विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली

भारत में विनिमय दर प्रबंधन: इतिहास और प्रकार
विदेशी मुद्रा बाजार वह बाजार है जिसमे विदेशी मुद्राओं को खरीदा व बेचा जाता है। सन 1971 तक IMF के एक सदस्य होने के नाते भारत में ‘निशिचित विनिमय दर प्रणाली' का पालन होता था । ब्रेटन वुड्स प्रणाली के 1971 में ध्वस्त होने के बाद रुपए का मूल्य चार साल तक पौंड के द्वारा निर्धारित होता रहा परन्तु बाद में यह व्यवस्था भी ख़त्म हो गयी I वर्तमान में भारत में प्रबंधित विनिमय दर प्रणाली चलन में है।
वर्तमान में भारत, बाजार और अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार विनिमय दर का निर्धारण करता है। मुद्रा की मांग व आपूर्ति बाजार आधारित विनिमय दर का निर्धारण करती है। विनिमय दर एक मुद्रा के संबंध में दूसरी मुद्रा का मूल्य है। विदेशी मुद्रा को खरीदने वाले व बेचने वाले लोगों में शेयर दलाल, छात्र, वाणिज्यिक बैंक, केंद्रीय बैंक, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, विदेशी मुद्रा दलाल आदि होते हैं। विदेशी मुद्रा विनिमय के प्रमुख कार्यों में निम्न कार्य शामिल हैं:
- मुद्रा को एक बाजार से दूसरे बाजार में पहुचाना, जहाँ इसकी जरुरत है
- आयातकों के लिए अल्पकालिक ऋण उपलब्ध कराकर देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं की निर्बाध प्रवाह की सुविधा।
- स्पॉट और वायदा बाजार के माध्यम से विदेशी विनिमय दर को स्थिर करना।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:-
आजादी के बाद से भारत में एक निश्चित विनिमय दर व्यवस्था लागू थी जिसे बाद में पाउंड स्टर्लिंग से लिंक किया गया। साल 1993 से भारत में बाजार आधारित विनिमय दर व्यवस्था चलने लगी।
विदेशी मुद्रा प्रबंधन के विकास के नीचे चर्चा की है:
बराबर मूल्य प्रणाली (Par Value System- 1947-1971): स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, भारत ने आईएमएफ की ‘बराबर मूल्य प्रणाली’ का अनुसरण किया। जिसमें रुपये का बाहरी मूल्य, सोने के 4.15 ग्रेन पर तय किया गया।
निश्चित विनिमय व्यवस्था (Pegged Regime-1971-1992):
भारत ने अपनी मुद्रा को अगस्त 1971 से दिसंबर 1991 के बीच अमेरिकी डॉलर के साथ विनिमित विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली किया और दिसंबर 1971 से सितंबर 1975 तक ब्रिटेन के पाउंड स्टर्लिंग के साथ विनिमित किया I
उदारीकृत विनिमय दर प्रबंधन प्रणाली: (Liberalised Exchange Rate Management System):-
आर्थिक सुधार की प्रक्रिया के तहत 1992-93 के बजट में वित्त मंत्री ने व्यापार खाते पर रुपए की आंशिक परिवर्तनीयता घोषित की और मार्च 1912 से भारतीय रुपया आंशिक रूप से परिवर्तनीय हो गया I इसी दिन से उदारीकृत विनिमय दर प्रबंधन प्रणाली लागू की गयी I
इस प्रणाली के अंतर्गत एक दोहरी विनिमय दर तय की गई थी, जिसके तहत विदेशी मुद्रा की विनिमय दर का 40 प्रतिशत आधिकारिक व शेष 60 फीसदी बाजार द्वारा निर्धारित दर से परिवर्तित किया गया।
भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के प्रकार:
- स्पॉट बाजार: यह बाजार वह बाजार है जो विदेशी मुद्रा के खरीदने व बेचने के तय सौदे के दो दिनों के भीतर किया जाता है। विदेशी मुद्रा की स्पॉट खरीद व विक्रय स्पॉट बाजार का निर्माण करते हैं। जिस दर पर विदेशी मुद्रा खरीदी और बेची जाती है स्पाट विनिमय दर कहा जाता है। सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए,स्पाट दर को मौजूदा विनिमय दर कहा जाता है।
