Trading की परिभाषाएं और अर्थ

क्षेत्रीय संगठन
सरल शब्दों में जब दो या दो से अधिक देश मिलकर किसी उद्देश्य के लिए कोई संगठन बनाते हैं, उन्हें क्षेत्रीय संगठन कहते हैं । जिनका उद्देश्य आपसी व्यापार को बढ़ावा देना और आपसी संबंधों को मज़बूत करना होता है ।
क्षेत्रीय संगठन का अर्थ
जब किसी क्षेत्र में स्थित देश अपने कुछ विशेष उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, किसी संगठन का निर्माण कर लेते हैं । तो ऐसे संगठन को ही क्षेत्रीय संगठन कहा जाता है । क्षेत्रीय संगठन जैसे यूरोपीय संघ, आसियान, सार्क यह सब क्षेत्रीय संगठन है ।
क्षेत्रीय संगठन क्यों बनाये जाते हैं ?
क्षेत्रीय संगठन आपसी बातचीत को बढ़ावा देने के लिए, विवादों का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान करने के लिए, आपसी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए और आर्थिक विकास व आपसी व्यापार को तेज करने के लिए । और उन को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय संगठन वही देश बनाते हैं, जो मौलिक रूप से एक दूसरे के निकट होते हैं, नजदीक होते हैं । यानी की भौगोलिक निकटता क्षेत्रीय संगठन के निर्माण के लिए आवश्यक है । बिना भौगोलिक निकटता के क्षेत्रीय संगठन आसानी से नहीं बन सकते । क्योंकि भौगोलिक रूप से जो निकट स्थित देश होते हैं, वह एक दूसरे के बाजार Trading की परिभाषाएं और अर्थ का आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं । एक दूसरे के साथ सड़क और रेल से आसानी से जुड़े होते हैं । और अपनी समस्याओं का समाधान बातचीत के जरिए आसानी से कर लेते हैं । इसलिए भौगोलिक रूप से निकट स्थित देश ही क्षेत्रीय संगठन बनाते हैं ।
क्षेत्रीय संगठन दो तरह के होते हैं ।
इस Post के अंदर हम बात करेंगे यूरोपीय संघ और आसियान की । तो Detail में जानते हैं ।
1 यूरोपीय संघ (European Union)
दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने यूरोप के पूंजीवादी देशों की सहायता के लिए एक योजना बनाई और 1957 में ‘यूरोपीय आर्थिक समुदाय’ का निर्माण किया । ताकि यूरोप के जितने भी पूंजीवादी देश हैं, उनके बीच आपसी व्यापार हो । सहयोग को और विकास को बढ़ावा मिले और 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद सोवियत संघ से अलग हुए यूरोपीय देश भी संगठन में शामिल हो गए । इसीलिए 1992 ‘यूरोपीय आर्थिक समुदाय’ को समाप्त करके “यूरोपीय संघ” बना दिया गया ।
यूरोपीय संघ का महत्व (Importance of European Union)
यूरोपीय संघ जब से बना है । तब से यूरोपीय संघ लगातार तरक्की करता जा रहा है और आज यूरोपीय संघ अमेरिकी वर्चस्व के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गया है । 2005 में यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई क्योंकि इसका सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी 12000 अरब डॉलर था जो जो कि अमेरिका से बहुत ज्यादा था यूरोपीय संघ की जो मुद्रा यूरो है । यूरो अमेरिकी डॉलर के लिए चुनौती बन गया है क्योंकि विश्व की मार्केट में यूरो का प्रभाव डॉलर से 3 गुना ज्यादा है । यूरोपीय संघ के देश WTO (World Trade Organization) यानी विश्व व्यापार संगठन के अंदर बड़ी-बड़ी भूमिका निभाते हैं और डब्ल्यूटीए के निर्णय को प्रभावित करते हैं । इसी तरीके से फ्रांस को यूएन की सुरक्षा परिषद के अंदर स्थाई सदस्यता मिली हुई है । यूरोपीय संघ यूएन के अंदर भी बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं । यूरोपीय सेना अमेरिका के बाद सबसे बड़ी सेना मानी जाती है और यूरोपीय संघ का रक्षा बजट अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा है । इसलिए अमेरिका के बाद कोई देश होगा जो जिसका वर्चस्व होगा वह होगा यूरोपीय संघ ।
हालांकि यूरोपीय संघ के सामने भी आज के समय बहुत सारी चुनौतियां हैं जिसकी वजह से यह संगठन अमेरिका को पीछे नहीं छोड़ पाता ।
यूरोपीय संघ के मार्ग में बाधाएं या चुनौतियां
