एक दलाल का वेतन क्या है

भड़ास blog
अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा.
31.8.08
क्या सम्पादक दलाल होते हैं?
शायद यह सवाल आप को परेशान करे लेकिन मैं भी परेशान हुँ कि शायद कहीं सम्मान जनक पेशे के सौदागरो को भी इस इल्ज़ाम से अपनी पोल खुलती नज़र आए और वह अपने अन्दर सुधार की बात सोचें.
समाज को सही रासता दिखाने वाला और समाज में हो रही किसी गलत काम पर लगाम लगाने वाला जब खुद ही इस तरह के काम पर ऊतारु हो जाए तो अफसोस होता ही है. बल्कि सम्मान जनक पेशे में शामिल व्यक्ती को सौदागर और दलाल तक कहने के लिए मजबूर होना पड़ता है. यह शब्ज के चुनाव पर हमें निजी तौर पर अफसोस है.
आप देखेंगे के हर अख़बार के सम्पादक को मोटी रकम दी जाती जाती है. लेकिन अख़बार में करने वाले छोटे पत्रकारो एवं सब ऐडिटरो को बहुत कम पैसे दिए जाते हैं. कारण यह नही है कि मैनेजमेंट उम्हे कम पेसे देना चाहता है. बल्कि अख़बार का सम्पदक यह कहता है कि काम कैसे कराना है (यामी कम पैसे में) यह हम तैय करेंगे.
उस समय सम्पादक के ज़ेहन मे यह बात कतई नही आती के अफसर और नौकर की ही तरह यहाँ भी तनख़ाह का पैमाना रखा जाए.
आप को याद होगा के छठे वेतन आयोग ने तनखाहो का जो नया पैमाना तैय किया है उस के मुताबिक एक सबसे छोठे दर्जे के मुलाजिन को अगर 10,000 तनखाह दी जाएगी तो सबसे बड़े अफसर को उससे दस गुणा एक लाख की तनखाह दी जाएगी.
इस पर कई अखबारो नें अपनी चिनता जताइ थी और उसे ऊचनीच बढ़ाने वाला कहा था.
लेकिन उन्हे अपने यहॉ की खाई का ख्याल तक नहीं आता. एक अखबार में जो तन्खाह एक पत्रकार को मिलती है उससे 25 गुणा ज़्यादा तन्खाह सम्पादक को मिलती है. कारण साफ है कि सम्पादक एक दलाल की भुमिका में आ जाता है और वह मेनैंजनेट को कहता है कि चिनता छोड़ो पाँच बड़े अधिकारियो को इतनी रकम दो. बाकी को हम देखेगे और मैं अख़बार चला दुंगा. और इस तरह एक नौकर की तन्खाह पर पत्रकार काम करने को मजबुर हो जाता है.
अनुपस्थित चार नोडल अधिकारियों का एक दिन का वेतन रोकने का निर्देश
वाराणसी ब्यूरो
Updated Sat, 21 Nov 2020 11:35 PM IST
गाजीपुर। राइफल क्लब सभागार में शनिवार को धान खरीद की समीक्षा बैठक हुई। इसमें जिलाधिकारी ने अनुपस्थित चार नोडल अधिकारियों का एक दिन का वेतन काटने का निर्देश दिया। जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह ने केंद्रों पर खरीद कम होने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि सभी क्रय केंद्र समय से खुलें तथा शाम पांच बजे तक केंद्र प्रभारी मौजूद रहें।
