कमीशन और फैलता है

MCD क्या है? ये करती क्या है? इसके लिए क्यों होता है महायुद्ध, एमसीडी चुनाव की ABCD जानिए
Delhi MCD Election 2022: दिल्ली नगर निगम के कुल 250 वार्डों में 4 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। एमसीडी चुनाव 2022 के परिणाम 7 दिसंबर को घोषित किए जाएंगे।
एमसीडी चुनाव 2022 में 250 वार्डों पर मतदान
हाइलाइट्स
- दिल्ली नगर निगम (MCD) चुनाव 2022 का कार्यक्रम घोषित
- 250 वार्डों में 4 दिसंबर को मतदान, 7 को आएंगे चुनाव परिणाम
- 42 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व, इनमें 21 महिलाओं की
- दिल्ली में तीन निगमों के एकीकरण के बाद पहली बार हो चुनाव
चुनाव आयोग के अनुसार, MCD के 250 कमीशन और फैलता है वार्डों में से 42 अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित होंगे। इन 42 में से आधे यानी 21 वार्ड महिलाओं के लिए रिजर्व होंगे। बाकी बचे वार्ड्स में से 104 को महिलाओं के लिए रिजर्व रखा गया है।
दिल्ली में कितने नगर निकाय हैं?
राष्ट्रीय राजधानी के क्षेत्र की देखरेख का जिम्मा तीन अलग-अलग निकायों पर है। एमसीडी के दायरे में दिल्ली का पूरा इलाका नहीं आता। नई दिल्ली जहां प्रमुख सरकारी इमारतें, दफ्तर, आवासीय परिसर और दूतावास/उच्चायोग हैं, वह नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (NDMC) के तहत आता है। नगरपालिका परिषद पूरी तरह से केंद्र के मातहत है। परिषद के लिए चुनाव नहीं होते। इसके सदस्यों को केंद्र नामित करता है, राज्य सरकार के साथ चर्चा करके। NDMC के बोर्ड में कुछ विधायकों को भी शामिल किया जाता रहा है।
दिल्ली कैंटोनमेंट एरिया की देखरेख का जिम्मा दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड (DCB) का है। सेना का स्टेशन कमांडर ही DCB का पदेन अध्यक्ष होता है। डिफेंस एस्टेट्स सर्विस कैडर के एक अधिकारी को CEO नियुक्त किया जाता है। इसके बोर्ड में 8 सदस्य होते हैं।
दिल्ली नगर निगम: पहले तीन थे, अब एक
अब बात दिल्ली नगर निगम की। पहले दिल्ली में एक ही नगर निगम था, लेकिन 2011 में इसे तीन भागों में बांटकर दक्षिण, पूर्वी और उत्तरी दिल्ली नगर निगम का गठन किया गया। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सरकार का तर्क था कि दिल्ली काफी कमीशन और फैलता है फैल चुकी है। ऐसे में एक ही नगर निगम की बजाय अगर उसे विभाजित कर दिया जाए तो स्थानीय स्तर पर बेहतर कामकाज होगा।
हालांकि विभाजन के बाद पूर्वी कमीशन और फैलता है और उत्तरी दिल्ली नगर निगमों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा, क्योंकि इन क्षेत्रों में नगर निगमों की होने वाली आमदनी और खर्चों के बीच संतुलन नहीं था। एक को छोड़कर बाकी दोनों नगर निगम वित्तीय रूप से इतने कमजोर हो गए कि इनके कर्मचारियों को वेतन और रिटायरमेंट पर दी जाने वाली राशि देना भी मुश्किल हो गया।
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अब दिल्ली नगर निगम में 250 वार्ड
तीनों नगर निगमों के एक होने पर अब दिल्ली में 250 वार्ड हो गए हैं। पहले पूर्वी दिल्ली नगर निगम, दक्षिणी दिल्ली निगम और उत्तरी दिल्ली नगर निगम में कुल 272 वार्ड थे। ताजा परिसीमन में 22 वार्ड घटाए गए हैं। चुनाव आयोग ने अक्टूबर में 250 वार्ड की लिस्ट जारी की है, जिसमें 42 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। 50 प्रतिशत सीटों पर महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगी। एमसीडी के सभी जोन के सहायक आयुक्त जोन में चुनाव के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त हो चुके हैं।
एमसीडी चुनाव 2022 कब होंगे? नतीजा कब?