पहली चुनौती Trading की परिभाषाएं और अर्थ है कि जो यूरोपीय संघ के देश हैं, उन्होंने अपना एक साझा संविधान बनाने की कोशिश की । लेकिन उनकी यह कोशिश नाकाम रही, यानी कि यूरोपीय संघ के अंदर जितने भी देश हैं, उन सब के कानून अलग अलग हैं । 2003 में अमेरिका ने इराक पर हमला किया, तो ब्रिटेन ने तो अमेरिका का साथ दिया । लेकिन फ्रांस और जर्मनी ने अमेरिका का साथ नहीं दिया । इससे यह पता लगता है कि यूरोप संघ के देशों में आपस में एकता नहीं है । यूरोपीय संघ के जितने भी देश हैं उन सब की विदेश नीतियां भी अलग अलग है । जिससे आपस में विवाद पैदा होते रहते हैं । और यूरो के मामले में भी यूरोप में एकता नहीं पाई Trading की परिभाषाएं और अर्थ जाती । जैसे कि स्वीडन और डेनमार्क में यूरो का विरोध किया है । सबसे बड़ी बात जून 2016 में ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग हो गया इसे ब्रेक्जिट के नाम से भी जाना जाता है । इससे तो यूरोपीय संघ और भी ज्यादा कमजोर हो गया है क्योंकि ब्रिटेन के पास सुरक्षा परिषद के अंदर स्थाई सदस्यता है और ब्रिटेन सैनिक और आर्थिक रूप से भी शक्तिशाली है और ब्रिटेन यूरोप का एक शक्तिशाली देश था । जब ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग हो गया तो यूरोपीय संघ बहुत ही कमजोर हो गया ।
आइये अब बात करते हैं, आसियान की ।
आसियान यानी दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का संगठन
ASEAN (Association of South East Asian Nation)
आसियान यानी कि एसोसिएशन आफ साउथईस्ट एशियन नेशन दक्षिण पूर्वी एशिया के 5 देशों इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड ने मिलकर 1967 में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए । जिससे कि आसियान Trading की परिभाषाएं और अर्थ की स्थापना हो गई । कुछ सालों बाद ब्रूनेई, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया और म्यांमार भी आसियान में शामिल हो गए । इस तरीके से वर्तमान में आसियान में पूरे 10 देश शामिल है । आसियान की स्थापना आर्थिक विकास को तेज करने सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देने के लिए की गई थी ।
आसियान का महत्व (Importance of ASEAN)
आसियान दुनिया का एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है । इसीलिए इसका प्रभाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है । आसियान के सभी देश आपसी मेल मिलाप और सहयोग की नीति का पालन करते हैं । इस मेल मिलाप की नीति को कहा जाता है – आसियान शैली – जिससे विकास को तेजी से बढ़ावा मिलता है । 2003 में आसियान ने आर्थिक समुदाय, सुरक्षा समुदाय, सामाजिक और सामाजिक और सांस्कृतिक समुदाय की नीति को अपनाया । आसियान भी अमेरिका की तरह हर क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ावा देना चाहता है ।
आसियान के सभी देशों में एक दूसरे के खिलाफ सैनिक शक्ति का प्रयोग ना करने की सहमति है । जिससे आपसी बातचीत को बढ़ावा मिलता है और समस्याओं का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान हो जाता है । आसियान के देशों ने अपनी सुरक्षा नीति और विदेश नीति में तालमेल बैठाने के लिए 1994 में आसियान क्षेत्रीय मंच बनाया और आसियान के देशों ने अपनी व्यापार की बाधाओं को समाप्त किया है । इसके अलावा सांझा बाजार तैयार किया है जिससे आपसी व्यापार को और विकास को बहुत तेजी से बढ़ावा मिला है ।
और तो और यहां तक कि आशियान ने अपने भविष्य के बारे में भी पहले से सोच लिया है । भविष्य के लिए एक दस्तावेज जारी किया है जिसे मिशन 2020 के नाम से जाना जाता है । जिसमें आशियान ने अपने भविष्य की नीतियों को और स्थिति को स्पष्ट करने की कोशिश की है । विजन 2020 के जरिये सबसे पहले यह बताया गया है कि आसियान देशों के बीच आपसी बातचीत को बढ़ाया जाएगा और समस्याओं का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान किया जाएगा । आसियान देशों के संबंधों को चीन और एशियाई देशों के साथ बढ़ाया जाएगा । आसियान देशों के संबंधों को दुनिया के दूसरे क्षेत्रीय संगठनों के साथ भी बढ़ाया जाएगा । जैसे कि यूरोपीय संघ, सार्क या और आसियान के प्रभाव को हर क्षेत्रीय क्षेत्र में बढ़ाया जाएगा चाहे वह आर्थिक क्षेत्र में सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र या सैनिक क्षेत्र हो ।
तो दोस्तो ये था क्षेत्रीय संगठन यानी यूरोपीय संघ और आसियान के बारे में । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!
