विदेशी मुद्रा क्यों?

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं
India Forex Reserves: भारत के लिए अच्छी खबर, विदेशी मुद्रा भंडार 544.72 अरब डॉलर पर पहुंचा
मुंबई। विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, स्वर्ण, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास आरक्षित निधि में जबरदस्त बढ़ोतरी होने से देश का विदेशी मुद्रा भंडार 11 नवंबर को समाप्त सप्ताह में 14.72 अरब डॉलर बढ़कर 544.72 अरब डॉलर पर पहुंच गया जबकि इसके पिछले सप्ताह 1.09 अरब डॉलर घटकर 529.9 अरब डॉलर पर रहा था।
रिजर्व बैंक की ओर से जारी साप्ताहिक आंकड़े के अनुसार, 11 नवंबर को विदेशी मुद्रा क्यों? विदेशी मुद्रा क्यों? समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार के सबसे बड़े घटक विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति 11.8 अरब डॉलर की बढ़ोतरी लेकर 482.53 अरब डॉलर हो गयी। इसी तरह इस अवधि में स्वर्ण भंडार में 2.64 अरब डॉलर की वृद्धि हुई और यह बढ़कर 39.7 अरब डॉलर हो गया।
आलोच्य सप्ताह एसडीआर में 16.5 करोड़ डॉलर की बढ़ोतरी हुई और यह बढ़कर 17.6 अरब डॉलर हो गया। इस अवधि में आईएमएफ के पास आरक्षित निधि 11.6 करोड़ डॉलर बढ़कर 4.94 अरब डॉलर पर पहुंच गई।
भारत के बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार से अमेरिका चिंतित, रखेगा नजर
यूएस ट्रेजरी के इस फैसले का भारत पर सिर्फ इतना असर पड़ेगा कि दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार से संबधित होने वाली बातचीत में अमेरिका इस मसले पर चर्चा कर सकता है. यूएस ट्रेजरी ने भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर जारी रिपोर्ट में कहा है कि वह भारत के फॉरेन एक्सचेंज और अर्थव्यवस्था से जुड़ी नीतियों पर करीबी नजर बनाए रखेगा.
2017 के पहले छह महीने में भारत के विदेशी मुद्रा खरीदने की रफ्तार में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है. यह जून तिमाही में बढ़कर करीब 42 अरब डॉलर पर पहुंच गया. यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 1.8 फीसदी है. यूएस ट्रेजरी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका के साथ व्यापार में भारत का पलड़ा भारी है.
‘रुपये को बचाने की कीमत’- हर हफ्ते $3.6 बिलियन गंवाए, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में एक दशक में सबसे बड़ी गिरावट दिखी
प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली: फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के साप्ताहिक स्टेटिस्टिकल सप्लीमेंट के मुताबिक, 9 सितंबर तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 550.8 अरब डॉलर था. ये 2020 के बाद सबसे कम है, जब यह आंकड़ा 580 अरब डॉलर पर पहुंच गया था.
जनवरी के पहले सप्ताह में भारत के पास 633 विदेशी मुद्रा क्यों? अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था, जिसका मतलब है कि इस कैलेंडर वर्ष में अब तक 82 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है जो कि पिछले एक दशक में सबसे अधिक है.
एक दशक में सबसे ज्यादा कमी
पिछले 10 सालों की तुलना में यह कमी भारत में अब तक की सबसे तेज गिरावट है. कैलेंडर वर्ष 2011 (0.6 अरब डॉलर), 2012 (1.7 अरब डॉलर), विदेशी मुद्रा क्यों? 2013 (1.8 अरब डॉलर) और 2018 (13.28 अरब डॉलर) भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के घटने के गवाह हैं—लेकिन यह गिरावट उनके आकार की तुलना में मामूली थी.
बाकी सालों में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि दर्ज की गई है और इसमें से वर्ष 2020—जब सारी दुनिया कोविड-19 महामारी से प्रभावित रही—सबसे अधिक लाभकारी रहा. उस साल भारत की विदेशी मुद्रा संपत्ति में करीब 119 अरब डॉलर (2019 के अंत में 461 अरब डॉलर से बढ़कर 2020 के अंत तक 580 बिलियन डॉलर) की वृद्धि दर्ज की गई. 2021 के अंत तक, आंकड़ा 52 अरब डॉलर बढ़कर 633 अरब डॉलर पर पहुंच गया. पिछले साल 3 सितंबर को विदेशी मुद्रा क्यों? भारत ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार को 642.45 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर देखा था.
ऐसा क्यों हुआ?
विदेशी मुद्रा में कमी का मतलब है कि आरबीआई रुपये के गिरते मूल्य पर काबू पाने के लिए डॉलर बेच रहा है, जो जुलाई में 80 रुपये प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया था.
ऐसा होने का एक सबसे बड़ा कारण यह है कि अमेरिका के केंद्रीय बैंक यूएस फेडरल रिजर्व ने रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंची मुद्रास्फीति पर लगाम कसने के लिए प्रमुख ब्याज दरों में वृद्धि कर दी है. इस साल, यूएस फेड ने अब तक चार मौकों पर कर्ज पर ब्याज की दर बढ़ाई है—यह अगस्त में 2.25-2.5 प्रतिशत रही, जो मार्च में 0.25-0.5 प्रतिशत थी.