- वायदा बाजार: यह वह बाजार है जिसमे पहले से तय विनिमय दर को भविष्य की तिथि में विदेशी मुद्रा की खरीद व विक्रय किया जाता है। जब विदेशी मुद्रा के क्रेता और विक्रेता दोनों किसी सौदे में संबंधित होते हैं, तब इस सौदे के 90 दिनों के भीतर यह लेनदेन किया जाता है। यह वायदा बाजार कहलाता है।
विनिमय दर प्रबंधन के प्रकार
नियत विनिमय दर (Fixed Exchange Rate):-
घरेलू और विदेशी मुद्राओं के बीच विनिमय दर एक देश की मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा तय किया जाता है। इसके तहत विनिमय दर में एक सीमा से अधिक उतार चढ़ाव की अनुमति नहीं होती है, इसे स्थिर विनिमय दर कहा जाता है। आईएमएफ प्रणाली के तहत इसके सदस्य राष्ट्र के मौद्रिक प्राधिकरण अपनी मुद्रा का निश्चित मूल्य तय करता है जो एक आरक्षित मुद्रा सामान्यतः अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष होता है। इसे 'आंकी' विनिमय दर या पार वैल्यू कहा जाता है। हालांकि,सामान्य परिस्थितियों में इसमें उच्च्वाचन की ऊपरी और निचली सीमा 1 प्रतिशत तक होती है।
नियत विनिमय दर प्रणाली अपनाने का मूल उद्देश्य विदेशी व्यापार और पूंजी आंदोलनों में स्थिरता सुनिश्चित करना है। नियत विनिमय दर प्रणाली के तहत सरकार पर विनिमय दर की स्थिरता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी हो जाती है। इसे खत्म करने के लिए सरकार विदेशी मुद्रा को खरीदती व बेचती है।विदेशी मुद्रा जब कमजोर होती है तब तब सरकार इसे खरीद लेती है। और जब यह मजबूत होती है तब सरकार इसे बेच देती है। निजी तौर पर विदेशी मुद्रा की बिक्री व खरीद निलंबित रखी जाती है। आधिकारिक विनिमय दर में कोई परिवर्तन देश की मौद्रिक प्राधिकरण व आईएमएफ के परामर्श के किया जाता है। हालांकि अधिकांश देशों ने दोहरी प्रणाली अपना ली है। सभी सरकारी लेनदेन के लिए एक स्थिर विनिमय दर और निजी लेनदेन के लिए एक बाजार दर तय होती है।
नियत विनिमय दर के पक्ष में तर्क:
- सबसे पहले, यह अनिश्चितता की वजह से जोखिम को समाप्त करता है। बाजार में यह स्थिरता, निश्चितता प्रदान करता है ।
- दूसरा, यह, राष्ट्रों के बीच विदेशी पूंजी के निर्बाध प्रवाह के लिए एक प्रणाली बनाता है, साथ ही निवेश के रूप में यह निश्चित वापसी का आश्वासन देता है।
- तीसरा, यह विदेशी मुद्रा बाजार में सट्टा लेन-देन की संभावना को हटाता है।
- अंत में, यह प्रतिस्पर्धी विनिमय मूल्यह्रास या मुद्राओं के अवमूल्यन की संभावना को कम कर देता है।
B- लचीली विनिमय दर (Flexible Exchange Rate):-
जब विनिमय दर का निर्धारण, बाजार शक्तियों (मुद्रा की मांग व आपूर्ति) द्वारा तय किया जाता है, इसे लचीली विनिमय दर कहा जाता है।
लचीली विनिमय दर के पक्षधर भी इसके पक्ष में समान रूप से मजबूत तर्क देते है। इस संबंध में तर्क दिया जाता है कि लचीली विनिमय दर अस्थिरता, अनिश्चितता, जोखिम और सट्टा का कारण बनती है। परन्तु इसके पक्षधर इस सभी आरोपों को खारिज करते हैं I
लचीली विनिमय दर के पक्ष में तर्क:
- सबसे पहले, लचीली विनिमय दर के रूप में एक स्वायत्ता मिलती है घरेलू नीतियों के संबंध में यह अच्छा सौदा है। इसका घरेलू आर्थिक नीतियों के निर्माण में बहुत महत्व है।
- लचीली विनिमय दर खुद समायोजित होती है और इसलिए सरकार पर इतना दबाव नहीं होता कि विनिमय दर को स्थिर करने के लिए पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखा जाए।
- लचीली विनिमय दर एक सिद्धांत पर आधारित है, इसके तहत भविष्य में अनुमान का लाभ मिलता है। इसकी सबसे बड़ी खूबी स्वत: समायोजन की योग्यता है I