किसी भी केंद्र पर बिचौलिए-दलाल सक्रिय न होने पाएं अन्यथा की स्थिति में केंद्र प्रभारी के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी। कहा कि अगर महिला के नाम पर पंजीकरण है तथा महिला स्वयं धान बेचने केंद्र पर आती है तो बिना नंबर के ही उसको वरीयता के आधार पर उनका धान क्रय किया जाए। प्रत्येक मंगलवार एवं शुक्रवार को लघु एवं सीमांत कृषकों की खरीद के लिए दिन आरक्षित है। मूल्य समर्थन योजना का लाभ अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए छोटे किसानों से खरीद वरीयता के आधार पर किया जाए। 100 क्विंटल से अधिक धान विक्रय करने वाले किसानों का सत्यापन उप जिलाधिकारी द्वारा अवश्य किया जाए। कहा कि केंद्रों पर बड़े काश्तकार के धान की खरीद इस प्रकार किया जाए कि छोटे किसानों का हित प्रभावित न हो। उन्होंने निर्देश दिया कि किसानों के साथ संवेदनशीलता पूर्वक व्यवहार करें तथा उनकी समस्याओं को दूर करते हुए उनके धान की खरीद करें। धान क्रय प्रगति के नियमित अनुसरण एवं प्राप्त शिकायतों के अनुरक्षण के लिए जिलाधिकारी ने चंद्रभान पांडेय क्षेत्रीय विपणन अधिकारी तहसील कासिमाबाद को
धान खरीद कंट्रोल रूम
आपदा नियंत्रण कक्ष में धान खरीद कंट्रोल रूम नंबर 0548-2226005 स्थापित किया गया है। रविवार एवं राजपत्रित अवकाश के दिनों को छोड़कर कंट्रोल रूम प्रतिदिन पूर्वाह्न आठ बजे से शाम छह बजे तक क्रियाशील रहेगा। कहा कि साथ ही जिला खरीद अधिकारी गाजीपुर के मोबाइल नंबर 9454417648 एवं जिला खाद्य विपणन अधिकारी के मोबाइल नंबर 8004862429 पर संपर्क स्थापित कर अपनी समस्या से अवगत करा सकते हैं। बैठक में अपर जिलाधिकारी राजेश कुमार सिंह, जिला खाद्य विपणन अधिकारी रतन कुमार शुक्ला आदि उपस्थित थे।
गाजीपुर। राइफल क्लब सभागार में शनिवार को धान खरीद की समीक्षा बैठक हुई। इसमें जिलाधिकारी ने अनुपस्थित चार नोडल अधिकारियों का एक दिन का वेतन काटने का निर्देश दिया। जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह ने केंद्रों पर खरीद कम होने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि सभी क्रय केंद्र समय से खुलें तथा शाम पांच बजे तक केंद्र प्रभारी मौजूद रहें।
किसी भी केंद्र पर बिचौलिए-दलाल सक्रिय न होने पाएं अन्यथा की स्थिति में केंद्र प्रभारी के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी। कहा कि अगर महिला के नाम पर पंजीकरण है तथा महिला स्वयं धान बेचने केंद्र पर आती है तो बिना नंबर के ही उसको वरीयता के आधार पर उनका धान क्रय किया जाए। प्रत्येक मंगलवार एवं शुक्रवार को लघु एवं सीमांत कृषकों की खरीद के लिए दिन आरक्षित है। मूल्य समर्थन योजना का लाभ अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए छोटे किसानों से खरीद वरीयता के आधार पर किया जाए। 100 क्विंटल से अधिक धान विक्रय करने वाले किसानों का सत्यापन उप जिलाधिकारी द्वारा अवश्य किया जाए। कहा कि केंद्रों पर बड़े काश्तकार के धान की खरीद इस प्रकार किया जाए कि छोटे किसानों का हित प्रभावित न हो। उन्होंने निर्देश दिया कि किसानों के साथ संवेदनशीलता पूर्वक व्यवहार करें तथा उनकी समस्याओं को दूर करते हुए उनके धान की खरीद करें। धान क्रय प्रगति के नियमित अनुसरण एवं प्राप्त शिकायतों के अनुरक्षण के लिए जिलाधिकारी ने चंद्रभान पांडेय क्षेत्रीय विपणन अधिकारी तहसील कासिमाबाद को
