आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है?

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विदेशी मुद्रा समाधान विवरण:
- हम भारत में कहीं भी विदेशी मुद्रा (मुद्रा, यात्रा कार्ड और वायर ट्रांसफर और रखरखाव हस्तांतरण) की व्यवस्था करते हैं
- डोर स्टेप सेवाएं
- त्वरित और प्रतिस्पर्धी बाजार मूल्य
- लचीला समय
आवश्यक दस्तावेज
- मान्य पासपोर्ट
- वैध वीज़ा प्रति
- यात्रा टिकट
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
उत्प्रवास पर विदेश जाने वाले व्यक्ति को कितनी विदेशी मुद्रा उपलब्ध है?
उत्प्रवास पर विदेश यात्रा करने वाले व्यक्ति अधिकतम 1000,000 अमरीकी डालर की विदेशी मुद्रा प्राप्त कर सकते हैं। यह भारत में एक अनुमोदित डीलर से स्व-घोषणा के आधार पर है। राशि का उपयोग केवल उत्प्रवास के देश में आकस्मिक व्यय को पूरा करने के लिए किया जाना है।
विदेश यात्रा के लिए कितनी विदेशी मुद्रा नकद में ले जाया जा सकता है?
आरबीआई कानून विदेशी मुद्रा को निर्दिष्ट करता है जिसे पर्यटन आदि जैसे उद्देश्यों के लिए विदेशी यात्राओं के लिए ले जाया जा सकता है। यह राशि किसी एक वित्तीय वर्ष में $ 10,000 है जिसे स्व-घोषणा के आधार पर एक अनुमोदित डीलर से प्राप्त किया जा सकता है। यात्रियों के लिए अब 3,000 डॉलर तक के विदेशी मुद्रा के सिक्कों/नोटों की अनुमति है।
क्या मैं किसी भी बैंक में विदेशी मुद्रा का आदान-प्रदान कर सकता हूं?
यदि आपके पास बचत या चेकिंग खाता है तो अधिकांश बैंक विदेशी मुद्रा के आदान-प्रदान की पेशकश करेंगे। आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? यदि आपके पास कुछ मामलों में क्रेडिट कार्ड है तो बैंक मुद्रा का आदान-प्रदान करेगा।
क्या मैं क्रेडिट कार्ड से विदेशी मुद्रा खरीद सकता हूं?
आप उसी तरह से क्रेडिट कार्ड से विदेशी मुद्रा खरीद सकते हैं; आप डेबिट कार्ड के साथ करेंगे। केवल एक चीज जो आपको करने की आवश्यकता है वह है फॉरेक्स लोगों को सूचित करना कि आप अपने क्रेडिट कार्ड से भुगतान कर रहे हैं। हालांकि, लेनदेन शुल्क लागू होंगे।
आप कब तक विदेशी मुद्रा रख सकते हैं?
विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 2000, निर्दिष्ट करता है कि अप्रयुक्त विदेशी मुद्रा को विदेशों से वापसी के 6 महीने के भीतर वापस किया जाना चाहिए। फिर भी, यदि आप चाहें, तो आप अपने घरेलू निवासी विदेशी मुद्रा खातों में अधिकतम 2,000 अमरीकी डालर की विदेशी मुद्रा रख सकते हैं।
मुक्त व्यापार समझौते के मोर्चे पर भारत के लिए कई अवसर
वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के कारण सुस्त होती जा रही है। ऐसी स्थिति में विश्व व्यापार में हमारी हिस्सेदारी यदि 3-4 फीसदी भी बढ़ती है तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उत्साहजनक होगा। इसी कारण भारत ने मुक्त व्यापार समझौते अर्थात एफटीए पर अपना रुख बदला है। विश्व में अनेक क्षेत्रीय व्यापार समझौते हुए हैं। भारत ने भी 2012 के बाद श्रीलंका, बांग्लादेश, जापान, दक्षिण कोरिया इत्यादि देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भारत में उद्योग एवं सरकार में अवधारणा बनी कि एफटीए पर पहले के रुख से भारत को लाभ नहीं मिला, बल्कि उद्योग जगत को नुकसान हुआ। यही कारण था कि भारत, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से 2019 में अलग हो गया।
आरसीईपी समझौते को लेकर भारत की आशंका थी कि शुल्क मुक्त चीनी सामान से घरेलू बाजार भर जाएगा। हालांकि आरसीईपी से अलग होने के बावजूद चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा बीते तीन सालों से बढ़ता ही जा रहा है। यही कारण है कि भारत ने एफटीए को लेकर एक अंतराल के बाद अपना रुख बदला है। संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए हो चुका है। इस क्रम में ब्रिटेन, कनाडा और यूरोपीय यूनियन से वार्ता विभिन्न चरणों में जारी है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार ब्रिटेन के साथ एफटीए वार्ता जल्द पूरी होने वाली है।