- लचीली विनिमय दर विदेशी मुद्रा बाजार में मुद्रा की वास्तविक क्रय शक्ति का एक संकेतक के रूप में कार्य करता है।
अंत में, कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि लचीली विनिमय दर का सबसे बड़ा दोष अनिश्चितता है। परन्तु उनका तर्कयह भी है कि लचीली विनिमय दर प्रणाली के तहत अनिश्चितता की संभावना है उतनी ही जितनी स्थिर विनिमय दर के तहत।
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भारत में विनिमय दर प्रबंधन: इतिहास और प्रकार
विदेशी मुद्रा बाजार वह बाजार है जिसमे विदेशी मुद्राओं को खरीदा व बेचा जाता है। सन 1971 तक IMF के एक सदस्य होने के नाते भारत में ‘निशिचित विनिमय दर प्रणाली' का पालन होता था । ब्रेटन वुड्स प्रणाली के 1971 में ध्वस्त होने के बाद रुपए का मूल्य चार साल तक पौंड के द्वारा निर्धारित होता रहा परन्तु बाद में यह व्यवस्था भी ख़त्म हो गयी I वर्तमान में भारत में प्रबंधित विनिमय दर प्रणाली चलन में है।
वर्तमान में भारत, बाजार और अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार विनिमय दर का निर्धारण करता है। मुद्रा की मांग व आपूर्ति बाजार आधारित विनिमय दर का निर्धारण करती है। विनिमय दर एक मुद्रा के संबंध में दूसरी मुद्रा का मूल्य है। विदेशी मुद्रा को खरीदने वाले व बेचने वाले लोगों में शेयर दलाल, छात्र, वाणिज्यिक बैंक, केंद्रीय बैंक, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, विदेशी मुद्रा दलाल आदि होते हैं। विदेशी मुद्रा विनिमय के प्रमुख कार्यों में निम्न कार्य शामिल हैं:
- मुद्रा को एक बाजार से दूसरे बाजार में पहुचाना, जहाँ इसकी जरुरत है
- आयातकों के लिए अल्पकालिक ऋण उपलब्ध कराकर देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं की निर्बाध प्रवाह की सुविधा।
- स्पॉट और वायदा बाजार के माध्यम से विदेशी विनिमय दर को स्थिर करना।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:-
आजादी के बाद से भारत में एक निश्चित विनिमय दर व्यवस्था लागू थी जिसे बाद में पाउंड स्टर्लिंग से लिंक किया गया। साल 1993 से भारत में बाजार आधारित विनिमय विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली दर व्यवस्था चलने लगी।
विदेशी मुद्रा प्रबंधन के विकास के नीचे चर्चा की है:
बराबर मूल्य प्रणाली (Par Value System- 1947-1971): स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, भारत ने आईएमएफ की ‘बराबर मूल्य प्रणाली’ का अनुसरण किया। जिसमें रुपये का बाहरी मूल्य, सोने के 4.15 ग्रेन पर तय किया गया।
निश्चित विनिमय व्यवस्था (Pegged Regime-1971-1992):
भारत ने अपनी मुद्रा को अगस्त 1971 से दिसंबर 1991 के बीच अमेरिकी डॉलर के साथ विनिमित किया और दिसंबर 1971 से सितंबर 1975 तक ब्रिटेन के पाउंड स्टर्लिंग के साथ विनिमित किया I
उदारीकृत विनिमय दर प्रबंधन प्रणाली: (Liberalised Exchange Rate Management System):-
आर्थिक सुधार की प्रक्रिया के तहत 1992-93 के बजट में वित्त मंत्री ने व्यापार खाते पर रुपए की आंशिक परिवर्तनीयता घोषित की और मार्च 1912 से भारतीय रुपया आंशिक रूप से परिवर्तनीय हो गया I इसी दिन से उदारीकृत विनिमय दर प्रबंधन प्रणाली लागू की गयी I
इस प्रणाली के अंतर्गत एक दोहरी विनिमय दर तय की गई थी, जिसके तहत विदेशी मुद्रा की विनिमय दर का 40 प्रतिशत आधिकारिक व शेष 60 फीसदी बाजार द्वारा निर्धारित दर से परिवर्तित किया गया।
भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के प्रकार:
- स्पॉट बाजार: यह बाजार वह बाजार है जो विदेशी मुद्रा के खरीदने व बेचने के तय सौदे के दो दिनों के भीतर किया जाता है। विदेशी मुद्रा की स्पॉट खरीद व विक्रय स्पॉट बाजार का निर्माण करते हैं। जिस दर पर विदेशी मुद्रा खरीदी और बेची जाती है स्पाट विनिमय दर कहा जाता है। सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए,स्पाट दर को मौजूदा विनिमय दर कहा जाता है।
- वायदा बाजार: यह वह बाजार है जिसमे पहले से तय विनिमय दर को भविष्य की तिथि में विदेशी मुद्रा की खरीद व विक्रय किया जाता है। जब विदेशी मुद्रा के क्रेता और विक्रेता दोनों किसी सौदे में संबंधित होते हैं, तब इस सौदे के 90 दिनों के भीतर यह लेनदेन किया जाता है। यह वायदा बाजार कहलाता है।
विनिमय दर प्रबंधन के प्रकार
नियत विनिमय दर (Fixed Exchange Rate):-
घरेलू और विदेशी मुद्राओं के बीच विनिमय दर एक देश की मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा तय किया जाता है। इसके तहत विनिमय दर में एक सीमा से अधिक उतार चढ़ाव की अनुमति नहीं होती है, इसे स्थिर विनिमय दर कहा जाता है। आईएमएफ प्रणाली के तहत इसके सदस्य राष्ट्र के मौद्रिक प्राधिकरण अपनी मुद्रा का निश्चित मूल्य तय करता है जो एक आरक्षित मुद्रा सामान्यतः अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष होता है। इसे 'आंकी' विनिमय दर या पार वैल्यू कहा जाता है। हालांकि,सामान्य परिस्थितियों में इसमें उच्च्वाचन की ऊपरी और निचली सीमा 1 प्रतिशत तक होती है।
नियत विनिमय दर प्रणाली अपनाने का मूल उद्देश्य विदेशी व्यापार और पूंजी आंदोलनों में स्थिरता सुनिश्चित करना है। नियत विनिमय दर प्रणाली के तहत सरकार पर विनिमय दर की स्थिरता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी हो जाती है। इसे खत्म करने के लिए सरकार विदेशी मुद्रा को खरीदती व बेचती है।विदेशी मुद्रा जब कमजोर होती है तब तब सरकार इसे खरीद लेती है। और जब यह मजबूत होती है तब सरकार इसे बेच देती है। निजी तौर पर विदेशी मुद्रा की बिक्री व खरीद निलंबित रखी जाती है। आधिकारिक विनिमय दर में कोई परिवर्तन देश की मौद्रिक प्राधिकरण व आईएमएफ के परामर्श के किया जाता है। हालांकि अधिकांश देशों ने दोहरी प्रणाली अपना ली है। सभी सरकारी लेनदेन के लिए एक स्थिर विनिमय दर और निजी लेनदेन के लिए एक बाजार दर तय होती है।
नियत विनिमय दर के पक्ष में तर्क:
- सबसे पहले, यह अनिश्चितता की वजह से जोखिम को समाप्त करता है। बाजार में यह स्थिरता, निश्चितता प्रदान करता है ।
- दूसरा, यह, राष्ट्रों के बीच विदेशी पूंजी के निर्बाध प्रवाह के लिए एक प्रणाली बनाता है, साथ ही निवेश के रूप में यह निश्चित वापसी का आश्वासन देता है।
- तीसरा, यह विदेशी मुद्रा बाजार में सट्टा लेन-देन की संभावना को हटाता विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली है।
- अंत में, यह प्रतिस्पर्धी विनिमय मूल्यह्रास या मुद्राओं के अवमूल्यन की संभावना को कम कर देता है।
B- लचीली विनिमय दर (Flexible Exchange Rate):-
जब विनिमय दर का निर्धारण, बाजार शक्तियों (मुद्रा की मांग व आपूर्ति) द्वारा तय किया जाता है, इसे लचीली विनिमय दर कहा जाता है।
लचीली विनिमय दर के पक्षधर भी इसके पक्ष में समान रूप से मजबूत तर्क देते है। इस संबंध में तर्क दिया जाता है कि लचीली विनिमय दर अस्थिरता, अनिश्चितता, जोखिम और सट्टा का कारण बनती है। परन्तु इसके पक्षधर इस सभी आरोपों को खारिज करते हैं I
लचीली विनिमय दर के पक्ष में तर्क:
- सबसे पहले, लचीली विनिमय दर के रूप में एक स्वायत्ता मिलती है घरेलू नीतियों के संबंध में यह अच्छा सौदा है। इसका घरेलू आर्थिक नीतियों के निर्माण में बहुत महत्व है।