धान खरीद कंट्रोल रूम
आपदा नियंत्रण कक्ष में धान खरीद कंट्रोल रूम नंबर 0548-2226005 स्थापित किया गया है। रविवार एवं राजपत्रित अवकाश के दिनों को छोड़कर कंट्रोल रूम प्रतिदिन पूर्वाह्न आठ बजे से शाम छह बजे तक क्रियाशील रहेगा। कहा कि साथ ही जिला खरीद अधिकारी गाजीपुर के मोबाइल नंबर 9454417648 एवं जिला खाद्य विपणन अधिकारी के मोबाइल नंबर 8004862429 पर संपर्क स्थापित कर अपनी समस्या से अवगत करा सकते हैं। बैठक में अपर जिलाधिकारी राजेश कुमार सिंह, जिला खाद्य विपणन अधिकारी रतन कुमार शुक्ला आदि उपस्थित थे।
एक दलाल का वेतन क्या है
बिगुल संवाददाता
दलाल यूनियन नेताओं के जाल में फँसे मज़दूर किस क़दर असहाय हो सकते हैं इसका ताज़ा उदाहरण नोएडा के जे-1, सेक्टर-63 स्थित लाज एक्सपोर्ट लिमिटेड में एक दलाल का वेतन क्या है देखने को मिला। यह कम्पनी 1998 से काम कर रही है। आज इसमें क़रीब 500 मज़दूर काम करते हैं जिसमें क़रीब 125 महिला मज़दूर भी हैं। इस कम्पनी में बने सिले-सिलाये कपड़े विदेशी बाज़ारों में निर्यात किये जाते हैं जिसकी मुख्य ख़रीददार अमेरिका की वॉलकॉम कम्पनी है जिसके आलीशान शोरूम उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, अफ़्रीका और एशिया के कई देशों में हैं।
लाज एक्सपोर्ट के मज़दूरों की शिकायत थी कि कम्पनी उनकी मज़दूरी में से 12.5 प्रतिशत पीएफ़ का पैसा तो काट रही है लेकिन उसे उनके पीएफ़ अकाउण्ट में जमा नहीं करवा रही है। एक मज़दूर ने बताया कि जब वह अपना अकाउण्ट चेक करने पीएफ़ विभाग गया तो वहाँ उसे बताया गया कि दिया गया अकाउण्ट नम्बर फ़र्ज़ी है। मज़दूरों ने बताया कि पहले तो उन्हें वेतन पर्ची भी नहीं दी जाती थी। लेकिन काफ़ी दबाव बनाने के बाद जब यह मिलने भी लगी तो उसमें लाज एक्सपोर्ट की जगह एम.एम. इण्टरप्राइज़ेज़ या डी.के. इण्टरप्राइज़ेज़ का नाम लिखा आने लगा। इस वेतन पर्ची पर कोई मुहर नहीं होती और न ही उस पर जारीकर्ता के हस्ताक्षर रहते हैं। इन वेतन पर्चियों पर कम्पनी का पता भी जे-1, सेक्टर-63 की जगह सेक्टर-62 का पता छपा रहता है। मज़दूरों का कहना है कि जब वे वेतन पर्ची पर दिये गये पते पर मालूम करने गये तो वहाँ पर कोई और ही कम्पनी काम कर रही थी।
एक महिला मज़दूर ने बताया कि उनके काम के हालात बेहद ख़राब हैं। कम्पनी किसी भी क़िस्म की सुविधा नहीं देती। यहाँ तक कि कम्पनी के भीतर प्राथमिक उपचार तक की सुविधा नहीं है। उसने बताया कि एक महिला को नर्स के तौर पर पेश किया जाता है, लेकिन हक़ीकत में वो एक ऑपरेटर है और कम्पनी में मज़दूरी करती है। महिला मज़दूरों की सुरक्षा को लेकर कम्पनी कितनी फ़िक्रमन्द है इसका अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विक्रम गुप्ता नाम का कम्पनी अधिकारी महिला शौचालयों तक में घुस जाता है। मज़दूरों ने बताया कि उन्हें क़ानूनी तौर पर नियत छुट्टियाँ जैसे ईएल, पीएल, सीएलएसएल आदि तक नहीं मिलती। मज़दूरी में बढ़ोतरी की बात तो छोड़ ही दी जाये, नियमित रूप से लगने वाले महँगाई भत्ते का भुगतान भी नहीं किया जाता।