भारतीय अर्थव्यवस्था इस आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? समय कमजोर होती मुद्रा, घटते विदेशी मुद्रा भंडार, तीव्र गति से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की निकासी, व्यापार घाटे में वृद्धि इत्यादि की समस्याओं से जूझ रही है। ऐसे में निर्यात वृद्धि आवश्यक है। इसके लिए भारत का ग्लोबल वैल्यू चेन यानी जीवीसी से जुडऩा जरूरी है। जीवीसी से संबद्ध होने में एफटीए की विशिष्ट भूमिका है। हमारे व्यापार में एफटीए की हिस्सेदारी वर्ष 2000 में 16 प्रतिशत थी जो अब 18.5 प्रतिशत है। स्पष्ट है कि भारत एफटीए से आशा के अनुरूप लाभ नहीं उठा सका है। हमारे व्यापार में ज्यादा हिस्सेदारी गैर-एफटीए की है, जिसमें अमरीका, चीन और ईयू प्रमुख हैं। हमारे आयात-निर्यात की दृष्टि से अमरीका का महत्त्व बरकरार है, जबकि ईयू का महत्त्व पहले से कम हुआ है। हमें वर्तमान में उपयोगी देशों और क्षेत्रों से संबंधित एफटीए की जरूरत है। हमें वर्तमान में उच्च निर्यात बाजार अमरीका, ईयू और बांग्लादेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त भविष्य के प्रमुख बाजारों अफ्रीका और लैटिन अमरीकी देशों पर भी ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
भारत ने 2019 में आरसीईपी से दूरी बनाई, पर अब एशिया पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आइपीईएफ) में शामिल होने का मौका है, जो हाल ही में बना है। इस समूह में 14 देश शामिल हैं और वैश्विक जीडीपी में उनकी हिस्सेदारी 28 फीसदी है।
ट्रांस पैसिफिक भागीदारी का नेतृत्व कभी अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा करते थे, परंतु ट्रंप ने इससे दूरी बना ली थी। इस समझौते से अलग रहने का खमियाजा अमरीका भुगत रहा है। उसके व्यापार अवसर छूट रहे हैं और उसका भू-राजनीतिक प्रभाव भी घट रहा है। यही कारण है कि अमरीका ने आइपीईएफ की स्थापना में अति सक्रियता दिखाई। भारत को भी त्वरित तौर पर इसमें शामिल होकर व्यवस्थित और सुसंगठित रूप से अपने व्यापार के एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहिए। आइपीईएफ में अमरीका, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और वियतनाम हैं, जो भारत के लिए भी खास हैं। गौरतलब है कि चीन, आइपीईएफ में शामिल नहीं है।
यह कोई संयोग नहीं है कि हमारा बीते दो दशकों में चीन, दक्षिण कोरिया और वियतनाम से कारोबार बढ़ा है। ये विश्व के सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धी देश हैं और प्राय: सभी देशों का व्यापार संतुलन का झुकाव इन तीन देशों की तरफ हो गया है। भारत गैर शुल्कीय बाधाओं और अधिक लागत की शिकायत कर सकता है, पर अंतत: प्रतिस्पर्धा को बढ़ाकर ही व्यापार संतुलन को सुनिश्चित किया जा सकता है। इसके लिए एफटीए सबसे बेहतर विकल्प है।
कई वैश्विक निवेशक ‘चाइना प्लस वन’ की रणनीति अपना रहे हैं। जाहिर है इससे भारत को भी लाभ होगा, क्योंकि ये निवेशक चीन से बाहर वियतनाम, थाईलैंड, भारत जैसे देशों में फैक्ट्री लगाना चाहते हैं। चीन-अमरीका ‘ट्रेड वार’ के समय भी भारत के लिए स्वर्णिम अवसर उपलब्ध थे, पर उनका समुचित लाभ नहीं उठाया जा सका था। वैश्विक भागीदारी से मूल्य संवर्धन के साथ रोजगार के अवसर भी बनेंगे। ‘चाइना प्लस वन’ से उत्पन्न हुए अवसर हमेशा नहीं रहेंगे। इसलिए भारत के लिए आवश्यक है कि वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार में खुलेपन के सिद्धांतों तथा प्रतिस्पर्धी बनने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए। भारत का विकास मुख्य रूप से उत्पादन और सेवा के क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर निर्भर है।
विदेशी मुद्रा व्यापार, क्रिप्टोकरेंसी का ऐतिहासिक विकल्प?