निर्वाचन आयोग ने दिल्ली नगर निगम चुनाव 2022 के कार्यक्रम की घोषणा कर दी है। एमसीडी चुनाव 2022 की नोटिफिकेशन 7 नवंबर को जारी होगी। नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 14 नवंबर है। 19 नवंबर तक उम्मीदवारी वापस ली जा सकेगी। एमसीडी के 250 कमीशन और फैलता है वार्डों पर वोटिंग 4 दिसंबर को होगी। एमसीडी चुनाव का परिणाम 7 दिसंबर को घोषित होगा।
42 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रहेंगी, जिनमें से 21 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी। अन्य सीटें में से 104 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी।
एमसीडी चुनाव कैसे होते हैं?
दिल्ली नगर निगम के चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) के जरिए कराए जाएंगे। राज्य चुनाव आयुक्त विजय देव ने बताया कि 55 हजार से ज्यादा EVMs का इंतजाम हो गया है। इस बार भी NOTA का विकल्प मिलेगा। एक लाख से ज्यादा स्टाफ एमसीडी चुनाव कराएगा। चुनाव का ऐलान होते ही आचार संहिता लागू हो गई है।
नॉमिनेशन तक बनेगा वोटर कार्ड तो दे सकेंगे कमीशन और फैलता है वोट
चुनाव आयोग ने साफ किया है कि एमसीडी चुनाव में जनवरी में जारी वोटरों की संख्या को सिर्फ आधार माना गया है। जनवरी में पब्लिश फाइनल वोटर लिस्ट के बाद भी जिनका नाम लिस्ट में शामिल किया गया है, वह भी एमसीडी चुनाव में वोट दे सकते हैं। यहां तक नॉमिनेशन से पहले तक जिनका पहचान पत्र बन जाएगा, वे भी वोट दे सकेंगे।
दिल्ली नगर निगम (MCD) का काम क्या है?
एमसीडी भी देश के बाकी नगर निगमों की तरह ही काम करता है। MCD के जिम्मे वाटर सप्लाई, ड्रेनेज सिस्टम, बाजारों की मेंटेनेंस, पार्क, पार्किंग लॉट्स, सड़कें और ओवरब्रिज, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, स्ट्रीट लाइटिंग की व्यवस्था है। इसके अलावा एमसीडी के प्राइमरी स्कूल, अस्पताल और डिस्पेंसरी भी चलते हैं। प्रॉपर्टी और प्रफेशनल टैक्स जमा करना, टोल टैक्स कलेक्शन सिस्टम चलाना, शवदाह गृहों का प्रबंधन, जन्म-मृत्यु का रिकॉर्ड रखना भी एमसीडी की जिम्मेदारियों के तहत आता है।
MCD को क्यों कहते हैं दिल्ली की 'छोटी सरकार'?
दिल्ली की सरकार और नगर निगम के अधिकार ओवरलैप करते हैं। मसलन, एमसीडी और दिल्ली सरकार दोनों ही सड़कें और नाले मेंटेन करते हैं। अंतर यह है कि 60 फीट से कम चौड़ी ज्यादातर सड़कें एमसीडी संभालता है और उससे चौड़ी वाली दिल्ली सरकार। बड़े मोटराइज्ड वीइकल्स को दिल्ली सरकार लाइसेंस देती है, वहीं एमसीडी साइकिल-रिक्शा, हाथगाड़ी को डील करता है। MCD प्राइमरी स्कूल चलाता है तो दिल्ली सरकार हायर स्कूलिंग, कॉलेज और प्रफेशनल एजुकेशन मुहैया कराती है। एमसीडी कई डिस्पेंसरी और कुछ अस्पताल चलाता है। दिल्ली सरकार बड़े और स्पेशलाइज्ड अस्पताल को मैनेज करती है।
एमसीडी दिल्ली की सीमाओं पर टोल टैक्स, विज्ञापन राजस्व और भू-कर से कमाई करता है। MCD को दिल्ली सरकार और केंद्र से भी मदद मिलती है। दिल्ली सरकार एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स और वैल्यू एडेड टैक्स से कमाई करती है।
राजेश बादल का ब्लॉग: रिश्वत, ठेकों में कमीशन और जबरन उगाही अब व्यवस्था का जैसे स्थायी चरित्र ही बन गया है
महाराष्ट्र में जिस तरह एक पुलिस अधिकारी ने राज्य के गृह मंत्री पर गंभीर आरोप लगाए हैं, उसने एक बार फिर हमारे सिस्टम में पैठ बना चुके भ्रष्टाचार की ओर इशारा किया है.
सिस्टम में रिश्वत, उगाही की पैठ! (फाइल फोटो)
महाराष्ट्र के गृह मंत्री पर एक आला पुलिस अधिकारी का आरोप बेहद गंभीर है. यह सघन जांच की मांग करता है. लेकिन जिस तरह से राजनीतिक ड्रामा हुआ है, उससे दो बातें साफ हैं. एक तो यह कि मंत्री से उसकी अनबन है और वह उनकी छवि धूमिल करना चाहता है.