कम्पनी की बेईमानियों के खि़लाफ़ मज़दूर पहले से ही आक्रोशित थे। हाल ही में कम्पनी ने ओवरटाइम में एक घण्टे की कटौती भी कर दी। मज़दूरों को महसूस हुआ एक दलाल का वेतन क्या है कि इस तरह तो उनकी मासिक आमदनी काफ़ी घट जायेगी और वे पीएफ़ अकाउण्ट में धाँधली के खि़लाफ़ आवाज़ उठाने लगे। 1 नवम्बर को जब विवाद ज़्यादा बढ़ गया तब दोपहर साढ़े तीन बजे कम्पनी ने गुण्डे बुलवाये और मज़दूरों को धक्के देकर कम्पनी से बाहर कर दिया गया। गुण्डों ने महिला मज़दूरों के साथ बदसलूकी और मारपीट भी की। मज़दूर इस अन्याय की शिकायत के लिए रिपोर्ट लिखवाने सेक्टर-63 की पुलिस चौकी पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने देखा कि कम्पनी का एक दलाल चौकी इंचार्ज से बातचीत कर रहा था। जैसा कि होना ही था, चौकी इंचार्ज ने मज़दूरों की रिपोर्ट लिखने से इन्कार कर दिया और उन्हें वापस कम्पनी जाने की सलाह दी। आमतौर पर देखा गया है कि ऐसे हालात में मज़दूर अपने संघर्षों को दिशा देने के लिए किराये का नेता ढूँढ़ने निकल पड़ते हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि मज़दूर अपने गली-मुहल्लों में ट्रेड-यूनियन की दुकान खोले नेताओं को ही आन्दोलन की बागडोर सौंप देते हैं। लाज एक्सपोर्ट के मज़दूरों ने भी यही किया। मज़दूरों के बुलावे पर पाँच-छह दलाल नेता उनके बीच पहुँच गये। पहले तो ये दलाल आपस में ही बन्दरबाँट के लिए खींचातानी करते हुए दिखे, लेकिन जल्दी ही उनके बीच एकता क़ायम हो गयी। एक दलाल नेता क़रीब सौ-सवा सौ मज़दूरों को लेकर अपने खोड़ा कार्यालय पर पहुँच गया। बाक़ी मज़दूर सम्भवतः हताश होकर छिटक गये और अपने-अपने घरों की ओर चले गये। जब नेताओं ने देखा कि सौ-सवा सौ मज़दूर उनके कहने में आ चुके हैं और अब उनके सामने कहीं और जाने का कोई दूसरा रास्ता भी नहीं बचा है तब उन्होंने मज़दूरों को दबे स्वरों में धमकाना शुरू किया और यहाँ तक कहा कि अगर कम्पनी वालों से पैसा मिले तो हम वह भी लेने को तैयार हैं।
इस घटना के बाद लाज एक्सपोर्ट के ही कुछ मज़दूरों से व्यक्तिगत बातचीत के दौरान पता चला कि ज़्यादातर मज़दूर एकता के अभाव को अपनी असफलता का मुख्य कारण मान रहे हैं। यह बात एक हद तक सही भी है। लेकिन क्या आज मज़दूर यह जानते हैं कि उनके बीच एकता कैसे क़ायम हो पायेगी? इसका रास्ता क्या होगा? अगर मज़दूर किसी भ्रष्ट नेता या दलाल यूनियन या फिर किसी पूँजीवादी दल के इर्द-गिर्द संगठित हो भी जायें तो क्या वे पूँजी के विरुद्ध अपने संघर्षों को सही दिशा में बढ़ा सकने में सफल होंगे?
