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क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है

क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है
वैधानिक फ्रेमवर्क ने रिजर्व बैंक को डिपॉजिटरी में भागीदारी की निगरानी, उसका प्रबंधन और नियमन करने का विशेष अधिकार दिया है. रिजर्व बैंक के पास ‘एनडीएस-ओएम’ सिस्टम है, जो सरकारी प्रतिभूतियों की ट्रेडिंग का केंद्र है. रिजर्व क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है बैंक ने एक अनौपचारिक ‘क्लियरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ (सीसीआइएल) के गठन की प्रक्रिया शुरू की जिसका स्वामित्व बैंकों के हाथ में होगा. इस तरह, बॉन्ड मार्केट के लिए एक समानांतर केंद्र—क्लियरिंग हाउस—डिपॉजिटरी बनता है. यह व्यवस्था मुख्यधारा क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है के वित्त बाज़ार इन्फ्रास्ट्रक्चर से अलग कोठले के रूप में काम करती क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है है.

सॉवरेन हरित बॉन्ड से 16,000 करोड़ रुपये जुटा सकती है केन्द्र सरकार

मुंबई। केंद्र सरकार जल्द ही सॉवरेन हरित बॉन्ड जारी कर सकती है। वित्त मंत्रालय ने वैश्विक मानक के हिसाब से इसकी रूपरेखा को अंतिम रूप दे दिया है। सूत्रों ने बुधवार को बताया, चालू वित्त वर्ष क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है 2022-23 की दूसरी छमाही यानी अक्तूबर से मार्च के बीच ग्रीन बॉन्ड जारी करके 16,000 करोड़ रुपये जुटाया जा सकता है। यह दूसरी छमाही के लिए उधारी कार्यक्रम का एक हिस्सा है। इसकी घोषणा इस साल के क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है बजट में की गई थी।

सूत्रों के मुताबिक, रूपरेखा तैयार है और इसे जल्द ही मंजूरी दी जाएगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल बजट भाषण में घोषणा की थी कि सरकार हरित इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए संसाधन जुटाने क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है की खातिर सॉवरेन हरित बॉन्ड जारी करेगी। इस रकम को सार्वजनिक क्षेत्र की उन परियोजनाओं में लगाया जाएगा, जो अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने में मदद करती हैं।

Sovereign Gold Bond Scheme: सस्ती कीमत पर गोल्ड में निवेश का मौका, 20 जून से कर सकेंगे खरीदारी

Sovereign Gold Bond Scheme: सस्ती कीमत पर गोल्ड में निवेश का मौका, 20 जून से कर सकेंगे खरीदारी

निवेश के लिए सस्ता गोल्ड खरीदना चाहते हैं तो 20 जून से आपको एक खास मौका मिलने वाला है। दरअसल, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी) योजना 2022-23 की पहली सीरीज खरीद के लिए 20 जून से पांच दिनों के लिए खुलेगी। वहीं, योजना की दूसरी सीरीज में आवेदन के लिए 22 से 26 अगस्त तक मौका रहेगा।

योजना की डिटेल: इस योजना के तहत सरकार बॉन्ड जारी करती है। ये बॉन्ड निवासी व्यक्तियों, अविभाजित हिंदू परिवार (एचयूएफ), न्यासों, विश्वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्थाओं को ही बेचे जा सकते है। इसके तहत आप कम से कम 1 ग्राम और अधिकतम 4 किलोग्राम गोल्ड बॉन्ड खरीद सकते हैं। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड योजना की अवधि आठ वर्ष के लिए होगी, जिसमें 5वें वर्ष के बाद इसे समय पूर्व मैच्योर किया जा सकता है।

चुनाव आयोग से पूछे बिना ही केंद्र ने खोल दी इलेक्टोरल बॉन्ड बिक्री की नई विंडो, फिर भी चुप क्यों हैं आयोग!

सांकेतिक फोटो

नवजीवन डेस्क

चुनावी बॉन्ड पर चुनाव आयोग की रहस्यमयी खामोशी न तो चौंकाती है और न ही इस पर चर्चा हो रही है। लेकिन केंद्र सरकार ने अभी जब 7 नवंबर को एक आदेश जारी कर इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री की नई खिड़की खोल दी, वह भी ऐसे वक्त में जब दो राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, तो सवाल तो उठना ही चाहिए।

हालांकि इससे पहले चुनाव आयोग पूर्व में कई मौकों पर इन बॉन्ड को लेकर अपनी आशंकाएं जता चुका है। 2017 से 2020 के बीच आयोग ने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों के ही सामने कहा कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जो कालेधन और शेल कंपनियों (ऐसी कंपनियां जो सिर्फ नाम का कारोबार कर पैसे को इधर-उधर करती हैं) को चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने का मौका देगी। क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है लेकिन अब लगता है कि चुनाव आयोग भी लाइन में आ गया है और तमाम संस्थाओं की तरह ही सिर्फ मूक दर्शक बन कर सरकार के कदमों और फैसलों को देख भर रहा है। इसके बावजूद जब इस महीने की शुरुआत में केंद्र ने दुस्साहसी और बेशर्म तरीके से इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री की नई तारीखें तय कीं तो आयोग से कम से कम प्रतिरोध दिखाने की उम्मीद की गई थी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

सरकारी बॉन्ड मार्केट को खुदरा निवेशकों के लिए खोलना अच्छी पहल, मगर इसे सफल बनाना भी जरूरी