यदि आप अभी बाहर शुरू कर रहे हैं विदेशी मुद्रा व्यापारयह महत्वपूर्ण है कि आप इस मुद्रा बाजार के आधार को समझें और यह कैसे काम करता है। विदेशी मुद्रा विदेशी और विनिमय शब्दों का एक संकुचन है। यह एक विदेशी मुद्रा बाजार है जहां निवेशक मुद्रा जोड़े खरीद और बेच सकते हैं। दूसरे शब्दों में, यह एक मुद्रा बाजार है.
विदेशी मुद्रा व्यापार में प्रवेश करने वाले निवेशकों को विदेशी मुद्रा व्यापारी कहा जाता है। वे निजी व्यापारी (छोटे निवेशक) या पेशेवर (संस्थागत निवेशक, बैंक, कंपनियां, आदि) हो सकते हैं। यहाँ का एक उदाहरण है फ्रेंच भाषी व्यापारीमुद्रा जोड़े का व्यापार करने में सक्षम होने के लिए, खुदरा व्यापारियों को ऑनलाइन दलालों के माध्यम से जाना जाता है जिसे "कहा जाता है" विदेशी मुद्रा दलाल ”। मुद्राओं में विशेषज्ञता वाले ये दलाल उनके लिए बाजार से बातचीत करेंगे।
विदेशी मुद्रा कहां से आती है?
मुद्रा विनिमय एक अवधारणा है जो लंबे समय से चारों ओर है। इसके अलावा, कई ट्रेडिंग सिस्टम जैसे ब्रेटन वुड्स सिस्टम और गोल्ड स्टैंडर्ड फॉरेक्स से पहले मौजूद थे। उत्तरार्द्ध 1971 के आसपास बनाया गया था, उस समय की आर्थिक परिस्थितियों के बाद जिसने ब्रेटन वुड्स समझौते को समाप्त कर दिया। वहाँ से, कई देशों की मुद्राओं की विनिमय दर विदेशी मुद्रा पर प्रस्तावों और मांगों द्वारा निर्धारित की गई थी।
यह कैसे काम करता है?
किसी भी विदेशी मुद्रा व्यापारी जो विदेशी मुद्रा बाजार में उतरना चाहता है, उसे पता होना चाहिए कि यह कैसे काम करता है और बुनियादी शर्तें। मुद्रा जोड़ी प्रमुख तत्व है जो मुद्रा व्यापार में भाग लेती है। इसमें आधार मुद्रा और काउंटर मुद्रा (उदाहरण के लिए EUR / USD) शामिल हैं।
विदेशी मुद्रा पर व्यापार का सिद्धांत समझने में काफी सरल है। मुद्राओं का आदान-प्रदान करने के लिए, व्यापारी एक मुद्रा जोड़ी खरीदता है जब बोली ऊपर जाती है और फिर नीचे जाने पर उसे बेचती है। जानकारी के लिए, विदेशी मुद्रा उद्धरण प्रतिपक्ष के खिलाफ आधार मुद्रा का मूल्यांकन है।
व्यापारी इसलिए भौतिक मुद्रा नहीं खरीदते और बेचते हैं, लेकिन मुद्राएं। यह विदेशी मुद्रा लेनदेन विदेशी मुद्रा लेनदेन या ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से होता है। विदेशी मुद्रा पर कई मुद्रा जोड़े का कारोबार होता है। सबसे प्रसिद्ध अमेरिकी डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, यूरो, जापानी येन और स्विस फ्रैंक हैं।
कैनेडियन डॉलर और ऑस्ट्रेलियाई डॉलर जैसी छोटी मुद्राओं के अन्य समूहों का भी विदेशी मुद्रा पर कारोबार किया जाता है। हालांकि, वे 10% से कम विदेशी मुद्रा लेनदेन का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो वास्तव में व्यापारियों के लिए फायदेमंद नहीं है।
एक दलाल काफी बस एक दलाल है। यह एक मध्यस्थ है जो विक्रेता के प्रस्ताव और कमीशन के बदले खरीदार की मांग से मेल खाता है। इसलिए यह विक्रेता और खरीदार के बीच लेनदेन की सुविधा प्रदान करता है.