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2014
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मीडिया सुधार के सिलसिले में एक सरोकारी पत्रकार की चिट्ठी
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आदिवासी भाषाओं को बचाने के लिए एक तदर्थ अध्यापिका का राष्ट्रपति के नाम खुला पत्र
Media, letter, journalist, broker, truth, alternative,
(इस समय मीडिया की स्थिति को लेकर बहुत सारे लोग बेहद चिंतित हैं। और यह चिंता समाज के हर उस तबके में है जो न्याय, सत्य और सरोकार में विश्वास करता है। लेकिन इसकी सबसे ज्यादा पीड़ा सीधे इस पेशे से जुड़े लोग महसूस कर रहे हैं। खासकर पत्रकारों का वह हिस्सा जो जेहनी तौर पर न सिर्फ ईमानदार रहा है एक दलाल का वेतन क्या है बल्कि अपने जीवन में पत्रकारिता के बुनियादी उसूलों को अपनी जिंदगी से भी ज्यादा तरजीह देता रहा है। लेकिन मौजूदा समय में वह न केवल ठगा महसूस कर रहा है बल्कि बिल्कुल अलग-थलग पड़ गया एक दलाल का वेतन क्या है है। और अपने ही सामने एक दलाल मीडिया तंत्र के खड़े होने की स्थितियों से रूबरू है। इसको लेकर वह बेहद बेचैन है और उसकी यह बेचैनी अलग-अलग रूपों में सामने आ रही है। ऐसा नहीं है कि हाथ पर हाथ रख कर वह बैठा हुआ है। इन स्थितियों से निकलने और कोई विकल्प तलाश करने की माथापच्ची में भी वह लगा हुआ है। इसी नजरिये से कुछ विकल्पों पर पहले बहस किया जाए और उनमें से अगर कुछ पर सहमति बन सके तो उसको लेकर आगे बढ़ने के बारे में सोचा भी जा सकता है। इसी उद्देश्य के साथ एक वरिष्ठ पत्रकार ने एक प्रस्ताव पेश किया है। जिसे जनचौक प्रकाशित कर रहा है। अगर लोगों को लगता है कि इस बहस को आगे बढ़ायी जा सकती है या फिर इससे इतर कुछ और जरूरी चीजें जोड़ी जा सकती हैं या फिर उसके पास कोई दूसरा मौलिक सुझाव हो तो उसका स्वागत है। और जनचौक इसी तरह से पूरे सम्मान के साथ उसको प्रकाशित करेगा-संपादक)
मीडिया को नग्न हुए एक लंबा समय बीत चुका है। कुछ लोग कह सकते हैं कि यह पतन अर्णब गोस्वामी जैसों के कारण हुआ है और वे अर्णब बनाम रवीश कुमार की बहस में लोगों का वक्त बर्बाद कर सकते हैं। लेकिन इससे बात नहीं बनेगी। अर्णब या बाकी फ्री स्टाइल मीडिया दंगल के खिलाड़ियों पर चर्चा से बीमारी के कुछ ल़क्षण भले ही पहचान में आ जाएं, बीमारी की पहचान नहीं होती है। अदालत, सीबीआई, चुनाव आयोग और बाकी तमाम संस्थाओें के पतन के पहले मीडिया का पतन हुआ है। इसकी वजह साफ है क्योंकि मीडिया को साधे बगैर इन संस्थाओं को पतन के रास्ते पर घसीटना संभव नहीं था। चोरी के लिए पहरेदार को मिलाना जरूरी होता है।
उसी तरह लोकतंत्र पर हमले के लिए मीडिया को अपने प़़क्ष में करना जरूरी था ताकि न्याय पाने के अधिकार की चोरी की ओर वह देखे ही नहीं। उदाहरण की कोई कमी नहीं है। सर्द रातों में आसमान के नीचे बैठे किसानों और लव जिहाद जैसे कानूनों के कवरेज ताजा मामले हैं। वे दिन गए जब मीडिया की बांह मरोड़ने के किस्से किसी न किसी रूप में बाहर आ जाते थे। आर्थिक असुरक्षा ने पत्रकारों को इतना डरा दिया है कि वे दबावों की जानकारीं नहीं देते और दण्डवत मीडिया को सरकारी अधिकारी भी किसी घोटाले की खबर देकर अपने को जोखिम में नहीं डाल सकते।
क्या इस स्थिति को यूं ही स्वीकार कर लिया जाए और सोशल मीडिया या कुछ निर्भीक न्यूज वेबसाइटों पर अपनी बात रख कर संतोष कर लिया जाए? क्या पैसे और तकनीक की ताकत से मीडिया को झूठ परोसने तथा सरकारी प्रचार का माध्यम बनाने वालों को अपना काम करने के लिए खुला छोड़ दिया जाए और तंत्र को निरंकुश बनने दिया जाए? क्या कुछ व्यक्तियों की पत्रकारीय ईमानदारी के सहारे इतनी बड़ी चुनौती का मुकाबला किया जा सकता है?