लेखांकन सिद्धांतों
लेखांकन सिद्धांत मानक प्रथाएं हैं जिनका पालन कंपनियां अपनी वित्तीय रिकॉर्डिंग, तैयार करने और प्रस्तुत करने में करती हैंबयान. एक कंपनी वित्तीय बनाने Trading की परिभाषाएं और अर्थ के लिए बाध्य हैबयान स्वीकार्य और व्यवहार्य लेखांकन सिद्धांतों के अनुसार ताकि कंपनी के मामलों की एक निष्पक्ष और सटीक तस्वीर सामने आ सके।
भारत में, सामान्य सिद्धांत भारतीय हैंलेखांकन मानक और लेखा मानकों। अपरिवर्तनीय सिद्धांत कंपनियों के विभिन्न वित्तीय विवरणों की तुलना करने में मदद करते हैं। मान लीजिए कि दो कंपनियां समान सिद्धांतों का पालन करती हैं, तो इन दोनों संस्थाओं के परिणामों की एक दूसरे के साथ तुलना की जा सकती है।
लेखांकन सिद्धांतों के लाभ
भारत में लेखांकन सिद्धांतों से प्राप्त होने वाले कुछ लाभ इस प्रकार हैं:
- वस्तुओं को व्यय के रूप में पहचानने में मदद Trading की परिभाषाएं और अर्थ करता है,आय, दायित्व या संपत्ति
- उस राशि को समझने में सहायता करता है जिस पर आइटम को खातों में पहचाना जाना चाहिए
- इन वस्तुओं को प्रस्तुत करने में मदद करता है aबैलेंस शीट या वित्तीय विवरण
- वस्तुओं की मान्यता के अनुसार किए जाने वाले आवश्यक प्रकटीकरण प्रदान करता है
लेखांकन सिद्धांतों के साथ, कंपनियों को वित्तीय विवरण तैयार करने और प्रस्तुत करने के मामले में गहन मार्गदर्शन मिलता है। यह विसंगतियों की संभावना को कम करता है और एक सटीक तस्वीर प्रदान करता है जो तुलना को और भी आसान बनाता है।
प्राथमिक लेखा सिद्धांत
प्रोद्भवन सिद्धांत
यह अवधारणा लेखांकन लेनदेन को उस अवधि में रिकॉर्ड करने में मदद करती है जब वे उस अवधि के बजाय हुई जबनकदी प्रवाह जुड़े थे।
संगति सिद्धांत
एक बार जब आप इस पद्धति को लागू कर लेते हैं, तो आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आप इसका उपयोग तब तक करते रहें जब तक कि कोई बेहतर तरीका या सिद्धांत तस्वीर में न आ जाए।
मेल खाते सिद्धांत
यह सिद्धांत बताता है कि खर्चों को मान्यता मिलनी चाहिए और जब भी खर्च इन खर्चों से अर्जित राजस्व के साथ मेल खाते हैं, तो उन्हें रिकॉर्ड किया जाना चाहिए।
रूढ़िवादी सिद्धांत
यह अवधारणा कंपनियों को जल्द से जल्द देनदारियों और खर्चों को रिकॉर्ड करने की अनुमति देती है। हालांकि, संपत्ति और राजस्व की रिकॉर्डिंग तभी की जाती है जब उनके होने की गारंटी हो।
आय पहचान सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार, राजस्व की पहचान तब होती है जब वे होते हैं न कि जब राशि प्राप्त होती है।
गोइंग कंसर्न सिद्धांत
यह तब लागू होता है जब फर्म अनुमानित भविष्य के लिए अपने संचालन को जारी रखने की उम्मीद कर रही हो।
लेखांकन सिद्धांत और लेखा नीति के बीच अंतर
हालांकि अधिकांश लोगों को लेखांकन सिद्धांत और नीति समान लगती है; हालाँकि, ये दोनों अवधारणाएँ व्यापक रूप से भिन्न हैं। मूल रूप से, लेखांकन सिद्धांत नीतियों की तुलना में व्यापक है।
उदाहरण के लिए,मूल्यह्रास मूर्त संपत्ति की राशि के परिशोधन के एक लेखांकन सिद्धांत के रूप में माना जाता है। अब, मूल्यह्रास को लिखित डाउन वैल्यू (डब्लूडीवी) विधि और सीधी रेखा विधि (एसएलएम) द्वारा दूसरों के बीच चार्ज किया जा सकता है। मूर्त संपत्ति का मूल्यह्रास एक लेखा सिद्धांत है जबकि इस पहलू के लिए एसएलएम पद्धति का पालन करना एक लेखा नीति है।
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सार्वजनिक लोकवित्त का अर्थ एवं परिभाषा | राजस्व की परिभाषाएँ