व्यापार के क्षेत्र में, विदेशी मुद्रा दलाल एक व्यक्ति या एक कंपनी है जो खुदरा व्यापारियों को वित्तीय बाजारों तक पहुंच प्रदान करती है। यह क्लाइंट्स द्वारा रखी गई मुद्राओं के ऑर्डर को खरीदने और बेचने के लिए ट्रेडिंग अकाउंट का उपयोग करता है। कुछ साइटें विभिन्न मानदंडों पर दलालों की तुलना करती हैं, इसलिए आप एक पढ़ सकते हैं सहूलियत एफएक्स समीक्षा
विदेशी मुद्रा: बिटकॉइन का एक अच्छा विकल्प?
व्यापारियों के लिए उल्लेखनीय लाभ
अन्य वित्तीय बाजारों की तुलना में, विशेष रूप से बिटकॉइन, विदेशी मुद्रा में खुदरा व्यापारियों और पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण फायदे हैं। यह वास्तव में एक है मुक्त बाजारक्योंकि इसके लिए क्लियरिंग फीस या ब्रोकरेज फीस की आवश्यकता नहीं है। बिटकॉइन (0,1% से कम) की तुलना में विदेशी मुद्रा में लेनदेन की लागत भी कम होती है। हालांकि, आपको पता होना चाहिए कि हर बार जीतना संभव नहीं है और यह तेजी से व्यवस्थित लाभ के साथ एक शहरी मिथक है। 10% रिटर्न पहले से ही उत्कृष्ट है और अधिकांश पेशेवरों को औसत मासिक रिटर्न 1 से 10% तक है, 20% पर कुछ चोटियों या असाधारण मामलों में 40% तक भी।
यह भी जान लें कि फॉरेक्स एक दिन में 24 घंटे खुला बाजार है (सप्ताहांत को छोड़कर), जो आपको किसी भी समय व्यापार करने की अनुमति देता है और कई बार आपको सूट करता है। दलालों द्वारा दिए गए उत्तोलन प्रभाव से आपको अपने लेनदेन को बढ़ाने और अपनी आय को गुणा करने का अवसर मिलता है।
जोखिम क्या हैं?
व्यापार की दुनिया में, नुकसान के जोखिम भारी हो सकते हैं। आपको पता होना चाहिए कि सबसे अच्छा रिटर्न प्राप्त करने के लिए, हमें मुद्राओं के मूल्य की प्रशंसा और मूल्यह्रास पर खेलना चाहिए। दरअसल, मुद्राओं की विनिमय दर स्थायी उतार-चढ़ाव में होती है, जिससे लेनदेन करना कभी-कभी जोखिम भरा हो जाता है। इसके अलावा, विदेशी मुद्रा में निवेश करके पैसा बनाने के लिए, सभी पक्षों से पदों को खोलने का कोई सवाल ही नहीं है। इसके विपरीत, आपको कम व्यापार करना होगा, लेकिन अधिक कुशलता से, जिसके लिए आपको विदेशी मुद्रा व्यापार की दुनिया के बारे में अच्छी तरह से जानकारी होनी चाहिए।
Taliban Currency Ban: तालिबान ने अफगानिस्तान में बैन की विदेशी मुद्रा, इस्तेमाल करने वालों पर आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? होगी कार्रवाई
Taliban Currency Ban: अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही है. इस बीच तालिबान ने विदेशी मुद्रा पर बैन लगा दिया है.