गौर से देखने पर यही लगता है कि मीडिया को मौजूदा पतन से बाहर निकालने का एक ही रास्ता है। वह रास्ता व्यापक सुधारों का है। इनमें ज्यादातर मांगें लंबे समय से की जाती रही हैं। इनमें से कुछेक यहां रख रहा हूं-
1. मीडिया में हर तरह का एकाधिकार खत्म हो। इसमें एक से अधिक माध्यमों पर कब्जे का एकाधिकार शामिल है।
2. कोई भी कंपनी या कंपनी-समूह एक से अधिक मीडिया कंपनी में अपने पैसे नहीं लगा सकती है।
3. मीडिया कंपनियों को दूसरे कारोबार चलाने से रोकने का विधान बने । सरकार से ठेके लेने और कई तरह के व्यापार में लगी कंपनियों को मीडिया से बाहर किया जाए। ठेका और सरकारी रियायतें पाने में लगी कम्पनियाँ सरकार के दोष कैसे उजागर कर सकती हैं ?
4. वेतन बोर्ड की सिफरिशों को लागू किया जाए।
5. पत्रकारों के एक दलाल का वेतन क्या है वेतन की न्यूनतम और अधिकतम सीमा तय की जाए। किसी भी पत्रकार को वेतन बोर्ड की सिफारिशों से ज्यादा वेतन नहीं दिया जाए। इससे दलाली के बदले ज्यादा वेतन पाने वाली पत्रकारिता पर रोक लगेगी।
6. बार कौंसिल आफ इंडिया की तरह एक वैधानिक संस्था का गठन किया जाए जो पत्रकारों की ओर से चुनी गई हो। यह निष्पक्ष पत्रकारिता के मानदंड सुनिश्चित करे। यह बार कौंसिल की तरह पूरी तरह स्वतंत्र एक दलाल का वेतन क्या है हो।
7. उपरोक्त वैधानिक संस्था सरकारी तथा गैर-सरकारी विज्ञापनों के मानदंड तय करे। सरकारी विज्ञापनों के वितरण को पारदर्शी बनाने के उपाय खोजे जाएं। सरकारी धन का उपयोग पार्टी या व्यक्तियों के प्रचार के लिए नहीं होना चाहिए।
8. स्वतंत्र वैधानिक कोष की स्थापना की जाए जो मीडिया संस्थानों की फंडिंग करे।
बीडीए में बैठे हैं दलाल, सेंटिंग कर पंचायतों व आरईएस से छीन रहे गांवों के निर्माण कार्य
-जिला पंचायत बैठक में अध्यक्ष मनमोहन नागर ने लगाया बीडीए पर खुला आरोप -आंगनवाड़ी भवनों के घटिया निर्माण, गेहूं तुलाई सेंटर और रिश्वत लेकर शिक्षक की नियुक्ति पर बैठक में हुआ हंगामा भोपाल। नवदुनिया न्यूज भोपाल विकास प्राधिकरण (बीडीए) में दलाल बैठे हुए हैं। सेटिंग कर ये दलाल पंचायत और आरईएस से ग्रामीण क्षेत्रों के निर्माण कार्य छीन रहे हैं। बीडीए न
-जिला पंचायत बैठक में अध्यक्ष मनमोहन नागर ने लगाया बीडीए पर खुला आरोप
-आंगनवाड़ी भवनों के घटिया निर्माण, गेहूं तुलाई सेंटर और रिश्वत लेकर शिक्षक की नियुक्ति पर बैठक में हुआ हंगामा
भोपाल। नवदुनिया न्यूज
भोपाल विकास प्राधिकरण (बीडीए) में दलाल बैठे हुए हैं। सेटिंग कर ये दलाल पंचायत और आरईएस से ग्रामीण क्षेत्रों के एक दलाल का वेतन क्या है निर्माण कार्य छीन रहे हैं। बीडीए ने ग्रामीण क्षेत्रों में जहां भी भवन बनाए हैं वहां किसी की छत उखड़ रही है या प्लास्टर गिर रहा है, किसी की दीवार में दरार आ गई। यह सनसनीखेज आरोप जिला पंचायत की साधारण सभा की बैठक में खुद अध्यक्ष मनमोहन नागर ने लगाया है। ग्रामीण इलाकों में 450 आंगनवाड़ी भवन बनाए जा रहे हैं। इनमें से 15 का निर्माण पूरा हो गया है, इनमें से 13 बीडीए ने बनाए हैं।