ऋण दर में बढ़ोतरी करके यूएस फेड दरअसल मुद्रा के तौर पर डॉलर का उपयोग करने वाले लोगों की क्रय शक्ति सीमित करना चाहता है. और जैसा इकोनॉमिक टाइम्स का एक विश्लेषण बताता है, इसका नतीजा यह हुआ कि भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने पिछले एक साल में 39 अरब डॉलर से अधिक की विदेशी मुद्रा क्यों? निकासी की.
भारत ने कब शुरू किया था सोने का भंडारण बढ़ाना
भारत का स्वर्ण भंडार सब से कम 358 टन था जब डी सुब्बाराव ने रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद 2008 की सितम्बर में संभाला था. वैश्विक वित्त संकट के बाद, भारत ने अंतर्राष्ट्रिय मुद्रा कोष से 200 टन सोना 2009 में खरीदा.
भारत ने 2018 में एक बार फिर सोना खरीदना शुरू किया. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का डाटा बताता है कि पिछले 18 महीनों में उसने 60 टन से ज्यादा सोना जोड़ा है.
पिछले महीने गोल्डहब नें प्रकाशित एक लेख में सुब्बाराव ने अपने कार्यकाल में इतनी मात्रा में सोने की खरीद का कारण बताया था. इस दौरान भारत का स्वर्ण भंडार 55 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ा था.
उनका कहना था, ‘सोना एक अच्छा लंबी अवधि के लिए किया गया निवेश है और एक विश्वसनीय भंडार है. ‘उनका साथ ही कहना था कि अगर नए उभरते बाज़ार डॉलर पर एक्सचेंज रेट की अस्थिरता के लिए निर्भर नहीं कर सकते, तो उनके पास बहुत कम उपाय बचते हैं, सिवाय इसके कि वे अपनी रक्षा के साधन स्वयं तैयार करें.’
क्यों केंद्रीय बैंक के द्वारा सोना बेचा जाना मंदी को दिखाता है
शुरुआती खबरों में आरबीआई द्वारा सोना बेचे जाने की बात देश के आर्थिक सेहत की चिंता की बात को लेकर शुरू हुई. पिछली बार आरबीआई ने 1991 में आई वित्तीय संकट के दौरान सोना गिरवी रखा था उस दौरान घटता विदेशी मुद्रा भंडार आवश्यक वस्तुओं के लिए भारत के आयात बिल को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं था.
उस दौरान भारत ने बैक ऑफ इंग्लैंड और यूनियन बैंक ऑफ स्विट्जरलैंड को 67 टन सोना गिरवी रखा था ताकि वह अपने 600 डॉलर मिलियन के बैलेंस ऑफ पेमेंट (भुगतान संतुलन) संकट से उबर पाए.
पिछले दिनों भारतीय अर्थव्यवस्था की डगमगाती स्थिति से निपटने और आरबीआई की बिमल जाना पैनल द्वारा 1.76 लाख करोड़ रुपए भारत सरकार को दिए जाने पर भी यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि केंद्रीय बैंक सोने की होल्डिंग की बिक्री के माध्यम से संसाधन जुटाने की कोशिश कर रहा है.
दुनिया भर के केंद्रीय बैंक अपने पास जमा सोना बढ़ा रहे हैं
कई केंद्रीय बैंक अपने सोने के भंडार को बढ़ा रहे हैं. 2018 में, दुनिया भर के केंद्रीय बैंको नें 651 टन सोना खरीदा जो कि पिछले 50 सालों में ब्रेटन वुड्स सिस्टम खत्म होने के बाद से सबसे ज़्यादा है.
विश्व स्वर्ण परिषद का मानना है कि सोने का भंडार इसलिए बढ़ा है क्योंकि भूराजनीतिक तनाव बढ़े, कई राजनीतिक और आर्थिक कारक भी हैं और साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव आ रहे हैं.
परिषद ने सितम्बर 2019 में जारी अपनी एक रिपोर्ट– दि सेंट्रल बैंकर्स गाईड जो गोल्ड एस ए रिज़र्व असेट में लिखा है, ‘ सोना ही एक ऐसा असेट है जिसपर कोई राजनीतिक और श्रृण जोखिम नहीं है, न इसका विदेशी मुद्रा क्यों? प्रिंटिंग प्रेस से अवमूल्यन हो सकता है ना ही असाधारण मौद्रिक नीति के उपाय ला कर.’
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
एक्सपर्ट व्यू: उच्च ब्याज दरों के बावजूद आर्थिक विकास ड्राइविंग बुल मार्केट चला रहा
शेयर बाजार 7 घंटे पहले (03 दिसम्बर 2022 ,18:46)
एक्सपर्ट व्यू: उच्च ब्याज दरों के बावजूद आर्थिक विकास ड्राइविंग बुल मार्केट चला रहा
नई दिल्ली, 3 दिसम्बर (आईएएनएस)। चूंकि भारत में मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही है और लगातार 10 महीनों तक आरबीआई के 6 फीसदी के कंफर्ट जोन से बाहर रही है, केंद्रीय बैंक सिस्टम में लिक्विडिटी को रोकने के लिए मई से रेपो दरों में वृद्धि कर रहा है।भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मई के बाद से चार बार रेपो दरों में वृद्धि की है और 7 दिसंबर को फिर से प्रमुख उधार दरों में वृद्धि की उम्मीद है।