दूसरा यह कि इन दिनों ब्यूरोक्रेसी सियासी खेमों में बंट गई है. हो सकता है कि उसका राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा हो. इसी आधार पर इस मामले में निष्पक्ष बारीक अन्वेषण की जरूरत है. भारतीय पुलिस सेवा का एक वरिष्ठतम अफसर वसूली का मेल भेजकर खुलासा करता है तो यह साधारण घटना नहीं है.
एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि पर सौ करोड़ रुपए हर महीने एकत्रित करने का इल्जाम हल्के-फुल्के ढंग से नहीं लिया जा सकता. इससे यह भी संकेत मिलता है कि नीचे की मशीनरी हक से दो-ढाई सौ करोड़ की अवैध वसूली कर सकती है. उसमें से सौ करोड़ रु पए वह मंत्री को दे, बाकी आपस में बांट ले-जैसा कि हम लोग हिंदुस्तान के तमाम विभागों में देखते आए हैं.
भारत में भ्रष्टाचार खत्म क्यों नहीं होता?
सवाल यह है कि स्वतंत्रता के 70 साल बाद भी हम गोरी हुकूमत का यह जुआ क्यों उतार कर नहीं फेंक सके? इसका उत्तर जानने के लिए हमें भारतीय समाज की मानसिकता को बारीकी से पढ़ना होगा.
इन दिनों रिश्वत, ठेकों में कमीशन और जबरन उगाही व्यवस्था का स्थायी चरित्र बन गया है. पैसा देने और लेने वाले को महसूस ही नहीं होता कि वह कोई अनुचित और अनैतिक काम कर रहा है. जब समाज ही काली कमाई का कारोबार जायज मान ले तो अगली पीढ़ियां उसे गलत कैसे मानेंगी?
दरअसल सैकड़ों साल की गुलामी के कारण गरीबी और अभाव में जीना इस मुल्क की विवशता बन गई थी. अंग्रेजों ने इसका फायदा उठाया और समूचा तंत्र भ्रष्ट बना दिया. किसी काम को करने या कराने पर बख्शीश अथवा घूस अनिवार्य औपचारिकता बन गई. हम चंद रुपयों में बिकने लगे.
दूसरी तरफ यह मानसिकता भी थी कि गोरे तो हिंदुस्तान का पैसा लूट-लूट कर परदेस ले जा रहे हैं. हम ठगे से देख कमीशन और फैलता है रहे हैं इसलिए उस पैसे में सेंध लगाने में एक औसत भारतीय ने कुछ भी गलत नहीं समझा.
भले ही वह क्रांतिकारियों का खुलकर साथ नहीं दे पा रहा था, मगर बरतानवी हुकूमत के पैसों में चोरी अथवा घूस लेने में उसने संभवत: पवित्र देशभक्ति का भाव भी देखा होगा. इस तरह दोनों पक्ष अपनी-अपनी जगह प्रसन्न थे. लेकिन तब भी एक वर्ग था, जो रिश्वत पसंद नहीं करता था.
मुंशी प्रेमचंद और वृंदावनलाल वर्मा के अनुभव
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद घनघोर आर्थिक दबाव में जिंदगी जीते रहे. मगर एक दौर ऐसा भी आया था, जब जिले के आला शिक्षाधिकारी होने के नाते जहां भी जाते, नजराने के तौर पर सिक्के, कपड़े, बेशकीमती तोहफे, आभूषण और अनाज मिलता.
प्रेमचंद को अटपटा लगा. उन्होंने सख्ती से इसे रोका. इसी तरह कोर्ट -कचहरियों में रिश्वत बाकायदा प्रचलन में थी. उपन्यासकार वृंदावनलाल वर्मा ने वकालत शुरू की तो सहायता के लिए 9 रुपए के वेतन पर मुंशी रख लिया. एक महीने बाद उन्होंने मुंशी को तनख्वाह देने के लिए बुलाया तो उसने उल्टे 27 रुपए उनके हाथ में ईमानदारी से रख दिए.
पूछने पर बताया कि महीने भर की घूस है और उसने अपना हिस्सा काट लिया है. वर्माजी अगले दिन इस्तीफा देकर घर बैठ गए. उन दिनों वे घोर आर्थिक संकट में थे. इसके बाद उन्होंने वन विभाग में नौकरी की. दो घंटे में काम निपटा लेते. बाकी समय में उपन्यास लिखते.