By: abp news | Updated at : 03 Nov 2021 11:09 AM (IST)
तालिबानी लीडर (फाइल फोटो)
Taliban Ban Foreign Currency: अफगानिस्तान में तालिबान ने मंगलवार को विदेशी मुद्राओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, जिससे पहले से ही संघर्ष कर रही अर्थव्यवस्था में बड़े समस्या की आशंका है. आपको बताते चलें कि आतंकवादी संगठन तालिबान ने अगस्त के मध्य में सत्ता पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद से ही अफगानिस्तान की राष्ट्रीय मुद्रा का अवमूल्यन होना शुरू हो गया था और देश के भंडार विदेशों में जमा हो गए थे.
अर्थव्यवस्था के चरमराने से परेशान बैंकों के पास नगदी की कमी हो रही है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अब तक तालिबान प्रशासन को सरकार के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया है. इस बीच, देश के अंदर कई लेन-देन अमेरिकी डॉलर में किए जाते हैं और दक्षिणी सीमा व्यापार मार्गों के करीब के क्षेत्रों में पाकिस्तानी रुपये का उपयोग किया जाता है. लेकिन, अब एक प्रेस बयान में तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने घोषणा की कि अब से घरेलू व्यापार के लिए विदेशी मुद्रा का उपयोग करने वाले पर मुकदमा चलाया जाएगा.
उन्होंने कहा "देश में आर्थिक स्थिति और राष्ट्रीय हितों की आवश्यकता है कि सभी अफगान हर लेन-देन में अफगानी मुद्रा का उपयोग करें." प्रवक्ता ने तालिबान के मंसूबे को लोगों को बताते हुए यह भी कहा कि "इस्लामिक अमीरात सभी नागरिकों, दुकानदारों, व्यापारियों, व्यापारियों और आम जनता को निर्देश देता है कि अब से अफगानी में सभी लेन-देन करें और विदेशी मुद्रा का उपयोग करने से सख्ती से परहेज करें."
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Published at : 03 Nov 2021 11:09 AM (IST) Tags: Afghanistan Taliban currency ban dollar हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: News in Hindi
जानिए क्यों है रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की आवश्यकता..
वैश्विक मुद्रा बाजार के कारोबार में डालर की हिस्सेदारी 88.3 प्रतिशत है। इसके बाद यूरो, जापानी येन और पाउंड स्टर्लिंग का स्थान आता है। वहीं रुपये की हिस्सेदारी मात्र 1.7 प्रतिशत है। दुनियाभर का 40 प्रतिशत ऋण डालर में जारी किया जाता है। डालर का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका के बाहर मौजूद है। डालर पर अत्यधिक निर्भरता के कारण वर्ष 2008 का वैश्विक आर्थिक संकट भी दुनिया के समक्ष है। ऐसे में रुपये की वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी में वृद्धि के लिए भारतीय मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण आवश्यक है।
हाल में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भारतीय मुद्रा यानी रुपये में करने के लिए सरकार ने विदेश व्यापार नीति में बदलाव किया है। अब सभी तरह के पेमेंट बिलिंग और आयात-निर्यात में लेन-देन का निपटारा रुपये में हो सकता है। रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण से देश को चौतरफा लाभ होंगे
रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण का महत्व
सीमापार लेन-देन में रुपये का उपयोग भारतीय व्यापार के लिए जोखिम को कम करेगा। मुद्रा की अस्थिरता से सुरक्षा न केवल व्यवसाय करने की लागत को कम करती है, बल्कि यह व्यवसाय के बेहतर विकास को भी सक्षम बनाती है, जिससे भारतीय व्यापार के विश्व स्तर पर बढ़ने की संभावना में सुधार होता है। यह विदेशी मुद्रा भंडार रखने की आवश्यकता को भी कम करता है। हालांकि विदेशी मुद्रा भंडार विनिमय दर की अस्थिरता को प्रबंधित करने में मदद करता है, लेकिन वह अर्थव्यवस्था पर एक लागत लगाता है। विदेशी मुद्रा पर निर्भरता कम करने से भारत बाहरी झटकों के प्रति कम संवेदनशील हो जाएगा।