रमनदीप कौर का चित्रण | दिप्रिंट

भारत ने सरकारी बॉन्ड मार्केट के द्वार खुदरा निवेशकों के लिए खोल दिए हैं ताकि सरकार की कर्जों की भारी जरूरत की खातिर पैसे जुटाने के लिए निवेशकों का आधार बढ़ाया जा सके. भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल फरवरी में अपने ‘स्टेटमेंट ऑन डेवलपमेंटल ऐंड रेगुलेटरी पॉलिसीज’ में घोषणा की थी कि वह खुदरा निवेशकों को ऑनलाइन सरकारी प्रतिभूति के प्राइमरी और सेकंडरी बाज़ारों में पहुंचने की अनुमति देगा. इसके साथ उन्हें रिजर्व बैंक में अपना सरकारी प्रतिभूति खाता (रिटेल डाइरेक्ट गिलट अकाउंट) खोलने और चलाने की सुविधा भी देगा.

यह स्वागतयोग्य कदम है क्योंकि यह खुदरा निवेशकों के लिए सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करना और उनकी ट्रेडिंग करना अधिक आसान और सस्ता बनाएगा. अगला कदम एक स्वतंत्र पब्लिक डेट मैनेजमेंट एजेंसी (पीडीएमए) बनाने का होना चाहिए. इसके बाद सरकार और रिजर्व बैंक को बॉन्ड मार्केट रेगुलेशन और इन्फ्रास्ट्रक्चर को मुख्यधारा के वित्त बाज़ार और इन्फ्रास्ट्रक्चर से जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए.

बॉन्ड मार्केट का जुड़ाव

एक्सचेंज, क्लियरिंग हाउस और डिपॉजिटरी ही बॉन्ड मार्केट का इन्फ्रास्ट्रक्चर है. इन क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है तीनों का प्रबंधन रिजर्व बैंक के हाथ में है. 1990 के दशक के शुरू में हर्षद मेहता घोटाले के बाद रिजर्व बैंक ने सरकारी प्रतिभूतियों की होल्डिंग के लिए इलेक्ट्रॉनिक लेजर की स्थापना की. ‘एसजीएल’ नामक यह लेजर सरकारी प्रतिभूति अधिनियम 2006 के तहत सरकारी प्रतिभूतियों की एकमात्र वैधानिक डिपॉजिटरी है. बैंक और वित्त संस्थान ‘एसजीएल’ के सदस्य होते हैं, जिनके खाते डिपॉजिटरी में होते हैं जिनमें वे सरकारी प्रतिभूतियों को जमा रखते हैं.

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रिजर्व बैंक के लिए चुनौती

फिलहाल रिजर्व बैंक के सामने चुनौती यह है कि सरकार के विशाल उधार कार्यक्रम को कम लागत में कैसे पूरा किया जाए. कच्चे तेल और जींसों की अंतरराष्ट्रीय कीमत में वृद्धि के कारण इनपुट लागत ऊंची हो रही है और इससे कीमतों में व्यापक वृद्धि हो सकती है. रिजर्व बैंक जब आर्थिक वृद्धि में फिर जान डालने पर ज़ोर दे रहा है, आर्थिक सुधार की गति और मांग में तेजी के कारण उसे ब्याज दरों में वृद्धि का रास्ता चुनना होगा.

बढ़ती दरें रिजर्व बैंक के लिए सरकार के उधार कार्यक्रम को पूरा करना चुनौतीपूर्ण बना देंगी. इस पृष्ठभूमि के साथ, निवेशकों का आधार व्यापक बनाने के लिए खुदरा निवेशकों के लिए अधिक छूट देना स्वागत योग्य कदम है.

निकट अतीत में, रिजर्व बैंक ने सरकारी बॉन्डों में विदेशी निवेशकों को अधिक हिस्सेदारी की छूट देकर निवेशकों का आधार व्यापक करने की कोशिश की थी. विदेशी निवेशकों द्वारा निवेश के लिए ‘पूरी तरह आसान रास्ता’ खोला गया, जिसके तहत कुछ विशेष प्रतिभूतियों को उनके लिए बेरोकटोक उपलब्ध कराया गया.

कलेक्टर कोर्ट में भरा जाना वाला बॉन्ड क्या होता है?

कलेक्टर कोर्ट में भरा जाना वाला बॉन्ड क्या होता है?

हम कई दफा छोटे छोटे मामलों में क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है कलेक्टर कोर्ट में बॉन्ड भरने के बारे में सुनते हैं। कॉलोनी मोहल्ले में आसपास के लोगों से किसी तरह का विवाद होने पर या छोटे मोटे धरने प्रदर्शन इत्यादि के मामलों में भी कलेक्टर कोर्ट में बॉन्ड जैसी चीज देखने को मिलती हैं।

कभी कभी थोड़ी मारपीट हो जाने पर पुलिस मारपीट का मुकदमा दर्ज नहीं करती है, अपितु शिकायतकर्ता की शिकायत पर आरोपी से बांड भरने को कहती है। ऐसा बॉन्ड कलेक्टर की कोर्ट में लिया जाता है।

हमारे देश में पुलिस का कर्तव्य अपराध होने पर प्रकरण दर्ज करना ही नहीं, बल्कि अपराधों को रोकना भी है। अपराधों को रोकने के लिए पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता में कुछ शक्तियां भी दी गई हैं और ये शक्तियां कलेक्टर और एस डी एम को भी उपलब्ध हैं। उन्हें भी यह शक्तियां है कि वह अपराध को रोकने का प्रयास करें।

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