- लचीली विनिमय दर खुद समायोजित होती है और इसलिए सरकार पर इतना दबाव नहीं होता कि विनिमय दर को स्थिर करने के लिए पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखा जाए।
- लचीली विनिमय दर एक सिद्धांत पर आधारित है, इसके तहत भविष्य में अनुमान का लाभ मिलता है। इसकी सबसे बड़ी खूबी स्वत: समायोजन की योग्यता है I
- लचीली विनिमय दर विदेशी मुद्रा बाजार में मुद्रा की वास्तविक क्रय शक्ति का एक संकेतक के रूप में कार्य करता है।
अंत में, कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि लचीली विनिमय दर का सबसे बड़ा दोष अनिश्चितता है। परन्तु उनका तर्कयह भी है कि लचीली विनिमय दर प्रणाली के तहत अनिश्चितता की संभावना है उतनी ही जितनी स्थिर विनिमय दर के तहत।
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विदेशी विनिमय का अर्थ
विदेशी मुद्रा बाजार, विश्व की मुद्राओं के क्रय-विक्रय (व्यापार) का बाजार है जो विकेन्द्रित, चौबीसों घंटे चलने वाला, काउन्टर पर किया जाने वाले (over the counter) कारोबार है। अन्य वित्तीय बाजारों की अपेक्षा यह बहुत नया है और पिछली शताब्दी में सत्तर के दशक में आरम्भ हुआ। फिर भी सम्पूर्ण कारोबार की दृष्टि से यह सबसे बड़ा बाजार है। विदेशी मुद्राओं में प्रतिदिन लगभग 4 ट्रिलियन अमेरिकी डालर के तुल्य कामकाज होता है। अन्य बाजारों की तुलना में यह सबसे अधिक स्थायित्व वाला बाजार है।
1 विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार का इतिहास
2 अचल (Fixed) विदेशी मुद्रा दरें
3 चल (FLOATING) विदेशी मुद्रा दरें
4 इन्हें भी देखें
विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार का इतिहास
1970 से पहले तक विदेशी मुद्रा विनिमय दरें स्थायी रूप से तय रहा करती थीं। 70 के दशक से ही लगातार परिवर्तन होने वाली चल (FLOATING) विनिमय दरों का प्रचलन शुरू हुआ।
अचल (Fixed) विदेशी मुद्रा दरें
अचल विदेशी मुद्रा दरों का चलन,विश्व युद्ध के पहले (Pre World war) समय में जारी आर्थिक भेदभाव के मुद्दों की वजह से हुआ, जहां कुछ देशों के पास दूसरे देशों की तुलना में अधिक व्यापारिक अधिकार होते थे। स्वतंत्र व्यापार को बढ़ावा देने के लिये, अलग - अलग मुद्राओं के बीच स्वतंत्र परिवर्तन का होना ज़रूरी समझा गया और इसीलिए अचल विदेशी मुद्रा दर प्रणाली अस्तित्व में आई। इससे संदर्भित नियम, 44 सहयोगी राष्ट्रों के प्रतिनिधियों के सम्मेलन में जुलाई 1944 के पहले तीन हफ्तों के दौरान तय किए गए थे। इस सम्मेलन का आयोजन, ब्रैटनवुड्स न्यू हैम्पशायर (Bretton Woods, New Hampshire, US) में किया गया था और इसलिए इस प्रणाली या नियमों को ब्रैटनवुड्स प्रणाली कहा जाता है।
चल (FLOATING) विदेशी मुद्रा दरें
चल विदेशी मुद्रा दर प्रणाली में किसी भी देश की मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन, विदेशी मुद्रा बाजार में जारी व्यापार, मांग व पूर्ति (Demand Supply) या अन्य संदर्भित कारणों की वजह से होने वाले उतार-चढ़ाव की वजह से होता रहता है
जिम्बाब्वे ने नई मुद्रा आरटीजीएस डॉलर में व्यापार शुरू किया
जिम्बाब्वे ने अपनी नई मुद्रा, RTGS डॉलर में व्यापार करना शुरू कर दिया है, यह केंद्रीय बैंक के एक मौद्रिक संकट के प्रयास और इसे हल करने के उपायों की घोषणा करने के दो दिन बाद किया गया है. बैंक ने एक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली का अनावरण किया जिसने प्रभावी रूप से अपनी अर्ध-मुद्रा, बांड नोट का अवमूल्यन किया, जो आधिकारिक तौर पर अमेरिकी डॉलर के साथ समानता पर आंकी गई थी.