जिला पंचायत सदस्यों ने भी बीडीए द्वारा कराए गए निर्माणकार्यों की शिकायतें की। इसके बाद साधारण सभा की बैठक में ग्रामीण क्षेत्रों में बीडीए को दिए गए सारे काम निरस्त एक दलाल का वेतन क्या है करने और आगे से कोई भी निर्माण कार्य बीडीए को नहीं देना का प्रस्ताव पास किया गया। इसके साथ ही अब तक बने सभी भवनों के निर्माण की गुणवत्ता की जांच कराई जाएगी। जिला पंचायत सदस्य आरती भीकम सिंह ने बैठक में कोल्हूखेड़ी पंचायत के कडैय्या खेड़ा, मंगलगढ़, मनीखेड़ी में बीडीए ठेकेदार द्वारा सरपंच की आपत्ति के बावजूद जबरन आंगनवाड़ी भवन निर्माण शुरू करने का मुद्दा उठाया। इन आंगनवाड़ी भवनों को कलेक्टर के आदेश से दूसरे गांवों में शिफ्ट किया जा चुका है। इसके बावजूद बीडीए पुराने आदेश के आधार पर जबरन निर्माण करा रहा है। गौरतलब है कि जिले के
बिना पद के रिश्वत लेकर संकुल प्राचार्य ने बना दिया अतिथि शिक्षक अब नहीं मिल रहा वेतन
गुनगा स्कूूल के संकुल प्राचार्य सीपी भलावी पर 2 हजार रुपए की रिश्वत लेकर एक युवक को अतिथि शिक्षक पद पर नियुक्ति देने का मामला सामने आया है। कलारा स्कूल में पिछले एक साल से अध्यापन कर रहे नईमुद्दीन ने वेतन नहीं दिए जाने पर जिला पंचायत बैठक में पहुुंचकर इसकी शिकायत की। नईमुद्दीन ने अपना नियुक्ति पत्र और स्कूल का उपस्थिति रजिस्टर दिखाते हुए संकुल प्राचार्य भलावी पर सरेआम 2 हजार रुपए की रिश्वत लेने का आरोप लगाया। बैठक में मौजूद भलावी ने इस आरोप से इनकार किया। नईमुद्दीन ने जिला पंचायत सीईओ आशीष भार्गव को शिकायत करते हुुए बताया की प्राचार्य स्कूल से गायब रहकर आए दिन पादरी टोला में शराब और मुर्गा पार्टी करते हैं। स्कूल में भी शराब पीकर आते हैं। सीईओ भार्गव ने बताया कि अतिथि शिक्षक के मानदेय की भरपाई प्राचार्य भलावी के वेतन से कटौती कर कराई जाएगी।
शासन में क्या भगवान राम बैठे हैं? किसने लिया फैसला नाम बताओ
करतार वेयरहाउस में गेहूं में मिट्टी मिलावट को लेकर ब्लैकलिस्ट की गईं 9 सोसाइटियों के 12 तुलाई केंद्र दूसरे स्थानों पर शिफ्ट करने पर ग्रामीण जनप्रतिनिधियों ने भारी हंगामा किया। जिला पंचायत अध्यक्ष नागर ने सवाल किया कि यदि ब्लैक लिस्ट की गई 9 सोसाइटियों ने गलती की है एक दलाल का वेतन क्या है तो उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई। तुलाई केंद्र शिफ्ट होने से किसानों पर ट्रांसपोर्ट खर्च बढ़ जाएगा, जिसने मिट्टी मिलाई उस पर कार्रवाई करने के बजाय किसानों पर यह अतिरिक्त भार क्यों? खाद्य और सहकारिता विभाग के अफसरों ने कहा कि यह फैसला शासन स्तर पर हुआ है। इस पर नागर ने कहा कि शासन में क्या भगवान राम बैठे हैं, किसके आदेश से यह किसान विरोधी निर्णय लिया गया, उसका नाम बताइए? आप लोग गलत जानकारी ऊपर भेजोगो तो गलत फैसले होंगे ही। लेकिन कोई भी अधिकारी यह नहीं बता सका कि किसके आदेश से 12 तुलाई सेंटर दूसरे स्थानों पर शिफ्ट किए गए हैं।