एक दिन बड़े बाबू ने टोका. कहा कि आप भ्रष्टाचारी हैं. छह घंटे बचाकर घर का काम करते हैं. सरकारी स्याही, कलम और कागज का इस्तेमाल करते हैं. बात सही थी. वर्माजी ने एक महीने आठ घंटे खड़े होकर काम किया और प्रायश्चित किया. क्या आज हम यह कल्पना भी कर सकते हैं?
समूचे सिस्टम को ठीक करने की है आज जरूरत
जैसे ही भारत को आजाद हवा में सांस लेने का अवसर मिला तो इस कुप्रथा ने गहराई से जड़ें जमा लीं. आज कोई भी सरकारी महकमा पैसों के अनैतिक आदान-प्रदान से मुक्त नहीं है. राशन कार्ड से लेकर संपत्ति कर निर्धारण या नक्शा मंजूर कराने का काम बिना लिए-दिए नहीं होता.
ठेकों में कमीशन, विधायक-सांसद निधि में हिस्सा लेने से जनप्रतिनिधि नहीं चूकते. यहां तक कि निर्वाचन क्षेत्र की आवाज उठाने और सवाल पूछने तक के लिए जब पैसा लिया गया हो तो अनुमान लगाया जा सकता है कि स्थिति कितनी बिगड़ चुकी है. क्या राज्यों की सीमाओं पर ट्रकों से अवैध वसूली किसी से छिपी है.
एक ट्रक की रसीद कटती है. चार यूं ही निकाले जाते हैं. शराब की फैक्टरियों के दरवाजे पर एक ट्रक कमीशन और फैलता है की एंट्री होती है और चार ट्रक गैरकानूनी तौर पर निकलते हैं. इसी शराब से अवैध कमाई का बड़ा हिस्सा सियासी चंदे में जाता है. पैंतालीस साल पहले मैं एक जिले में पत्रकार था. वहां मनचाहे थाने के लिए पुलिस अधिकारी पुलिस अधीक्षक को तय रकम देता था.
यह एक तरह से थानों की नीलामी जैसी थी. मैंने एक दिन एसपी से पूछा तो दबंगई से उन्होंने कहा कि यह ब्रिटिश काल से चला आ रहा है. उसके बाद एक प्रदेश की राजधानी में काम करते हुए मैंने पाया कि जिलों की भी एक तरह से नीलामी होने लगी है. मलाईदार जिलों का कलेक्टर या एसपी बनने के लिए धन वर्षा होती है. जिस विभाग में ज्यादा धन होता है उनका मंत्नी बनने के लिए होड़ होती है.
समूचे सिस्टम में सड़ांध फैल चुकी हो तो मुंबई की घटना का जिक्र ही क्या. कौन सा राज्य है जहां अधिकारी हर महीने ऊपर तक एक निश्चित रकम नहीं पहुंचाते. अब यह नई बात नहीं रही. असल ध्यान तो इस पर होना चाहिए कि इसे काबू में कैसे करें. ऐसा न हो कि आने वाली नस्लें ईमानदारी शब्द का अर्थ शब्द कोष में खोजें.
Bengal Chunav 2021: चुनावी रैली से नहीं बढ़ता है कोरोना, बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष का दावा, ECI के फैसले पर कही ये बात
पश्चिम बंगाल में छठे चरण का चुनाव संपन्न हो चुका है. चुनाव के बीच बंगाल में कोरोना के कहर को देखते हुए इलेक्शन कमीशन ने रोड शो, साइकिल रैली और बाइक रैली पर रोक लगा दी है. वहीं चुनाव आयोग के फैसले पर बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष का बयान आया है. घोष ने इलेक्शन कमीशन के फैसले का स्वागत किया है. बीजेपी अध्यक्ष ने इसी के साथ कहा है कि बंगाल में चुनावी रैली से कोरोना नहीं बढ़ा.
पश्चिम बंगाल में छठे चरण का चुनाव संपन्न हो चुका है. चुनाव के बीच बंगाल में कोरोना के कहर को देखते हुए इलेक्शन कमीशन ने रोड शो, साइकिल रैली और बाइक रैली पर रोक लगा दी है. वहीं चुनाव आयोग के फैसले पर बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष का बयान आया है. घोष ने इलेक्शन कमीशन के फैसले का स्वागत किया है. बीजेपी अध्यक्ष ने इसी के साथ कहा है कि बंगाल में चुनावी रैली से कोरोना नहीं बढ़ा.