व्यापार की अत्यधिक देनदारियों के बावजूद अंततः भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ ही होगा। भारत का अपनी मुद्रा में अंतरराष्ट्रीय उधार लेने में सक्षम होना भी इसके विशिष्ट लाभ में सम्मिलित है। भारत के दीर्घकालिक विकास के लिए इसके फर्मों को विदेशियों से स्वतंत्र उधार लेने में सक्षम होना जरूरी है, ताकि वे अपने व्यवसाय को वित्तपोषित कर सकें। फर्मों द्वारा रुपये में अंतरराष्ट्रीय उधार लेना विदेशी मुद्रा की तुलना में अधिक सुरक्षित होगा। यह राजस्व स्रोत (जो रुपया है) के मुद्रा मूल्यवर्ग और कंपनियों के ऋण (जो विदेशी मुद्रा है) के मुद्रा मूल्यवर्ग के बीच एक बेमेल के जोखिम को कम करेगा।
ऐसे बेमेल जोखिम से अंततः फर्म दिवालियापन तक पहुंच सकते हैं। मुद्रा संकट की यह स्थिति थाइलैंड और इंडोनेशिया जैसी अर्थव्यवस्था में देखी भी गई है। जब कोई मुद्रा पर्याप्त रूप से अंतरराष्ट्रीय हो जाती है तो उस देश के नागरिक और सरकार अपनी मुद्रा में कम ब्याज दरों पर विदेश में बड़ी मात्रा में उधार लेने में सक्षम हो जाते हैं। रुपये का व्यापक अंतरराष्ट्रीय उपयोग भारत के बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्रों को भी अधिक व्यवसाय प्रदान करेगा। रुपये में परिसंपत्तियों की अंतरराष्ट्रीय मांग घरेलू वित्तीय संस्थानों में व्यापार लाएगी, क्योंकि रुपये में भुगतान को अंततः भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा ही नियंत्रित किया जाएगा। रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण से देश की विशिष्ट आर्थिक प्रभाव में अभूतपूर्व वृद्धि हो जाएगी।
जब विदेशी रुपये पर भरोसा करेंगे तो वे मुद्रा विनिमय के माध्यम और विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में इसे रखने के लिए तैयार होंगे। जब कोई मुद्रा किसी अन्य देश के लिए आरक्षित मुद्रा बन जाती है तो मुद्रा जारी करने वाला देश इसे उसके पक्ष में विनिमय के लिए लीवरेज के रूप में उपयोग कर सकता है। रुपये के अंतराष्ट्रीयकरण के प्रयास इस समय क्यों : भारत में रुपये के अंतराष्ट्रीयकरण के प्रयास तब हो रहे हैं, जब डालर की तुलना में रुपया कमजोर हो रहा है। और रुपया को मजबूत करने के लिए आरबीआइ को भारी मात्रा में डालर की बिकवाली करनी पड़ रही है। ऐसे में आरबीआइ प्रयास कर रहा है कि जहां तक संभव हो अन्य वैसे देश जो इस समय विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में दबाव का सामना कर रहे हैं, उनसे निर्यात सेटलमेंट रुपये में हो। इस तरह के सुझाव एसबीआइ के रिसर्च में भी दी गई थी।
एसबीआइ के इन सुझावों को आरबीआइ और केंद्रीय वित्त मंत्रालय क्रियान्वित करते हुए नजर आ रहे हैं। इससे पहले पिछली सदी के सातवें दशक में कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान जैसे खाड़ी देशों में रुपया स्वीकार किया गया था। तब भारत के पूर्वी यूरोप के साथ भी भुगतान समझौते थे। हालांकि 1965 के आपपास इन व्यवस्थाओं को समाप्त कर दिया गया था। इससे स्पष्ट है कि आरबीआइ के ये प्रयास सफल हो सकते हैं। अमेरिकी प्रतिबंधों के पूर्व 2019 तक भारत ईरान से रुपये में या अनाज तथा दवाओं जैसे महत्वपूर्ण उत्पादों के बदले तेल खरीदता रहा है।