नई मुद्रा डिजिटल डॉलर और बांड नोट्स नामक इलेक्ट्रॉनिक बैंक बचत का स्थान लेगी और इसका नाम वास्तविक समय सकल निपटान प्रणाली के नाम पर रखा गया है जो बैंक एक-दूसरे के बीच धन हस्तांतरित करने के लिए उपयोग करते हैं.
उपरोक्त समाचार से NIACL AO Mains परीक्षा 2018 के लिए महत्वपूर्ण तथ्य-
RBI ने विदेशी मुद्रा लेनदेन पर जारी किए दिशानिर्देश, जनवरी 2023 से आएंगे प्रभाव में
केंद्रीय बैंक के परिपत्र के अनुसार ये निर्देश एक जनवरी, 2023 से प्रभाव में आएंगे. आरबीआई ने कहा कि किसी भी इकाई का जोखिम से बचाव के कदम उठाये बिना विदेशी मुद्रा में लेन-देन चिंता का विषय रहा है.
- भाषा
- Last Updated : October 11, 2022, 22:01 IST
नई दिल्ली. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली ने मंगलवार को किसी भी यूनिट के पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए बगैर विदेशी मुद्रा में लेन-देन को लेकर बैंकों के लिये संशोधित दिशानिर्देश जारी किया है. इस पहल का मकसद विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव से होने वाले नुकसान को कम करना है. आरबीआई इकाइयों के जोखिम से बचाव के उपाए किए बिना उस विदेशी मुद्रा में लेन-देन (यूएफसीई) के मामले में बैंकों के लिये समय-समय पर दिशानिर्देश जारी करता रहा है, जो बैंकों से कर्ज के रूप में लिये गये हैं.
केंद्रीय बैंक के परिपत्र के अनुसार ये निर्देश एक जनवरी, 2023 से प्रभाव में आएंगे. आरबीआई ने कहा कि किसी भी इकाई का जोखिम से बचाव के कदम उठाये बिना विदेशी मुद्रा में लेन-देन चिंता का विषय रहा है. यह न केवल व्यक्तिगत इकाई के लिये बल्कि पूरी वित्तीय व्यवस्था के लिये चिंता की बात होती है.
जिन इकाइयों ने विदेशी मुद्रा में लेन-देन के लिये जोखिम से बचाव के उपाए नहीं किये हैं, उन्हें विदेशी विनिमय दरों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव के दौरान काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. इस नुकसान से संबंधित इकाई का बैंकों से लिये गये कर्ज चुकाने की क्षमता प्रभावित होगी और चूक की आशंका बढ़ेगी. इससे पूरी वित्तीय प्रणाली की सेहत पर असर पड़ेगा.
आरबीआई ने प्राथमिक डीलरों को एकल आधार पर उपयोगकर्ताओं को विदेशी मुद्रा बाजार की सभी सुविधाएं प्रदान करने की अनुमति भी दे दी है. रिजर्व बैंक की तरफ से यह कदम मुद्रा जोखिम प्रबंधन के लिए ग्राहकों को व्यापक सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से उठाया गया है. वर्तमान में एकल प्राथमिक डीलरों (SPD) को सीमित उद्देश्यों के लिए विदेशी मुद्रा व्यापार की अनुमति मिली हुई है. देश में फिलहाल सात एसपीडी और 14 बैंक प्राथमिक डीलर हैं.
आरबीआई ने मंगलवार को जारी परिपत्र में कहा, ‘‘एसपीडी को प्रथम श्रेणी अधिकृत डीलरों की तरह उपयोगकर्ताओं को विदेशी मुद्रा बाजार की सभी सुविधाएं प्रदान करने की अनुमति देने का निर्णय लिया गया है. यह अनुमति नियमों और अन्य दिशानिर्देशों के अधीन है.’’
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