए उपलब्ध हैं.”
अफगानिस्तान में तांबा, सोना, तेल, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम, बॉक्साइट, कोयला, लौह अयस्क, लिथियम और क्रोमियम सहित अन्य खनिजों की विशाल संपदा है. जिनकी कीमत 3 ट्रिलियन अमेरिकी डालर मानी जाती है. देश में 23,000 मेगावाट हाइड्रोपावर पैदा करने की भी क्षमता है.
तालिबान के कब्जे के बाद अमेरिका और यूरोप सहित दुनिया की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने अफगानिस्तान को दयनीय स्थिति में छोड़ दिया. जबकि पहले ये देश यहां पुनर्निर्माण कार्यक्रमों और उद्योगों के विकास का काम कर रहे थे. महिलाओं और अल्पसंख्यकों के साथ खराब व्यवहार के लिए अंतरराष्ट्रीय निंदा का सामना करने वाला तालिबान अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है. यहां तक कि उसके पड़ोसी देश, जैसे पाकिस्तान और ईरान, भी यहां कोई बड़ा निवेश करने से बच रहे हैं.
पश्चिम दूर, चीन करीब
तालिबान सार्वजनिक रूप से यह कहता रहा है कि अफगानिस्तान के सामने मौजूद आर्थिक संकट से बाहर निकलने के लिए वह चीन पर निर्भर है. दूसरी ओर बीजिंग ने भी काबुल में अपना दूतावास चालू रखते व्यापारिक विदेशी मुद्रा व्यापारिक विदेशी मुद्रा हुए अपना समर्थन जारी रखा है. चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने मार्च में देश का दौरा किया था और “गैर-क्षेत्रीय ताकतों द्वारा अफगानिस्तान पर लगाए गए राजनीतिक दबाव और आर्थिक प्रतिबंधों” की निंदा की व्यापारिक विदेशी मुद्रा थी. इस साल की शुरुआत में विनाशकारी भूकंप से प्रभावित अफगानिस्तान में यह मानवीय सहायता कार्यक्रम की घोषणा करने वाला पहला देश था.
चीन यहां के व्यापारिक विदेशी मुद्रा विशाल लिथियम भंडार पर नजर गड़ाए हुए है. इसका उपयोग बैटरी बनाने में किया जाता है. चीन पेशावर-काबुल मोटरवे के निर्माण पर काबुल के साथ “सक्रिय रूप से जुड़ा” है. इस मोटरवे से अफगानिस्तान चीन व्यापारिक विदेशी मुद्रा के बेल्ट एंड रोड परियोजना के करीब आ जाएगा.व्यापारिक विदेशी मुद्रा
बीजिंग वाखन कॉरिडोर के निर्माण पर भी सहयोग कर रहा है, जो अफगानिस्तान के पूर्वोत्तर में एक संकीर्ण कॉरिडोर है. यह चीन के झिंजियांग प्रांत और पाकिस्तान व मध्य एशिया से जुड़ता है. इस कॉरिडोर में इस साल अपने-अपने नियंत्रण को लेकर तालिबान और पाकिस्तानी सेना के बीच झड़पें हुई थीं. एक बार पूरा हो जाने पर वखान गलियारा अफगानिस्तान से प्राकृतिक संसाधनों को निकालने और उन्हें सीधे चीन में लाने के लिए प्रवेश द्वार के रूप में काम करेगा. चीनी कदम से चिंतित अमेरिका ने कहा है कि बीजिंग द्वारा निवेश “पश्चिम के लिए सुरक्षा और सुशासन की दिशा में चुनौतियां” पेश करेगा.
जयशंकर-बेयरबॉक के बीच आज होगी अहम वार्ता, इन मुद्दों पर चर्चा संभव
नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर (External Affairs Minister S Jaishankar) और जर्मनी (Germany) की उनकी समकक्ष एनालेना बेयरबॉक (anlena barebock) के बीच सोमवार को होने वाली वार्ता में चीन के साथ भारत के संबंध (India’s relations with China) और यूक्रेन पर रूस के युद्ध (Russia’s war on Ukraine) के नतीजों पर चर्चा होने की संभावना है। बेयरबॉक दो दिवसीय यात्रा पर सोमवार को दिल्ली पहुंच रही हैं।
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जर्मनी के दूतावास द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, बेयरबॉक ऐसे वक्त में भारत की यात्रा कर रही हैं, जब यूक्रेन पर रूस के युद्ध के वैश्विक नतीजे सामने आ रहे हैं। बर्लिन में जर्मनी के संघीय विदेश कार्यालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि दो दिवसीय यात्रा के दौरान तेल, कोयला और गैस के अलावा ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग पर भी बातचीत की जाएगी।
दूतावास ने कहा, भारत के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर के साथ बेयरबॉक की वार्ता में चीन के साथ भारत के संबंधों के साथ ही यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध और उसके नतीजों पर चर्चा किए जाने की संभावना है, उदाहरण के लिए ऊर्जा क्षेत्र में।