टीवी चैनल एबीपी से बात करते हुए बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि चुनावी रैली कोरोनावायरस नहीं फैलता है. उन्होंने कहा कि कोरोना फैलने की जो बात कही जा रही है, उसकी वास्तविकता यह है कि बंगाल 10 राज्यों में से 8 वें स्थान पर है जहां कोरोना के मामले सबसे अधिक हैं. घोष ने आगे कहा कि इसलिए यदि यह चुनावी जनसभा के कारण फैल रहा होता तो संख्या अलग होती.
महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ का दिया उदाहरण- दिलीप घोष ने कहा कि कोरोनावायरस सबसे अधिक महाराष्ट्र, दिल्ली और छत्तीसगढ़ में है. क्या वहां पर भी चुनावी रैली है? उन्होंने कहा कि इलेक्शन कमीशन ने जो फैसला किया है, उसका हमारी पार्टी स्वागत करती है.
चुनाव आयोग ने लगाया बैन- बता दें कि कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए चुनाव आयोग ने रोडशो, साइकिल रैली और बाइक रैली पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है. वहीं चुनावी जनसभा में पांच सौ से अधिक लोगों की उपस्थिति ही रहने का आदेश जारी की है. चुनाव आयोग के फैसले के बाद टीएमसी ने ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के रैली को रद्द कर दिया.
मंथन में कनिष्ठ अभियंता का आरोप- विधायकों को खरीदकर बनी सरकार
जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। शक्तिभवन के तरंग प्रेक्षागृह में एक कनिष्ठ अभियंता ने समस्या बताते-बताते सरकार पर निशाना साध दिया। उसने बिजली कंपनी के प्रबंध संचालकों के सामने दावा किया कि सरकार को गिराने के लिए विधायकों को खरीदा गया है। बेइमानी से सरकार बनी है। जब विधायकों को खरीदकर बनी सरकार से कर्मचारी क्या उम्मीद करें? इतना सुनते ही दूसरे कर्मियों ने कनिष्ठ अभियंता से माइक छीनकर उसे चुप करा दिया। इधर पूरे संवाद का वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया है। कांग्रेस ने भी इसे मुद्दा बनाकर सरकार को घेरने का प्रयास कर दिया है।
घटना बीते सात मई की मंथन 2022 कार्यक्रम के समापन अवसर की बताई जा रही है। प्रदेश की सभी छह बिजली कंपनियों और विशेषज्ञों की मौजूदगी में पिछले दिनों 5, 6 व 7 मई को मंथन कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। इस दौरान आउटसोर्स व्यवस्था को लेकर प्रबंधन के साथ इंजीनियरों का संवाद शुरू हुआ। सभी को अपनी बात रखने की छूट दी गई थी, तभी जबलपुर शहर के दक्षिण संभाग में पदस्थ रहे कनिष्ठ अभियंता सदन पांडे कुर्सी से उठे और अधिकारियों व सरकार के खिलाफ बोलने लगे। अधिकारियों को कमीशनखोर तो सरकार को बेईमान बता डाला। कहा कि मंथन से कुछ नहीं होता, पहले बिजली विभाग के अंदर शोषण का खेल बंद होना चाहिए। कमीशनखोरी बंद हो, सब ठीक हो जाएगा। दरअसल आउटसोर्स कर्मचारियों की व्यवस्था को लागू करने को लेकर चर्चा की जा रही थी। इसमें कनिष्ठ अभिंता ने कहा कि अफसर कमीशन खोरी करते हैं। इस कमीशन से अव्यवस्था फैलती है।पहले हमारे अफसर कमीशन खाना बंद करे। यह सुनते ही हर कोई सन्न रह गया।
निलंबित है कनिष्ठ अभियंता
कनिष्ठ सदन पांडे को पिछले दिनों ही कार्य में लापरवाही के आरोप में निलंबित किया गया है। इसके पहले भी कई बार निलंबित हो चुके हैं। उनकी बेबाकी की वजह से उन्हें मुश्किल झेलनी पड़ती है। उनके बाते सुनकर कार्यक्रम में मौजूद ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे, पावर मैनेजमेंट कंपनी के एमडी विवेक पोरवाल, तीनों वितरण कंपनियों के एमडी, पावर ट्रांसमिशन और जनरेशन कंपनी के एमडी, सभी कंपनियों
अभी क्या
राजनीतिक रूप से मामला गर्माने के बाद बिजली कंपनी में भी हड़कंप मच गया है। ऊर्जा विभाग के अहम अफसरों के सामने कनिष्ठ अभियंता की खरी-खरी बाते अब सरकार के लिए गले की फांस बन रही है। एेसे में माना जा रहा है कि इस मामले में अभियंता के खिलाफ विभागीय स्तर पर कार्रवाई की जाए। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता ने भी इस मामले को इंटरनेट मीडिया पर डालकर सरकार से सवाल किया है।