यूक्रेन संकट के दौरान खुद रूस ने ही भारत को स्थानीय करेंसी में व्यापार करने का आफर दिया था और भारत और रूस के बीच अभी जो पेट्रोलियम का व्यापार हो रहा है, वह चीन की करेंसी युआन के जरिये हो रहा है। लेकिन अब भारत खुद अपनी करेंसी में व्यापार कर सकता है। इस वित्त वर्ष 2022-23 में भारत द्वारा रूस से लगभग 36 अरब डालर का तेल खरीदे जाने की संभावना है। इससे स्पष्ट है कि भारत रूस को जो 36 अरब डालर देने वाला था, वह अब नहीं देना होगा। इसकी जगह भारत रूस को अपनी मुद्रा यानी रुपया में भुगतान करेगा। वहीं रूस को भारत में व्यापार के लिए भारतीय मुद्रा भंडार मिलेगा, जो अंततः भारतीय बांड के लिए स्वागतयोग्य मांग प्रदान करेगा।
किन देशों के साथ खुल सकते हैं दरवाजे
रूस के अलावा ईरान, अरब देश और यहां तक कि श्रीलंका जैसे देशों के लिए भी भारत के दरवाजे खुल सकते हैं। ईरान और रूस के खिलाफ व्यापक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हैं। लिहाजा अब वे दोनों आसानी से बिना प्रतिबंधों का उल्लंघन किए भारत के साथ तीव्र व्यापार रुपये में कर सकते हैं। वहीं श्रीलंका जैसे देश, जिनका डालर खत्म हो चुका है, उनके लिए भारत से रुपये में सामान खरीदना एक वरदान जैसा होगा। कुल मिलाकर भारत का उद्देश्य है कि 2047 तक रुपये को अंतरराष्ट्रीय करेंसी के रूप में स्थापित करना। सरकार चाहती है कि जब देश आजादी की 100वीं वर्षगांठ मनाए तब भारतीय करेंसी बुलंदियों पर हो।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने हाल में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भारतीय मुद्रा यानी रुपये में करने के लिए विदेश व्यापार नीति में बदलाव किया है। इससे सभी तरह के पेमेंट, बिलिंग और आयात-निर्यात में लेन-देन का निपटारा रुपये में हो सकता है। इस बारे में विदेश व्यापार महानिदेशलय (डीजीएफटी) ने भी एक नोटिफिकेशन जारी किया है। सरल भाषा में कहें तो यह रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया की तरफ भारत सरकार का पहला कदम है।अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि के बाद लगातार कमजोर हो रहे रुपये और घटते विदेशी मुद्रा भंडार के बीच आरबीआइ ने इस ओर कदम बढ़ाएं हैं। अमेरिकी डालर के मुकाबले रुपया अक्टूबर में 1.8 प्रतिशत फिसला है, जबकि 2022 में अब तक रुपया 11 प्रतिशत कमजोर हुआ है। क्या है रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण: रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सीमा पार लेन-देन में स्थानीय मुद्रा का उपयोग किया जाता है। इसमें आयात-निर्यात के लिए रुपये को प्रोत्साहन देने के अतिरिक्त अन्य चालू खाता एवं पूंजी खाता लेन-देन में भी इसका उपयोग सुनिश्चित किया जाता है।जहां तक रुपये का संबंध है तो यह चालू खाते में पूरी तरह परिवर्तनीय है, लेकिन पूंजी खाते में आंशिक रूप से। चालू और पूंजी खाता भुगतान संतुलन के दो घटक हैं। चालू खाते के घटकों में वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात और आयात तथा विदेश में निवेश से आय शामिल हैं। वहीं पूंजी खाते के घटकों में सभी तरह के विदेशी निवेश और एक देश की सरकार द्वारा दूसरे देश को ऋण देना शामिल हैं। इस तरह तकनीकी तौर पर रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण का अर्थ है “पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता को अपनाना”। पूरी तरह से परिवर्तनीय पूंजी खाते का मतलब है कि विदेश में किसी भी संपत्ति को खरीदने के लिए आप कितने रुपये को विदेशी मुद्रा में परिवर्तित कर सकते हैं, इस पर कोई प्रतिबंध नहीं हो।