लोकवित्त आर्थिक सिद्धान्त की उस शाखा का प्रतिनिधित्व करता है जिसका उद्देश्य राज्य द्वारा आय प्राप्त करने और व्यय करने से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन करना है। अन्य शब्दों में “लोकवित्त अथवा राजस्व वर्तमान शासनतन्त्र की वित्तीय क्रियाओं का अध्ययन है।”
राजस्व की परिभाषाएँ-
राजस्व की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नवत् दी गई हैं-
प्रो० सी० एफ0 बेस्टेबल के अनुसार “राजकीय साधनों की पूर्ति एवं प्रयोग जिस अध्ययन की विषय सामग्री है, वह राजस्व कहलाता है।”
प्रो० फिन्डले शिराज के अनुसार- “राजस्व उन सिद्धान्तों का अध्ययन है जिनके अन्तर्गत राजकीय अधिकारी कोष का एकत्रीकरण एवं व्यय करते हैं।”
डॉ० एच0 डाल्टन के मतानुसार- “राजस्व के सिद्धान्त सामान्य है जो इन मामलों में प्रतिपादित किये गये हैं कि यह राजकीय पदाधिकारियों के आय एवं व्यय तथा परस्पर समायोजन से सम्बन्धित है।”
आलोचना- ये परिभाषायें निम्न कारणों से दोषपूर्ण हैं-
(1) राजस्व के अन्तर्गत केवल मौद्रिक एवं साख सम्बन्धी साधनों का ही अध्ययन किया जाता है, अमौद्रिक साधनों का नहीं।
(2) अर्थशास्त्रियों द्वारा ‘साधन’ शब्द का प्रयोग अस्पष्ट है।
(ब) विस्तृत परिभाषायें-
इस वर्ग में प्लेहन, आरमिटेज, स्मिथ, लुट्ज तथा टेल आदि की परिभाषायें सम्मिलित की जाती है।
(1) प्लेहन- “राजस्व वह विज्ञान है जो राजनीतिज्ञों की उन क्रियाओं का अध्ययन करता है जो वे राज्य के उचित कार्य के सम्पादन हेतु भौतिक साधनों की प्राप्ति एवं प्रयोग के लिये करते हैं।”
(2) आरमिटेज स्मिथ- “राजकीय आय तथा राजकीय व्यय के सिद्धान्तों एवं प्रकृति की खोज को राजस्व कहते हैं।”
(3) लुट्ज- “राजस्व उन साधनों की व्यवस्था, सुरक्षा एवं वितरण का अध्ययन करता है जिनकी सार्वजनिक अथवा सरकारी कार्यों को चलाने के लिये आवश्यकता पड़ती है।”
(4) श्रीमती उर्सला हिक्स- “राजस्व का मुख्य विषय उन विधियों का निरीक्षण एवं मूल्यांकन करना है जिनके द्वारा सरकारी संस्थायें आवश्यकताओं की सामूहिक सन्तुष्टि करने का प्रबन्ध करती हैं और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये आवश्यक कोष प्राप्त करती हैं।”
(5) टेलर- “सरकारी संस्था के अन्तर्गत संगठित रूप में जनता के वित्त का व्यवहा ही राजस्व है। इसमें सरकारी वित्त का अध्ययन किया जाता है।”
आलोचना- ये परिभाषाएं निम्नलिखित कारणों से दोषपूर्ण हैं-
(1) ये परिभाषायें संकुचित हैं क्योंकि इनमें केवल राज्य की आय तथा व्यय को ही राजस्व के क्षेत्र में सम्मिलित किया गया है।
(2) इन परिभाषाओं में आय और व्यय का अर्थ अनिश्चित है।
(स) संकुचित परिभाषायें-
इस वर्ग के अन्तर्गत प्रो0 मेहता की परिभाषा आती है।
प्रो0 जे0 के0 मेहता के अनुसार, “राजस्व राज्य के मौद्रिक तथा साख सम्बन्धी साधनों का अध्ययन है।”
लोकवित्त अथवा राजस्व की एक उचित परिभाषा निम्नलिखित है-
वित्त अर्थशास्त्र की वह शाखा है जो विभिन्न सरकारों की वित्त व्यवस्था (अर्थात् आय-व्यय और इनके समायोजन की व्यवस्था) से सम्बन्धित सिद्धान्तों, समस्याओं, नीतियों और प्रक्रियाओं का अध्ययन तो करती ही है, साथ ही, यह उन आर्थिक पहलुओं का भी अध्ययन करती है जो कि आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये बजट नीतियाँ लागू करने से उत्पन्न आर्थिक प्रभावों से सम्बन्ध रखते हैं।
अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
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